सोऽहम साधना का तत्त्वज्ञान और विधि- विधान
जीवात्मा जिन पाँच आवरणों में आबद्ध है, गायत्री उपासना में उनका दिग्दर्शन पाँच कोशों के रूप में कराया जाता है ।। गायत्री को कहीं- कहीं पंचमुखी चित्रित किया जाता है, उसका अभिप्राय यही है कि आत्मा पाँच आवरणों से ढँका हुआ है, जो उन्हें समझ लेता है, उनका अनावरण कर लेता है, वह आत्मसत्ता भगवती गायत्री का साक्षात्कार करता है ।। इसी श्रृंखला की पुस्तक '' गायत्री पंचमुखी और एकमुखी '' में इस पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है ।।
साधना- विधान का जिक्र आने पर यह कहा गया है कि यह उच्चस्तरीय साधानाएँ यद्यपि साधक को सामान्य उपासक की अपेक्षा अत्यधिक और शीघ्र लाभान्वित करती हैं, तथापि यह पूर्णत: निरापद नहीं ।। कुछ विधान तो ऐसे होते हैं, जो परमाणु विखंडन की तरह क्षण भर में अद्भुत शक्ति का भंडार उपलब्ध करा देने वाले हैं, पर विज्ञान के विद्यार्थी जानते होंगे कि मैडम क्यूरी की मुत्यु ऐसे ही एक कठिन प्रयोग करते समय हो गई थी ।। उच्चस्तरीय साधनाओं की इसी कठिनाई को पार करने के लिए प्राचीनकाल से आरण्यक परंपरा रही है ।। उच्चस्तरीय साधना के इच्छुक इन आरण्यकों में रहकर योग्य मार्गदर्शकों के सान्निध्य -संरक्षण में ये साधनाएँ संपन्न किया करते थे ।। यह परंपरा आज यद्यपि रही नहीं, तथापि वह स्थान अपने स्थान पा ज्यों -के- त्यों हैं ।। ………….