धार्मिकता में कांति के सबल तत्त्व
हमें अपने विकास के लिए इस जीवन के माध्यम से ही इसे रुपांतरित करके इसे बिल्कुल बदलकर प्रयत्न करना होगा ।। सामाजिक आदर्शवादी लोग, आदर्श और वास्तविकता के बीच दो व्यवस्थाओं के संघर्ष में विश्वास करते हैं, जो सारे धर्मां का सार है ।। आवश्यक परिवर्तन और संघर्ष का यह क्रांतिकारी कम चलता ही रहता है ।।
स्वयं परमात्मा एक सर्वोत्तम क्रांतिकारी है ।। वह चष्टा और पालनकर्ता के साथ विनाशकर्ता भी है ।। सृजन और विनाश की दैवी शक्ति के परस्पर आश्रित गुण हैं ।। यदि एक नई और अपेक्षाकृत अच्छी व्यवस्था खड़ी होनी हो तो पुरानी व्यवस्था को तोड़ डालना होगा ।। हम न केवल आध्यात्मिक जगत में अपितु राजनैतिक, सामाजिक, औद्योगिक जगत में भी ऐसी रूढ़ियों से घिरे हैं जो कभी जीवित थीं, परंतु अब निर्जीव हो चुकी हैं ।। अब केवल शासक उपायों से काम नहीं चलेगा, इस समय आवश्यकता एक क्रांतिकारी परिवर्तन की आमूल- चूल उथल- पुथल की है ।।
सब सुधार उन आंदोलनकारी, विदोही और क्रांतिकारी लोगों द्वारा किए गए हैं, जो पाखण्डों के जगत के विरुद्ध युद्ध करते रहे हैं ।। वे नए आंदोलन शुरू करते हैं, नए धर्म विज्ञान का प्रतिपादन करते हैं, नए संविधानों