"राष्ट्रीय भावना को संसार की कोई शक्ति नष्ट नहीं कर सकती। ब्रिटिश सरकार पूछती है कि- "यदि वे इस देश को छोड़कर चले जायें तो हमारा क्या बनेगा?' निश्चय ही यह एक विचित्र प्रश्न है। यह ऐसा प्रश्न है जैसे चौकीदार अपने स्वामी से कहे कि 'यदि मैं चला जाऊँ तो आपका क्या होगा?" इसका उत्तर यही होगा कि- 'तुम अपना रास्ता नापो। या तो हम दूसरा चौकीदार रख लेंगे या हम अपनी रखवाली आप करना सीखजायेंगे।' पर हमारा यह चौकीदार जाता नहीं, वरन् मालिक को ही धमकाता है।"
सरदार पटेल ने भी १७ नवंबर १९४० को व्यक्तिगत सत्याग्रह करने की घोषणा की। पर पुलिस ने दिन निकलने से पहले ही उनको गिरफ्तार कर लिया। पर जेल में वे बीमार हो गये और उनका आँतों का रोग ऐसे भयंकर रूप में उभर आया कि मृत्यु की आशंका होने लगी। सरकारी डॉक्टरों ने इसका इलाज ऑपरेशन करना बताया। पर यह ऑपरेशन भी इतना भयंकर होने को था कि उसमें जान को जोखिम का प्रश्न था। सरकारी अधिकारियों ने इस जिम्मेदारी से बचने के लिए सरदार को नौ- दस महीने बाद ही जेल से छोड़ दिया। बाहर आने पर जब उनके निजी डॉक्टरों ने जाँच की तो उन्होंने ऑपरेशन के बजाय दवाओं का प्रयोग करने की सम्मति दी। कई महीने तक एलोपैथिक और होम्योपैथिक चिकित्सक दवाएँ देते रहे, पर किसी से विशेष लाभ न हुआ। तब गांधी जी ने उनको सेवाग्राम (वर्धा) बुलाकर प्राकृतिक चिकित्सा की सलाह दी। प्राकृतिक चिकित्सा से हालत में काफी सुधार हुआ, पर उस समय निरंतर बदलने वाली राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनका एक स्थान पर जमकर कई महीने तक रह सकना असंभव था। इसलिए दो महीने तक वर्धा में रहकर वे पुनः अपने कार्य क्षेत्र में आ गए।