श्री लक्ष्मण अग्रवाल बिलासपुर
सन् 82 में शक्तिपीठ उद्घाटन दौरे पर मैं भी जब गुरुवर के
साथ चला, तब मन में जो भी प्रश्न उभरते, समाधान उनसे प्राप्त कर
लेता। मेरी जिज्ञासा उन्हें भी अच्छी लगती व बिना झिड़के न केवल उत्तर देते, बल्कि विस्तार से समझाते भी।
मैंने पूछा- ‘‘गुरुदेव, कहा जाता है कि जूठन छोड़ना पाप है, फिर भी बहुत लोग जूठन छोड़ते हैं? ऐसा क्यों?’’
गुरुजी- ‘‘बेटा!
आजकल, अन्न हम पैसे से खरीदते हैं। इसलिये लोग उसकी तुलना पैसे
से करते हैं। जूठन छोड़ देते हैं और उसे फेंक देते हैं। किन्तु
यह वास्तविकता नहीं है। पैसे से अन्न, खरीदा नहीं जा सकता। अन्न
धरती माता अपनी छाती चीर कर देती है। कोई उसका अपमान करता है,
तो धरती माँ दुःखी होती है और दूसरे जन्म में उसे अन्न के
लिये तरसाती है।’’
प्रश्न- गुरुदेव वकालत करने वाले वकील झूठ- सच बोलकर सही को गलत
और गलत को सही ठहरा देते हैं। यह उनका पेशा है। क्या उन्हें
पाप नहीं पड़ता?
इतने में एक कुत्ता लंगड़ाता हुआ बीच सड़क में कहीं से आ गया।
गुरुदेव बोले- ‘‘देख
बेटा, यह कुत्ता पूर्व जन्म में वकील था। अब अपने झूठ सच का
हिसाब चुकता कर रहा है। जिसका गलत किया वह पीट रहा है। अपना भोग
तो हर व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है। अन्यथा कोई सत्कर्म ही
क्यों करता?’’
प्रश्न- मैं काफी दुखी होकर बोला, ‘‘गुरुदेव, मैंने बहुत प्रयत्न किया किन्तु फिर भी अपने किसी परिजन को गायत्री परिवार का न बना सका।’’
उत्तर- बेटा, इससे तू क्यों दुखी होता है? इस सब की प्राप्ति के
लिये भी प्रारब्ध चाहिए। यह भी हर किसी के भाग्य में नहीं
होता। राम- रावण युद्ध के बाद दोनों सेनाओं के बीच अमृत वर्षा
हुई थी। वानर- भालू जी उठे, राक्षस नहीं, क्योंकि वे चित्त पड़े थे।
अर्थात् वानर, भालू विवेक पूर्ण बातें सुनते थे। उन्होंने विवेक
का साथ दिया। दूसरा पक्ष अंध वादी था अतः केवल अपने स्वामी की
आज्ञा का पालन किया। भले ही वह गलत था। तुलसी ने तभी तो कहा
है-
अमृत वृष्टि भई दुहुँ दल ऊपर।
जिये भालु- कपि नहि रजनीचर॥
इसलिये तू अपना काम करके अपना कर्तव्य पूर्ण कर। तू दूसरों को
अच्छाई ग्रहण करने कहेगा तो तुझे स्वयं तो अच्छाई अपनानी ही
पड़ेगी। इस प्रकार कम से कम तू तो सुधरा रहेगा। अन्यथा तू भी
दूसरों के समान बन जायेगा। इसलिये दुखी मत हो। अपना काम, साहित्य
प्रचार कर। बेटे, आज सब लोग जन- शक्ति, धन- शक्ति तो अर्जित करते
हैं, किन्तु आध्यात्मिक शक्ति अर्जित नहीं करते, न ही उसका महत्त्व
जानते हैं। यदि महत्त्व जानते तो उसे अर्जित करने का प्रयत्न
करते।
डॉ. अमल कुमार दत्ता
समय- समय पर मैं, गुरुदेव से आध्यात्मिक प्रगति के लिये प्रश्न पूछते रहता था।
मैंने पूछा, ‘‘गुरुदेव!
आप सदैव सतत विभिन्न प्रकार के संकल्प कराते रहते हैं, यदि इस
बीच किसी का शरीर न रहा व संकल्प अधूरा रहा, तब क्या होगा?’’
गुरुदेवः- बेटे! शान्तिकुञ्ज एक ऐसा स्थान है, जहाँ जो भी सत्संकल्प किये जायेंगे, पूर्ण होंगे। बस, आपका पूर्ण प्रयास होना चाहिए।
यदि संकल्प के बीच शरीर न भी रहा तो भी मैं उसे पूर्ण कर दूँगा।
प्रश्नः- और यदि शरीर रहते संकल्प टूट जाय, तब क्या करें?
गुरुदेवः- फिर वही संकल्प करना चाहिए।
प्रश्नः- साधारण व्यक्ति जिसमें साधारण संस्कार हैं। हम अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिये क्या करें?
गुरुदेवः- सतत सम्बन्ध, सतत प्रयास।
प्रश्नः- आत्मा की आवाज कैसे सुनी जाय?
गुरुदेवः- अपना परिष्कार कर, श्रद्धा- विश्वास से, जीवन का आदर्श लक्ष्य तथा आत्मीयता के विस्तार करके सुनी जा सकती है।
प्रश्नः- दुख कैसे दूर किए जायँ?
गुरुदेवः- अज्ञान, अभाव और आसक्ति को हटाकर दुख दूर किए जा सकते हैं।
प्रश्नः- क्या तृतीय विश्व युद्ध होकर रहेगा? बड़ी शक्तियाँ बिना युद्ध के मानेंगी?
गुरुदेवः-
बेटे, जो लोग भविष्य कथन में विश्वास करते हैं, वे नोट कर लें
कि इस बार विश्व युद्ध नहीं होगा। बड़ी शक्तियाँ कौन होती हैं?
बड़ी शक्तियों को भी टक्कर मारी जा सकती है। गोर्वाच्योव कौन होता है?
डॉ. दत्ता ने बताया कि कुछ दिन बाद गोर्वाच्योव ने स्वयं (‘ग्लास नोस्त एवं पेरिस्त्रोयिका’) पारदर्शिता व सहकार की घोषणा की। अन्यथा रशिया ‘आयरन कर्टेंड’ अर्थात ‘लोहे के पर्देवाला’ देश कहलाता था। वहाँ क्या हो रहा है? किसी को नहीं मालूम था। बाद में गोर्वाच्योव को शान्ति का नोबल पुरस्कार दिया गया।
उन दिनों अमेरिका ने भी स्टार- वॉर की पूरी तैयारी कर रखी थी। 13 फरवरी 1986 की वसंत पंचमी को गुरुदेव ने कहा, ‘‘स्टार- वॉर को मैं ध्वस्त कर दूँगा।’’
इस घोषणा के ठीक एक माह बाद नासा के व अन्य हजारों
वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया कि वे स्टारवार के
लिये काम नहीं करेंगे। और इस प्रकार अमेरिका की स्टार- वॉर की योजना फेल हो गई।
प्रश्नः- गुरुजी, क्या इस थोड़े- थोड़े, अंशदान से शान्तिकुञ्ज का खर्च पूरा हो जाता है?
गुरुदेवः-
बेटे, इस विषय पर तू अपना दिमाग मत लगा। इतना खर्च कहाँ से
पूरा होता है, यह जानकर तेरा दिमाग चकरा जायगा। यहाँ पैसा केवल
आदमियों से नहीं आता। अन्य दिव्य स्त्रोतों से भी आता है। अतः तुझसे जितना कहा जाय उतना ही कर।
(शान्तिकुञ्ज विद्यालय के उद्घाटन के पहले गुरुदेव ने कहा था)
प्रश्नः-
गुरुदेव ने जब ध्यान के समय 24 बार गायत्री मंत्र बोलने की
शुरुआत की तब मैंने पूछा था। गुरुदेव, हम आपके साथ जब मन ही मन
मंत्र बोलते हैं तो इसका प्रभाव अधिक होता होगा?
गुरुदेवः-
निश्चित बेटे, मेरे साथ गायत्री मंत्र बोलने वाले को एक मंत्र
बोलने से 1000 मंत्र का लाभ होगा, क्योंकि मैं केवल बैखरी वाणी
से नहीं, मध्यमा व परावाणी से भी मंत्र बोलता हूँ।
‘‘क्या कुम्भ में हिमालय की बड़ी हस्तियाँ भी आती हैं?’’
श्री शान्तिलाल आनंद
घटना सन् 86 की है, परम पूज्य गुरुदेव तब सूक्ष्मीकरण साधना से निकले ही थे। श्री शान्तिलाल जी बताते है कि कुम्भ का समय था। मैं अपने एक मित्र कार्यकर्त्ता के साथ 3- 4 दिन के लिये शांतिकुञ्ज आया था। गुरुदेव हम दोनों को प्रायः सुबह- शाम बुलवा लेते।
तब चौका ऊपर ही था। वहीं खाना बनता, छत पर ही बैठकर सब खाना
खाते। गुरुजी का बुलावा न आ जाय इस भय से हम लोग पहले ही
खाना खाकर निपट लेते थे।
एक दिन पूज्यवर के पास बैठे हुए मुझे एक प्रश्न सूझा, मैंने कहा- ‘‘गुरुजी एक प्रश्न पूछूँ?’’ उन्होंने कहा- ‘‘हाँ बेटा! जो भी पूछना है पूछो। बिल्कुल पूछो।’’
मैंने कहा ‘‘हमने सुना है गुरुजी, कुम्भ के मेले में हिमालय से ऋषि- मुनी व अन्य बड़ी- बड़ी हस्तियाँ भी कुम्भ में स्नान करने आती हैं? क्या यह सच है?’’
‘‘हाँ बेटा! जरुर
आयेंगी। ये सभी हस्तियाँ स्नान के लिये आयेंगी पर किसी को नजर
नहीं आयेंगी। ये सूक्ष्म रूप से हवा में उड़ते हुए आती हैं और
स्नान करके वापस चली जाती हैं।’’ मैंने पूछा, ‘‘ऐसे ही दादा गुरुजी भी आयेंगे।’’ गुरुदेव ने कहा, ‘‘हाँ,...
यह जो तखत देख रहे हो न, स्नान के बाद इसमें, आकर हमारे पास
दादा गुरुजी बैठेंगे। हमारा वार्तालाप होगा और वे वापस सूक्ष्म
रूप से चले जायेंगे। किसी को नजर नहीं आयेंगे।’’
मेरी शंका का समाधान स्वयं गुरुदेव के श्रीमुख से हो चुका
था। कुम्भ की महत्ता, पौराणिक सत्यता सुनकर मन में किसी प्रकार की
कोई शंका नहीं रह गई थी।