विचार क्रांति

मनुष्य को आज इतनी अधिक सुविधाएँ और साधन- संपदाएँ प्राप्त हैं कि २०० वर्ष पूर्व का मनुष्य इनकी कल्पना भी नहीं कर सकता था ।। पहले की अपेक्षा उसके साधनों और सुविधाओं में निरंतर वृद्धि ही होती जा रही है ।। इसके उपरांत भी मनुष्य अपने को पहले की तुलना में अभावग्रस्त, रुग्ण, चिंतित और एकाकी ही अनुभव कर रहा है ।। भौतिक सुविधा- साधनों में अभिवृद्धि होने के बाद होना तो यह चाहिए था कि मनुष्य पहले की अपेक्षा अधिक सुखी और अधिक संतुष्ट रहता, किंतु हुआ इसके विपरीत ही है ।। यदि गंभीरतापूर्वक मनुष्य की आंतरिक स्थिति का विश्लेषण किया जाए तो प्रतीत होगा कि वह पहले की तुलना में सुख- संतोष की दृष्टि से और अधिक दीन- दुर्बल हो गया है ।। शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन, पारिवारिक सौजन्य, सामाजिक सद्भाव, आर्थिक संतोष और आंतरिक उल्लास की से सभी क्षेत्रों में मनुष्य जाति नई- नई समस्याओं व संकटों से घिर गई है ।।
आज की सुविधा, संपन्नता की प्राचीनकाल की परिस्थितियों से तुलना की जाए और मनुष्य के सुख- संतोष को भी दृष्टिगत रखा जाए तो पिछले जमाने की असुविधा भरी परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्ति अधिक सुखी और संतुष्ट जान पड़ेंगे ।।

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