राजनीति में हमारी भूमिका

शक्ति के साथ पवित्रता जरूरी

<<   |   <   | |   >   |   >>
        राजनीति की शक्ति निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है। उसका सुसंचालन जनता के लिए सब प्रकार श्रेयस्कर हो सकता है। संसार के जिन देशों का इन दिनों उत्कर्ष हुआ है, उनमें वहाँ की सुयोग्य सरकारों का बड़ा श्रेय है। राजनीतिज्ञों में सूझ- बूझ, कुशलता, क्षमता- योग्यता का होना आवश्यक है, इसके बिना शासन तन्त्र ठीक प्रकार नहीं चल सकता। पर इससे भी अधिक आवश्यक है, शासकों की ईमानदारी। यदि वे आदर्शों के प्रति निष्ठावान् होंगे, व्यक्तिगत जीवन में पवित्रता और सेवा का व्रत धारण किये हुए होंगे, तो कम योग्यता होने पर भी उनके कार्यों से जनता का अत्यधिक हित साधन होता चलेगा।   इसके विपरीत यदि वे आलसी, प्रमादी, लालची, अहंकारी और स्वार्थी हैं, तो फिर उनकी बड़ी से बड़ी योग्यता भी निरर्थक सिद्ध होगी। इतना ही नहीं, उनका व्यक्तित्व जनता के लिए हानिकर और भार स्वरूप ही सिद्ध होगा। सुशासन की छाया में किसी भी देश का आशाजनक विकास होना स्वाभाविक है। सुशासन की सबसे बड़ी कसौटी शासकों की सच्चरित्रता और आदर्शों के प्रति गहन- निष्ठा ही हो सकती है। जहाँ इस तथ्य में कमी रहेगी, वहाँ प्रकाशित घोषणाएँ एवं नीतियाँ कितनी ही आकर्षक क्यों न हों, उनके विपरीत ही काम होता रहेगा और उस जनहित को हानि पहुँचती रहेगी।   

        जिन लोगों की दिलचस्पी राजनीति में है उनका कर्तव्य है कि प्रशासन के हर क्षेत्र में ईमानदारी और आदर्शवादिता उत्पन्न करने का प्रयत्न करें। राजनीतिक दलों में से प्रत्येक की नीतियाँ और घोषणाएँ उत्तम हैं। इनमें से किसी का भी सहारा ईमानदारी के साथ लिया जाये, तो उससे देश का उत्थान ही हो सकता है। नीतियाँ किसी भी पार्टी की बुरी नहीं कहीं जा सकतीं। संसार के विभिन्न देशों ने विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम अपनाकर उन्नति की है। इस उत्कर्ष में वे नीतियाँ नहीं वरन् शासन तन्त्र की पवित्रता ही प्रधान कारण रही हैं। आदर्शों से भ्रष्ट लोग किसी भी शासन पद्धति को अपनायें, किसी भी रीति की घोषणा करें, परिणाम कुछ भी नहीं निकलेगा।   

        इसलिये आवश्यकता तो इस बात की है कि राजनीति के मर्मस्थल पर हमारा ध्यान हो। नेतृत्व उन लोगों के हाथ में सौंपा जाए, जो आदर्शवाद से अपने जीवन का हर पहलू ओत- प्रोत किये हुए रह सकें। सार्वजनिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन इस प्रकार के दो भेद करना उचित नहीं। कहा यह जाता है कि सार्वजनिक जीवन में मनुष्य को कर्तव्य पालन करना है, तो उसके व्यक्तिगत जीवन की अनैतिकताओं की ओर क्यों ध्यान दिया जाये? यह तर्क निरर्थक है। वस्तुतः चरित्र की सच्ची परीक्षा व्यक्तिगत जीवन में होती है। जो मनुष्य व्यक्तिगत- जीवन में दुराचार करता होगा और भ्रष्ट परम्पराएँ अपनाता होगा, वह सार्वजनिक जीवन में ईमानदार रह सके, यह कदापि सम्भव नहीं। आदर्शों के प्रति गहन आस्था जिसके जीवन में नहीं है उसके अनाचार व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित रहेंगे, इसकी कोई गारण्टी नहीं हो सकती।   

        शासन की पवित्रता उतनी ही आवश्यक है जितनी धर्म पुरोहितों की सदाचारिता। जो जितना महत्त्वपूर्ण कार्य है उसे उठाने के लिए उतनी ही उत्तरदायी एवं परखे हुए व्यक्तित्व अभीष्ट हैं। प्रजातन्त्र पद्धति के शासन में हर मतदाता का परम पवित्र कर्तव्य है कि वोट देते समय किसी लोभ या पक्षपात से प्रेरित होकर मतदान न करें वरन् आदर्शवादी व्यक्तित्वों को ही सर्वोपरि स्थान दें और यह भी देख- रेख रखें कि शासन तन्त्र में चरित्र भ्रष्टता तो बढ़ने नहीं लगी? यदि यह बुराई बढ़ रही होगी, तो अच्छी से अच्छी योजनाएँ और नीतियाँ निष्फल चली जायेंगी। भ्रष्टाचारी लोग अपने छोटे- छोटे स्वार्थों के लिए जनता का भारी अहित करने में भी संकोच नहीं करते। इसलिये यदि किसी राष्ट्र को अपना स्वस्थ विकास करना हो, तो शासनतंत्र की सच्चरित्रता का पूरा ध्यान रखें। प्रजा की ओर से अधिकारियों को प्रलोभन देकर कोई अनुचित कार्य कराने का प्रयत्न न किया जाय और कर्मचारी जनता को परेशान करने की शक्ति का दुरुपयोग करके जनता के शोषण की विवशता उत्पन्न न करने पायें। ऐसी व्यवस्था बनाना उन लोगों का कार्य है जिनके कन्धे पर शासन तन्त्र चलाने का उत्तरदायित्व पड़ा हुआ है।    

        राजनैतिक दृष्टि से हम सफल हुए या असफल? इसका एक ही प्रमाण हो सकता है कि शासनतंत्र के संचालकों और नागरिकों में कर्तव्यपरायणता एवं नैतिकता कितनी बढ़ी? इस कसौटी पर जो शासन खरा उतर सकेगा, उसे ही इस राजनैतिक सफलता का श्रेय मिलेगा। इतिहास साक्षी है कि जब भी, जहाँ भी, नैतिक दिवालियापन बढ़ा है तब उसका परिणाम सर्वनाश के रूप में प्रस्तुत हुआ है। इसलिये यदि राजनीति की प्रचण्ड शक्ति से राष्ट्र को लाभान्वित करना अभीष्ट हो, तो एक ही काम पर सर्वोपरि ध्यान रखें और वह है शासकीय कर्मचारियों की सज्जनता एवं उसके फलस्वरूप जनता में उत्पन्न होने वाली उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया। राष्ट्र इसी नीति पर चलते हुए उठते और बढ़ते हैं।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118