राजा राम मोहन राय
उन्नीसवीं सदी का समय भारतवर्ष के इतिहास में महान् परिवर्तनों का था। मुसलमानों का भारतव्यापी शासन टूट- फूटकर लगभग निर्जीव हो चुका था और उसका स्थान दूरवर्ती इंगलैंड ग्रहण कर रहा था। अंग्रेज शासक अपनी सेना और तोप- बंदूकों के साथ अपनी सभ्यता, संस्कृति और धर्म को भी लाये थे और इस बात के प्रयत्न में थे कि यहाँ के निवासियों में इनका प्रचार करके अपनी जड़ मजबूत की जाये। मुसलमानों ने भी हिंदुओं को अपने धर्म में दीक्षित करने की चेष्टा की थी, पर उनके साधन मुख्यतः तलवार और तरह- तरह के उत्पीड़न थे। इसके विपरीत अंग्रेजों ने अपने धर्म को शस्त्र- बल से थोपने की नीति से काम नहीं लिया, वरन् युक्ति, तर्क और प्रमाणों से ईसाई- धर्म की श्रेष्ठता और हिंदू- धर्म की हीनता सिद्ध करने का प्रयत्न किया और उनको अपने इस प्रयत्न में सफलता भी मिली।
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