राजा राम मोहन राय

शास्त्रार्थों का महाभारत

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
जब विरोधियों ने देखा कि केवल गालियाँ देने से काम नहीं चल सकता और राममोहन राय की शास्त्रीय प्रमाणों से युक्त बातें पढ़कर कितने ही लोग उनके अनुयायी बनते चले जाते हैं, तो कुछ धनीमानी हिंदू और उनके सहारे पलने वाले पंडित पुस्तकें लिखकर उनको नीचे गिराने को तैयार हुए। कलकत्ते के एक भट्टाचार्य जी पंडित ने 'वेदांत चंद्रिका' नाम की पुस्तक छपवाई, जिसमें परमात्मा को 'शरीर वाला' सिद्ध करने की चेष्टा की थी। उनकी पुस्तक में प्रमाण तो बहुत कम थे, पर गालियाँ खूब दी गई थीं। राममोहन राय ने उसका उत्तर देते हुए लिखा- "भट्टाचार्य ने मुझ पर ताने कसे, बुरा- भला कहा और गालियाँ लिखीं, उनका मैं कोई उत्तर नहीं दे सकता। परमार्थ और परमात्मा के संबंध में विचार करते समय गंदी भाषा लिखना मैं अच्छा नहीं समझता। इसके अतिरिक्त गालियाँ देकर लोगों में अपनी जीत दिखाना मेरे उद्देश्य के विरुद्ध है। इसलिए भट्टाचार्य जी यह समझ लें कि उनकी गालियों का उत्तर दे सकने में तो अवश्य कमजोर हूँ। रह गई परमात्मा को 'शरीर वाला' बतलाना, सो मेरी समझ में ऐसी बात कहना वेद- शास्त्रों की हँसी उडा़ना है। कठोपनिषद्, मुंडकोपनिषद्, ईशोपनिषद् के वाक्यों तथा अनेक वेद मंत्रों से ईश्वर का निराकार होना स्पष्ट रूप से प्रकट होता है।"

फिर चैतन्य- संप्रदाय के एक गोस्वामी ने उनके विरुद्ध एक पुस्तक छाप डाली। उसमें कहा गया कि- "जब ब्रह्म की कोई 'उपाधि' और बाह्य लक्षण नहीं है तो वेद उसके संबंध में कोई निर्णय कैसे कर सकते हैं? राम मोहन राय ने उत्तर दिया- "वास्तव में जितने पदार्थ इंद्रियों से जाने जा सकते हैं, ब्रह्म उनसे भिन्न हैं। पर 'बृहदारण्यक' के अनुसार संसार की उत्पत्ति, स्थिति और नाश को देखकर तथा जड़ शरीर की चैतन्य सत्तायुक्त प्रवृत्तियों के आधार पर 'परब्रह्म्' के होने का पता लगता है।"

किसी 'कविताकार' ने भी एक पुस्तक छपा डाली और शास्त्रीय प्रमाणों के बजाय दूसरे ही ढंग से आक्रमण किया। उसने लिखा कि "पिछले दो- तीन वर्षों से जो पानी की बाढ़ आ रही है और कितने ही गाँव उससे नष्ट हो गये हैं, उसका कारण राममोहन राय का पाप ही है। न राममोहन शास्त्र- विरुद्ध प्रचार करते और न ये सब प्राकृतिक उत्पात होते।" राममोहन राय ने उत्तर दिया- "किसी का मंगल या अमंगल केवल अपने ही पाप- पुण्य से होता है। ईश्वर के विषय में तर्क करने या मूर्तिपूजा पर पुस्तकें लिखने से उसका कोई संबंध नहीं।" 'कविताकार' ने यह भी लिखा कि "राममोहन राय अपने को ब्रह्मज्ञानी कहते हैं, पर ब्रह्मज्ञानी तो एकांत में मौन रहा करते हैं।" इसके उत्तर में उन्होंने कहा- "जो हृदय से धर्म को प्यार करता है, वह बाहरी ढकोसला नहीं बढा़या करता, वरन् अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन- मनन करके दूसरों में भी उसका प्रचार करता है।" एक आक्षेप यह भी किया गया था कि "राममोहन राय पुस्तक छपाकर जो घर- घर बिकवाते हैं, यह पाप है।" राममोहन ने कहा कि मेरा यह कार्य शास्त्रों के अनुकूल ही है।

वेदार्थ यज्ञशास्त्राणि धर्म शास्त्राणि चैव हि। मूल्येन लेखायित्वायो दद्यादेति स वै दिवं।।

अर्थात्- "जो व्यक्ति वेदार्थ, यज्ञशास्त्र और धर्मशास्त्र मूल्य देकर लिखवाये और लोगों को देवे तो वह स्वर्ग को जाता है।"

"सुब्रह्मण्य शास्त्री नामक व्यक्ति ने भी प्रश्न किया कि- "ब्रह्मज्ञान के लिए वर्ण- व्यवस्था की आवश्यकता है या नहीं?" राममोहन राय ने उत्तर दिया कि- "यदि किसी ने वेद का अध्ययन न किया हो और वर्णाश्रम धर्म के आचारों का पालन न करता हो तब भी वह ब्रह्मविद्या का अधिकारी है और उसे परमपद प्राप्त हो सकता है।"

पंडित काशीनाथ तर्कपंचानन ने 'धर्म संस्थापनाकांक्षी' के नाम से कितने ही प्रश्न किए। उन्होंने पूछा- "सदाचारहीन ब्रह्मज्ञान के अभिमानियों का जनेऊ पहिनना क्या उचित है?" राममोहन राय ने उत्तर दिया- "इसमें 'सदाचार' शब्द का अर्थ स्पष्ट नहीं है। यदि उन्होंने इसका यह अर्थ माना हो कि अपने- अपने धर्मों के आचार- पालन का नाम सदाचार है, तो हम उन्हीं से पूछते हैं कि वे अपने 'सदाचार' का कितना पालन करते हैं? और यदि वे अपने शास्त्रोक्त आचार का पैसा भर भी पालन नहीं करते, तो पहले अपना जनेऊ उतारकर दूसरों का जनेऊ पहिनना अनुचित बतावें।"

"धर्म- संस्थापनाकांक्षी" ने यह भी कहा कि 'महाजनो ये न गतः स पंथा' के अनुसार महाजनों ने जो किया है, उसी का नाम सदाचार है। पर 'महाजन' कौन है, इसका निर्णय कौन करे? यहाँ तो सब अपने- अपने आचार्यों को बडा़ और दूसरों को छोटा मानते हैं। वैष्णव लोग जिसको 'महाजन' कहते हैं, शैव और शाक्त उसकी निंदा करते हैं। यही हाल सभी संप्रदाय वालों का है।

फिर काशीनाथ तर्कपंचानन ने एक धनी सनातनधर्मी के कहने से 'पाखंड- पीड़न' नामक एक बडा़ ग्रंथ लिखकर प्रकाशित कराया, जिसमें राममोहन राय को 'पाखंडी', 'नगरवासी बगुला', आदि अनेक अपशब्द लिखे गये थे। राममोहन राय ने बडी़ गंभीरतापूर्वक उसका सविस्तार उत्तर दिया, जिसका नाम था 'पथ्य- प्रदान'। इसमें तर्कपंचानन के प्रश्नों का उत्तर देते और बहुत- सी महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर विचार किया गया। उदाहरणार्थ, उन्होंने प्रश्न किया कि 'महाभारत एक धार्मिक उपन्यास (कथा ग्रंथ) है या नहीं? चैतन्यदेव विष्णु के अवतार हैं, इसका शास्त्रीय प्रमाण क्या है? सदाचार क्या है और उसका निर्णय कैसे हो सकता है?

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118