काल चक्र स्वभावतः: परिवर्तनशील है। जब कोई बड़ा परिवर्तन, व्यापक क्षेत्र
में तीव्र गति से होता है, तो उसे क्रांति कहते हैं। क्रांतियों के बीच कुछ
महाक्रान्तियाँ भी होती हैं, जो चिरकाल तक जनमानस पर अपना प्रभाव बनाए
रखती हैं। प्रस्तुत युगसंधि काल भी एक महाक्रान्ति का उद्घोषक है।
महाक्रांतियाँ केवल सृजन और संतुलन के लिए ही उभरती हैं।
महाकाल का संकल्प उभरता है तो परिवर्तन आश्चर्यजनक रूप एवं गति से होते
हैं। रावण दमन, राम राज्य स्थापना एवं महाभारत आयोजन पौराणिक युग के ऐसे ही
उदाहरण हैं। इतिहास काल में बुद्ध का धर्मचक्र प्रवर्तन, साम्यवाद और
प्रजातंत्र की सशक्त विचारणा का विस्तार, दास प्रथा की समाप्ति आदि ऐसे ही
प्रसंग हैं, जिनके घटित होने से पूर्व कोई उनकी कल्पना भी नहीं कर सकता था।
युगसन्धि काल में, श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की स्थापना तथा अवांछनीयताओं के
निवारण के लिए क्रांतियाँ रेलगाड़ी के डिब्बों की तरह एक के पीछे एक दौड़ती
चली आ रही हैं। उनका द्रुतगति से पटरी पर दौड़ना हर आँख वाले को प्रत्यक्ष
दृष्टिगोचर होगी। मनीषियों के अनुसार उज्ज्वल भविष्य की स्थापना के इस
महाभियान में भारत को अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है।