परिवार को सुसंस्कृत कैसे बनाएँ ?_
शरीर में विभिन्न अंग होते हैं ।। दो हाथ, दो पाँव, दो नाक, दो कान, दो आँखें, बीस उँगलियाँ आदि ।। शरीर इन सभी अंगों को जोड़कर बना है, इसमें से कोई अंग कट जाए क्षत- विक्षत हो जाए पक्षाघात या लकवा लग जाए तो शरीर की शोभा और सौंदर्य मारा जाता है ।। कई बार यह विकृति सामान्य जीवन क्रम में भी कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है, उससे लोगों को कष्ट और दु :ख होते देखा जाता है ।।
ऐसा ही मनुष्य का एक शरीर- परिवार होता है ।। इसे सामाजिक शरीर कहेंगे ।। अपने परिवार में प्रवेश करके ही मनुष्य सामाजिक प्राणी बनता है ।। परिवार समाज का एक शरीर है ठीक वैसा ही जैसा एक व्यक्ति का शरीर, वह भी अनेक अंगों को जोड़कर बनता है ।। पत्नी, पुत्र- पुत्रियाँ भाई, ताऊ- ताई, भाभियाँ पिता एवं माता आदि शरीर की तरह परिवार शरीर के अंग हैं ।। यह सभी अंग यदि ठीक- ठाक काम करते रहते हैं तो परिवार में शांति, समृद्धि और सुव्यवस्था बनी रहती है, पर यदि घर का कोई व्यक्ति उच्छृंखल व्यसनी, दुर्बुद्धि आलसी, अनाचारी, कर्कश हो तो परिवार की शोभा और सौंदर्य नष्ट हो जाता है ।। शरीर के प्रत्येक अंग के विकास, स्वस्थ और होने से शरीर सुख मिलता है ।। जीवन की सुख- सुविधा के लिए भी उसके सब अंगों का स्वस्थ और सुविकसित होना आवश्यक है ।। ''
जिस प्रकार शरीर के विभिन्न कल- पुर्जे मिलकर होती है और उन सबके ठीक काम करने पर निरोगिता रहती है, उसी प्रकार परिवार का उचित गठन मानव- जीवन की सुव्यवस्था का ठोस आधार बनता है ।। .........