गायत्री के पाँच मुख
गायत्री के पंचमुखी चित्रों एवं पंचमुखी प्रतिमाओं का प्रचलन इसी प्रयोजन के लिए है कि इस महामंत्र की साधना का अवलम्बन करने वालों को यह विदित रहे कि हमें आगे चलकर क्या करना है ? जप, ध्यान, स्तोत्र-पाठ, पूजन, हवन यह आरम्भिक क्रिया-कृत्य हैं । इनसे शरीर की शुद्धि और मन की एकाग्रता का प्रारम्भिक प्रयोजन पूरा होता है । इससे अगली मंजिलें कड़ी हैं । उनकी पूर्ति के लिए साधक को जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और उस मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक तत्परता, दृढ़ता एवं क्षमता का सम्पादन करना चाहिए । इतना स्मरण, यदि साधक रख सका, तो समझना चाहिए की उसने गायत्री पंचमुखी चित्रण का प्रयोजन ठीक तरह से समझ लिया।
वस्तुत: गायत्री परम ब्रह्म परमात्मा की विश्व-व्यापीता महाशक्ति है । उसका कोई स्वरूप नहीं । ज्ञान की उपमा प्रकाश से दी जाती है गायत्री का देवता सविता है । सविता का अर्थ है सूर्य- प्रकाश पुंज । जब गायत्री महाशक्ति का अवतरण साधक में होता है, तो साधक को ध्यान में प्रकाश बिन्दु एवं वृत्त का आभास मिलता हैं, उसे अपने हृदय, सिर, नाभि अथवा आँखों में छोटा या बड़ा प्रकाश पिण्ड दिखाई पड़ता है । यह कभी घटता कभी बढ़ता है । इसमें