देवियो, भाइयो! मैंने आपको शरीर की साधना के दो माध्यम बताए हैं- आहार और विहार। वैसे ही मन की साधना के भी दो माध्यम हैं- एक का नाम है- विवेक और दूसरे का नाम है- साहस। साहस और विवेक- इनकी जितनी मात्रा हम अपने भीतर इकट्ठी करते हुए चले जाते हैं, उतना ही हमारा जीवन विभूतियों से- समृद्धियों से, ऋद्धियों से और सिद्धियों से भरता हुआ चला जाता है। मित्रो! इस सम्बन्ध में मैं आपको इतिहास की बात बताना चाहता हूँ, कुछ घटनाएँ सुनाना चाहता हूँ।
विवेकवान् की रीति−नीति
समर्थ गुरु रामदास के ब्याह की तैयारियाँ चल रही थीं। बुआ ने कहा कि उनका ब्याह तो जरूर होना चाहिए। अम्मा ने कहा- ‘‘मेरे बेटे का ब्याह नहीं होगा, तो काम कैसे चलेगा?’’ ढोलक बजायी जा रही थी और हल्दी चढ़ाई जा रही थी। घोड़ी चढ़ाने के लिए बारात निकाली और बारात वहाँ जा पहुँची बेटी वालों के यहाँ। बेटी वालों के यहाँ मंडप सजाया गया। समर्थ गुरु रामदास व्याह करने के लिए वहाँ जा पहुँचे। एक पुरोहित ने कहा कि महाराज! यहाँ ब्याह करने पर एक आवाज लगाई जाती है। उन्होंने कहा- ‘‘लड़का लड़की सावधान’’! लड़के ने कहा कि पल भर की देरी है, लेकिन सावधान क्यों कहा गया? अरे! जीवन के