गायत्री एवं यज्ञ का वैज्ञानिक रहस्य

गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी एवं यज्ञ को भारतीय धर्म का पिता कहा गया है । यह दोनों ज्ञान और विज्ञान के अंतरंग एवं बहिरंग जीवन के समुन्नायक केंद्र माने गए हैं । भारतीय तत्त्व दर्शन, आचारशास्त्र व दृष्टिकोण को समझने के लिए उपर्युक्त दोनों आधारों को गहराई तक समझना पड़ेगा । किसी समय यह देश तैंतीस कोटि देवताओं का, दिव्य नागरिकों का देश था । यहाँ के निवासी जगद्गुरु-चक्रवर्ती, विज्ञानवेत्ता एवं विभूतियों के अधिपति के रूप में विश्व में हर क्षेत्र का नेतृत्व करते थे । सर्वतोमुखी प्रगति का आधार क्या है, इसे जानने के लिए विश्व के कोने-कोने में जिज्ञासु यहाँ आते थे । वे अपने को, अपने क्षेत्र को प्रकाशवान बनाने के लिए जिस ज्ञान को समेटकर ले जाते थे, उसका सार- तत्व यदि दो शब्दों में कहना हो तो गायत्री और यज्ञ को ही कहा जा सकता है । जिस प्रकार ईंट और चूने से दीवार बनी होती है, उसी प्रकार भारतीय गरिमा के संबल यह गायत्री और यज्ञ ही हैं । इन दो सूत्रों की व्याख्या के लिए ही भारतीय अध्यात्म, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, का विशालकाय कलेवर खडा किया गया है । मोटी दृष्टि से देखने में गायत्री मंत्र चौबीस अक्षरों का संस्कृत भाषा में विनिर्मित

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