महाकाल और युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया

भावी विभीषिकायें और उनका प्रयोजन बच्चे जब बहुत शरारत करते हैं साधारण समझाने बुझाने से नहीं मानते तो अध्यापकों को उनको दूसरी तरह सबक सिखलाना पड़ता है । माता-पिता भी ऐसे अवसरों पर अपने बच्चों के साथ कड़ाई से पेश आते हैं और कई बार वह कड़ाई ऐसी कठोर होती है जो उन्हें बहुत समय तक याद रहती और फिर वैसी शरारत करने से रोकती है । साधारणतया पाप, दुष्कर्म न करने के लिये धर्म शिक्षा देने और अनीति से मन बिरत करने की प्रक्रिया चलती है । उससे बहुत लोग सम्भलते सुधरते भी हैं पर जो व्यक्ति उस पर ध्यान नहीं देते, उद्धत एंव उच्छृंखल आचरण करते हैं, अनीति बरतते और अपराध करते हैं उनके लिये राजकीय दण्ड व्यवस्था का प्रयोग किया जाता है । पुलिस उन्हें पकड़ती है, मुकदमा चलता है, न्यायाधीश भर्त्सनापूर्वक दण्ड व्यवस्था करता है अपराधी को जेल ले जाया जाता है और वहाँ उसे कोड़े मारने से लेकर चक्की, कोल्हू में चलने तक, फाँसी से लेकर आजीवन कारावास तक की यातना दी जाती है । उद्दण्डता का यही उचित परिष्कार है । सुधार के अन्य साधारण तरीके निष्फल हो जाते हैं तब दण्ड

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