महिलाओं की गायत्री साधना

गायत्री जीवन को भव्य बनाने वाली विद्या है । उसकी उपासना से शुद्धि और आत्मा में सतोगुणी प्रकाश की वृद्धि होती है, जिससे विद्या, वृद्धि दया, करुणा, प्रेम, उदारता, शौर्य, साहस और पवित्रता आदि की वृद्धि होती है । अत: प्रत्येक वर्ग के स्त्री-पुरुष को आत्मिक प्रगति और व्यक्तित्व के विकास हेतु गायत्री उपासना करनी चाहिए परन्तु पिछले सैकड़ों वर्षों से महिलाओं को गायत्री उपासना के लिए प्रतिबन्धित किया जाता रहा है । मध्यकाल में देश में जो आध्यात्मिक अन्धकार युग रहा उससे अनेक ऐसी निराथार मान्यताएँ उठ खड़ी हुईं जिनके लिए न कोई विवाद था न बहाना । गायत्री उपासना से इसी युग में नारी जाति को प्रतिबन्धित किया गया । कालान्तर में कुछ स्वार्थी तत्वों ने ऐसे श्लोक भी गढ़ लिए जो वैदिक मान्यताओं का प्रतिवाद करते हें, पर यथार्थ तो यथार्थ ही है । थोड़ी-सी विवेक बुद्धि से भी वस्तुस्थिति को भली प्रकार हृदयंगम किया जा सकता है ।

यह एक तथ्य है कि भारतवर्ष में सदा से स्त्रियों का समुचित मान रहा है, उन्हें पुरुषों की अपेक्षा अधिक पवित्र माना जाता रहा है । स्त्रियों को बहुधा 'देवी' नाम से सम्बोधित किया जाता है । देवताओं और महान् पुरुषों के साथ उनकी अर्धांगिनियों के नाम भी जुड़े

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