सरदार बल्लभ भाई पटेल

भारत की थर्मापौली बारदौली

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पर जिस महान् कार्य के फलस्वरूप श्री पटेल को सरदार की उपाधि दी गई और जिसने भारतीय स्वाधीनता- संग्राम के इतिहास में अपने अमिट पदचिह्न छोड़ने का गौरव प्राप्त किया, वह था बारदौली का अहिंसक संग्राम। यूनान देश के इतिहास में 'थर्मापौली' के युद्ध की एक घटना तीन हजार वर्ष बीत जाने पर भी आज तक अविस्मरणीय मानी जाती है। उसमें दो- तीन सौ देश- भक्तों की टोली ने एक तंग पहाडी़ मार्ग पर मोर्चा लगाकर आक्रमणकारी विशाल सेना का मुकाबला किया था और अपनी वीरता तथा आत्म- त्याग से उसे नाकों चने चबवा दिये थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उस महान् पर्व में गुजरात के छोटे- से बारदौलीतालुका ने भी संसार में सबसे बडे़ साम्राज्य की स्वामिनी कहलाने वाली ब्रिटिश सरकार को ऐसी करारी हार दी कि सब कोई 'वाह- वाह' कहने लगे और तभी भारत के राष्ट्रकवि ने गाया- "धन्य बारदौली तू भारत कीथर्मापौली।"

बारदौली सूरत जिले का एक छोटा भू- भाग है, जो जलवायु की निगाह से बहुत उपजाऊ माना जाता है। वहाँ के निवासी मुख्य रूप से 'कणवी' या 'कुनवी' नामक जाति के किसान हैं। वे स्वभाव से ही परिश्रमी होते है और अपना पसीना बहाकर उन्होंने अपने खेतों को खूब हरा- भरा और उपजाऊ बना रखा था। यह देख सरकारी अधिकारियों को लालच लगता था और वे भूमि का लगान क्रमशः बढा़ते जाते थे। भारतीय किसान अशिक्षित और मूक होते ही हैं, इसलिए डरकर सरकारी हुक्म को बराबर मानते चले जाते थे। पर जब सन्१९२० में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह और असहयोग का शंखनाद किया, तो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जाग्रति और उत्साह की एक लहर व्याप्त हो गई। गुजरात को उसने सबसे अधिक प्रभावित किया, क्योंकिगांधीजी और उनके प्रमुख सहयोगी वहीं रहते थे। इसलिए बारदौली के निवासियों पर उनका प्रभाव अधिक पड़ने लगा और आरंभ से ही वे चर्खा चलाना, खादी का उपयोग, शराबबंदी आदि कार्यक्रमों में आगे बढ़कर भाग लेने लगे।

जब सन् १९२७ में सरकार ने बारदौली तालुका पर पुनः लगान बढा़ने की घोषणा की, तो उनमें असंतोष की भावना उत्पन्न हो गई और उन्होंने अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा बंबई की विधान सभा में इसका विरोध किया। जब सरकार ने इस पर कुछ ध्यान दिया तो वे सरदार पटेल के पास पहुँचे और अपनी विपत्ति की कथा कह सुनाई। कांग्रेस के नेता पहले से ही "करबंदी सत्याग्रह" आरंभ करने की योजना बना रहे थे। बारदौलीउनको इस प्रयोग के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र जान पडा, इसलिए श्री पटेल शीघ्र ही वहाँ पहुँच गए। उन्होंने देखा कि बारदौली की जमीन उत्तम है और वहाँ के नर- नारी भी काफी परिश्रम करने वाले हैं, फिर भी उनकी आर्थिक अवस्था और रहन- सहन बहुत सामान्य दर्जे का है। कारण यही है कि वे अशिक्षित और असंगठित होने के कारण सरकारी नौकरों, शराब का व्यापार करने वाले पारसियों और कर्ज देने वाले साहूकारों द्वारा तरह- तरह से लूटे जाते हैं। वल्लभ भाई ने इस अवसर को उनके जागरण और संगठन के लिए सर्वोत्तम समझा। पर वे बडे़ स्पष्टवक्ता और अनुशासनप्रिय थे। उन्होंने आरंभ में ही बारदौली की जनता से साफ- साफ कह दिया कि- "अगर तुमको बढा़ हुआ लगान रद्द कराना है तो उसके लिए जोरदार आंदोलन करना और उसमें सब तरह के कष्टों और हानि को सहन करने के लिए तैयार होना पडे़गा। मैं राजनीति का खेल नहीं करता और न किसी ऐसे साधारण कार्य में हाथ डालता हूँ, जिसमें जोखिम- खतरा न हो। जो लोग जोखिम और कष्ट उठाने के लिए तैयार हो, मैं उन्हीं का साथ दे सकता हूँ।

वल्लभ भाई का जन्म किसान के घर में हुआ था और छोटी आयु में उन्होंने अपने पिता के साथ कुछ खेती का कार्य किया भी था, इससे वे कृषक जीवन की सब कठिनाईयों और असुविधाओं को अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने किसानों को सरकार से संर्घष करने के लिए उत्साहित करते हुए कहा- "किसान क्यों डरें? वह भूमि को जोतकर धन कमाता है, वह अन्नदाता है, वह दूसरों की लात क्यों खावें? मेरा यह संकल्प है कि मैं दीन तथा निर्धनों को उठाकर उनके पैरों पर खडा कर दूँ, जिससे वह ऊँचा माथा करके चलने लगे। यदि मैं इतना कार्य करके मरा तो मैं अपने जीवन को सफल मानूँगा। जो किसान वर्षा में भीगकर कीचड़ में सनकर, शीत- घाम को सहन करते हुए मरखने बैल तक से काम लेता है, उसे डर किसका? सरकार भले ही बडीसाहूकार हो, पर किसान उसका किरायेदार कब से हुआ? क्या सरकार इस जमीन को विलायत से लाई है?" 

श्री पटेल के जोशीले भाषणों और उनकी अदम्य, निर्भीक वाणी को सुनकर बारदौली के किसान सोते से जाग पडे। उन्होंने अंत तक संघर्ष करने और उसके मध्य जितनी भी आपत्तियाँ आवें, उन सबको दृढ़तापूर्वक सहने की प्रतिज्ञा की। यह देखकर पहले तो श्री पटेल ने बंबई के गवर्नर को लगान बढा़ने का हुक्म रद्द करने के लिए एक तर्कयुक्त और विनम्र पत्र लिखा और जब उसे अस्वीकार कर दिया गया तो उन्होंने सरकार के विरुद्धकरबंदी आंदोलन की घोषणा कर दी। उन्होंने किसानों का जैसा सुदृढ़ संगठन किया, उसे देखकर बंबई की एक सार्वजनिक सभा में किसी भाषणकर्ता ने उनको 'सरदार' के नाम से पुकारा। गांधीजी को यह नाम पसंद आ गया और तब से पटेल जनता के सच्चे 'सरदार' ही बन गए। 
अब सरदार सरकार के साथ लड़ने के लिए पूरी तैयारी करने लगे। पर वे तो महात्मा गांधी के 'अहिंसाव्रतधारी' सैनिक थे। इसलिए उन्होंने किसानों को समझाया- "देखो भाई ! सरकार के पास निर्दयी आदमी हैं। उनके पास भाले, बंदूकें, तोपें सभी कुछ हैं। वह संसार की एक बडी हथियारबंद शक्ति है। तुम्हारे पास केवल तुम्हारा हृदय है। अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का साहस, तुममें हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो। इस समय सबसे बडा प्रश्न स्वाभिमान का है। सरकार निर्दयता के साथ हम पर अत्याचार करना चाहती है और साथ ही अपमानित भी। देखो भाई ! अपमानित होकर जीने की अपेक्षा सम्मान के साथ मर जाने में अधिक शोभा है।" 

जब किसान उनके कार्यक्रम से पूर्ण सहमत हो गये और उन्होंने सब तरह का बलिदान करने की प्रतिज्ञा कर ली तो वे गाँव- गाँव में फिरकर लोगों को कर्तव्यपालन के लिए तैयार करने लगे। वे पुरुषों के साथ स्त्रियों को भी सत्याग्रह संग्राम में सम्मिलित करना आवश्यक समझते थे। इसलिए उन्होंने एक विशाल सभा में कहा- 


"
भाईयों ! बारदौली में आज मैं एक नवीन चमत्कार देख रहा हूँ। पिछले दिनों मुझे स्मरण है। उन दिनों सभाओं में पुरुषों के साथ बहिनें भी होती थीं। पर अब तो पुरुष ही पुरुष गाडियाँ जोतकर सभाओं में आ जाते हैं। जान पड़ता है, बडे- बूढों के लिए आप ऐसा करते हैं। पर मैं कहता हूँ कि हमारी बहिनें, माताएँ और स्त्रियाँ हमारे साथ न होगीं तो हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे। कल से ही हमारी वस्तुएँ हमसे छीनी जाने लगेंगी। सरकारी कर्मचारी हमारी गाय, भैंस, बर्तन आदि लेने जायेंगे। यदि हमारी बहिनें इस युद्ध से परिचित न होगीं, हम अपने साथ- साथ उन्हें भी चेतावनी नहीं देंगे तो वे उस समय क्या करेंगी? आप स्यवं सोचें कि जब जब्ती वाले आपके बैल खोलकर चलेंगे, तो आपकी स्त्रियों के मन पर क्या बीतेगी?" 

जो लोग आजकल के अनुचित तरीकों से धन- संग्रह करने वाले और मोटर तथा बंगलों के बिना निर्वाह न कर सकने वाले 'नेताओं' को देख रहे हैं, वे सहज में इस बात का अनुमान नहीं कर सकते कि सरदार पटेल किस प्रकार के नेता थे? वे नाम के ही 'सरदार' न थे, पर उन्होंने वास्तव में 
बारदौली के किसानों का संगठन सैनिक ढंग पर किया था और उनमें मर मिटने की भावना फूँक दी थी। वे स्वयं दिन- रात चारों तरफ दौरा करके, किसानों की सभायें करके उनके उत्साह को बढा़ते रहते थे और अपना उदाहरण दिखाकर उनको प्रत्येक परिस्थिति में निर्भय रहने का उपदेश देते थे। वे कहते थे- "चाहे कितनी ही आपत्तियाँ आयें, कितने ही कष्ट झेलने पड़ें, अब तो ऐसी लडाई लड़नी चाहिए, जिसमें सम्मान की रक्षा हो। सरकार चाहे जो करे, हम स्वयं उसको एक पैसा भी अपने हाथ से उठाकर नहीं देगें। बस यहीं निश्चय कर लीजिए। अपने भीतर लड़ने का साहस बढा़इये और एकता को दृढ़ कीजिए। केवल बाहरी कोलाहल से कुछ न होगा। सरकार आपकी कडी़ से कडी़ परीक्षा लेगी। यदि उससे लड़ना हो, तो गाँवों को जगाना होगा, सारे वातावरण को बदल देना होगा। अब उत्सव- मंगल की वेला भी नहीं है। अब तो युद्ध का मौका है। भला कहीं युद्ध में विवाह- मंगल का समय होता है? 
    "अब तो हमें लडा़ई में लड़ने वाले सिपाहियों जैसा जीवन बिताना होगा। कल से ही आप अपने घरों में ताले लगाकर दिन भर खेतों में घूमते रहें। बालक, बूढे, स्त्री सभी अपना काम समझ लें। धनी- दीन सब एक हो जायें और इस तरह काम करें जैसे एक ही शरीर हों। आप ऐसा काम कर दिखायें कि जब्तियाँ कराने को सरकार को एक भी आदमी न मिले। कोई सरकारी अधिकारी अपने सिर पर आपके बर्तन उठाकर ले जाए तो भले ही ले जाए ! अधिकारी तो लँगडे़ होते हैं। उनका काम गाँव में पटेल, मुखिया, बहीवटदार, तलाटी आदि की सहायता से ही चलता हैं। पर अब ये कोई भी उनकी सहायता न करें। आप इन सबको बता दें कि हमारे गाँव और प्रांत की प्रतिष्ठा के साथ ही हमारी प्रतिष्ठा है, जिसके कारण गाँव की प्रतिष्ठा नष्ट हो वह मुखिया कैसा? आइये, हम ऐसी वायु बहा दें, जिससे चारों ओर स्वराज्य की सुगंध छूट रही हो। प्रत्येक व्यक्ति के मुख पर सरकार के साथ लड़ने का दृढ़ निश्चय हो।

"मै आपको चेतावनी देता हूँ कि अब एक क्षण भी आमोद- प्रमोद में बैठने का समय नहीं है। बारदौली की कीर्ति समस्त भूमंडल में फैल रही है। अब तो हमें मर- मिटना है या पूर्ण सुखी होना है। अब तो रामबाण छूट ही गया है। हमारे गिर जाने में सारे देश की हानि है, हमारे डटे रहने में ही बेडा़ पार है। इसलिए आप पूर्ण सावधान रहें, कोई भूल न कर बैठें। सरकार आपको गिराने में कोई बात उठा न रखेगी। वह आप में फूट डालने की चेष्टा करेगी, आपसी झगडे़ पैदा करना चाहेगी। और भी कई ढंग के जंजाल खडा करने की कोशिश करेगी, इसलिए आप अपने आपसी झगडों को भी इस समय भूल जाइये। बाप- दादों के समय की शत्रुता को त्याग दीजिए। जीवन भर जिससे कभी न बोले हों, उससे बोलना आरंभ कर दीजिये। आज गुजरात की महिमा आपके ही हाथों में है। यदि आप में एका होगा तो कोई दूसरा मनुष्य आपके खेतों में हल नहीं चला सकता। जिस दिन ऐसा हुआ भी तो सारा गुजरात आपकी सहायता को दौड़ पडेगा और तमाम भारत आपका साथ देगा। आपस में कभी ईर्ष्या मत कीजिए।जहाँ एक को बिगड़ते हुए देखकर दूसरा हँसता है तो ऐसे देश का कभी भला नहीं हो सकता। अस्तु, युद्ध की घोषणा हो चुकी है। अब प्रत्येक गाँव को सेना की छावनी समझिए। प्रत्येक गाँव के समाचार निरंतर केंद्र में आने चाहिए।"

 वास्तव में सरदार पटेल ने बारदौली के किसान- सत्याग्रह का संचालन ऐसी योग्यता और मुस्तैदी से किया कि सरकार की समस्त चालें और अनेक प्रकार का दमन प्रभावहीन हो गया। वहाँ जब किसी इक्का- दुक्का किसान को लगान देने के लिए दबाया जाता तो वह यही जवाब देता कि बिना पंचायत की आज्ञा के हम कुछ नहीं दे सकते। जब उनके गाय, बैलों, गृहस्थी के सामान के कुर्क करने की धमकी दी जाती तो भी वह जरा भी न घबराता, न भयभीत होता। अनेक किसानों का सामान सरकारी कर्मचारी उठा ले गये, पर उसको खरीदने वाला कोई न मिला। वह सरकारी दफ्तरों में ज्यों का त्यों पडा रहा। एक पटवारी ने एक गरीब किसान से कहा-
"अरे भले आदमी ! जब सारे गाँव में फूट पड़ जायेगी तब तू भी झख मारकर लगान देगा तो अभी क्यों नहीं देदेता?" 
"ऐसी बात मुँह से न निकालिए साहब ! सारे जिले के लोग भले ही लगान दे दें, पर हम तो थूककर नहींचाटते।" 
पटवारी- "अरे भाई, हमारी बात चाहे मत रख। जब बडे अधिकारी आयेंगे तब उनकी बात तो मानेगा।" 
किसान- "उनका बड़प्पन हमारे किस काम का? अब तो वल्लभ भाई हमारे सरदार हैं, उनकी जैसी आज्ञा होगी वही मैं करूँगा।" 
    एक तहसीलदार ने किसी किसान से लगान देने को कहा तो उसने उत्तर दिया- "पुराने हिसाब से लगान लेकर आप तमाम पुराने- नये लगान की रसीद दें दें और साथ ही यह भी लिख दें कि तीस वर्षों तक लगान नहीं बढाया जायेगा तो अभी लगान चुका दिया जायेगा।"

तहसीलदार ने इतना ही कहा- "भाई ! यह तो मेरे अधिकार की बात नहीं है।" यह कहकर वे चले गए। 

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