भारतीय संस्कृति में स्त्रियों के नाम के साथ ' देवी ' लिखने और संबोधित करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है । भगवती देवी, लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी, कमला देवी आदि नाम इस बात के प्रतीक हैं कि हिंदू विचारधारा में नारी को देव- श्रेणी की सत्ता के रूप में स्वीकार किया गया है ।
ऐसा अनायास ही नहीं हुआ । इस प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए नारियों ने चिरकाल से गहन तपश्चर्या की है । ' पुण्या कापि पुरंधी ', ' नारिकुलैक शिखामणि: ' अर्थात उसने अपनी संपूर्ण शक्तियों के चरम विकास द्वारा ही यह गौरव प्राप्त किया ।
लोक-कल्याण की विधायिका, पथ-प्रदर्शिका और संरक्षिका शक्ति का नाम ही देवी है। अपने इस रूप में भारतीय नारी आज भी उन प्राचीन गुणों को धारण किए हुए है, जिनके द्वारा अतीतकाल में उसने समाज के समग्र विकास में योगदान दिया था । यद्यपि वह तेजस्विता आज धूमिल पड़ गई है, तथापि यदि उस पर पड़े मल- आवरण के विक्षेप को हटा दिया जाए तो नारी सत्ता अपनी पूर्ण महत्ता को फिर से ज्यों की त्यों चरितार्थ कर सकती है ।