गायत्री उपासना से ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति

आत्मा में सन्निहित ब्रह्मवर्चस का जागरण करने के लिए गायत्री उपासना आवश्क है |यो सभी के भीतर सत -तत्व बीज रूप में विद्यमान है पर उसका जागरण जिन तपश्चर्याऔ दुवारा संभव होता है ,उनमे गायत्री उपासना ही प्रधान | हर आस्तिक को अपने में ब्रह्म तेज उत्त्पन्न करना चाहिए |जिसमे जितना ब्रह्म तत्व अवतरित होगा ,वह उतने ही अंशो में ब्राम्हणत्व काधिकारी होता जायेगा |जिसने आदर्शमय जीवन का वर्त लिया है ,व्रतबंध यज्ञोपवित धारण किया है ,वे सभी व्रतधारी अपनी आत्मा में प्रकाश उत्पन्न करने के लिऐ गायत्री उपासना निरंतर करते रहे यही उचित है |जोइस कर्तव्य से च्युत होकर इधर - उधर भटकते है , जड़ को सीचना छोड़कर पते धोते फिरते है , उन्हें अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने में विलम्ब ही नही ,असफलता का भी सामना करना पड़ता है |

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118