युग संस्कार पद्धति

युग संस्कार पद्धति प्राक्कथन परम पूज्य गुरुदेव ने उज्जवल भविष्य की संरचना के लिए, सुसंस्कारी व्यक्तित्वों के निर्माण एवं विकास की अनिवार्य आवश्यकता बार-बार बतलायी है। व्यक्तित्व निर्माण के क्रम में धर्म तंत्र से लोकशिक्षण के अन्तर्गत संस्कार प्रक्रिया का असाधारण महत्त्व है। अभियान को गति देने के सूत्रों पर चर्चा करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा था- ''अगले ही चरण में समाज में संस्कार अभियान तीव्रतर होगा। समाज की माँग को पूरी करने के लिए बड़ी संख्या में संस्कार-सम्पन्न कराने वाले पुरोहितों की आवश्यकता पडे़गी। दैवी चेतना के प्रभाव से बड़ी संख्या में प्रतिभा-सम्पन्नों, भावनाशीलों में ऐसी उमंगें जागेंगी, जो उन्हें थोड़े या बहुत समय के लिए पुरोहितों के गरिमामय कार्य में प्रवृत्त होने के लिए बाध्य करेंगी। वे सांसारिक व्यस्तता, लोभ-मोह से ऊपर उठकर इस कार्य के लिए समय और श्रम लगायेंगे, किन्तु संस्कृत भाषा का पूर्वाभ्यास न होने से उन्हें प्रचलित पद्धति से कर्मकाण्ड कराने में बाधा पडे़गी। इस बाधा को दूर करके उत्पन्न होने वाली माँग के अनुरूप, बड़ी संख्या में सेवा भावी पुरोहितों को तैयार किया जा सकेगा।'' उक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने कर्मकाण्ड के लिए श्लोक-परक मंत्रों के स्थान पर सूत्र-मन्त्रों के प्रयोग की विधा पुन: विकसित कर दी। प्राचीन काल में सूत्र पद्धति बहुत लोकप्रिय रह चुकी है। कालान्तर में समय के प्रभाव

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