हम तुच्छ नहीं, गौरवास्पद जीवन जियें

February 1968

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हाड़-माँस का पुतला दुर्बलकाय मानव प्राणी शारीरिक दृष्टि से तुच्छ और नगण्य है। मामूली जीव-जन्तु, पशु-पक्षी जिस तरह का निसर्ग जीवन जीते हैं उसी तरह जिन्दगी की लाश नर-पशु भी ढोते रहते हैं। इस तरह की जिन्दगी जीने से किसी का जीवनोद्देश्य पूरा नहीं होता।

‘विचार’ ही वह शक्ति है जिसने मनुष्य को अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक सुख-सुविधाएं उपार्जित करने में समर्थ बनाया। विचार का यह प्रथम चमत्कार है। इससे अगला चमत्कार तब प्रारम्भ होता है जब वह विचारणा की महान् शक्ति, जीवन का उद्देश्य, स्वरूप और उपयोग करने की सही जानकारी प्राप्त करने में प्रवृत्त होता है। इसी मार्ग एवं प्रयास का नाम तत्व-ज्ञान, दर्शन एवं अध्यात्म है। विचार-शक्ति का मूल्य और महत्व जिसे विदित हो गया वह अपनी इस ईश्वर प्रदत्त दिव्य विभूति को परम लक्ष्य की प्राप्ति में प्रयुक्त करता है। फलस्वरूप उसका सारा जीवन क्रम ही बदल जाता है, उसका प्रत्येक क्रिया-कलाप उत्कृष्टता और आदर्शवादिता से ओत-प्रोत बनता चला जाता है।

यही मानव जीवन का गौरव तथा आनन्द है। विचारशीलता का अवलम्बन लेकर जीने में ही मनुष्य जन्म की सार्थकता है। रोटी के लिये मरते-खपते रहना मनुष्य का नहीं तुच्छ जीवन-जन्तुओं का कार्य है। अच्छा हो हम अपनी-अपनी विचार शक्ति और जिन्दगी का मूल्य समझें और वह गतिविधियाँ अपनायें जो अपने स्तर और गौरव के उपयुक्त हैं।

-सन्त वास्वानी


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