कब्ज की सरल चिकित्सा

कब्ज दूर करने के प्राकृतिक उपाय

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डॉक्टर सेसिल वेव जानसन का मत है कि जुलाब बराबर लेने से पाचनशक्ति निर्बल हो जाती है, तथा ऐसी मलभेद औषधियों के सतत प्रयोग करने वाला चाहे वह नित्य सेवन करे या साप्ताहिक, भविष्य में दुर्बल स्वास्थ्य की नींव दृढ़ करता है। दवाई से दूर की गई कब्ज क्षणिक है। जब तक उसके मूल कारण को दूर न किया जाय स्थाई लाभ नहीं हो सकता।

कब्ज की प्राकृतिक रूप से चिकित्सा से ही स्थायी शांति प्राप्त होती है, दीर्घ जीवन बनता है, तथा सौन्दर्य पर निखार आता है। दवाइयों के द्वारा भगाया हुआ कब्ज ऊपरी चिकित्सा मात्र है। कुछ काल पश्चात् वह पुनः बीमारी के रूप में प्रस्फुटित हो उठता है।

आहार द्वारा कब्ज नाश— कब्ज से मुक्ति के लिए उसके उत्पन्न होने के कारणों को दूर करना अपेक्षित है। उन्हें सदा के लिए दूर कर दीजिए तथा फिर उन परिस्थितियों, खान पान के असंयम आदतों को कुटेव, गड़बड़ी को उत्पन्न न होने दीजिए। कब्ज सी आदत शारीरिक कार्य की अपूर्णता से सम्बन्धित है तथा यह गड़बड़ी आदत का एक अंश बनने से पहले ही उपाय करने से विलुप्त हो जाती है। प्रत्येक व्यक्ति को, अथवा प्राकृतिक चिकित्सक को सर्व प्रथम रोग का निदान करना चाहिये। स्मरण रखिये प्रत्येक व्यक्ति के लिये ये कारण पृथक-पृथक हो सकते हैं। रोगी को शरीर के पाचन एवं मल विसर्जन को संबंध में भी ज्ञान प्राप्त करना उचित है। अनेक रोगी सकारण से परिवर्तन, खुराक में परिवर्तन या व्यायाम मात्र से स्वस्थ हो जाते हैं।

चिकित्सा में सर्व प्रथम भोजन को लीजिये। रोगी किस किस प्रकार का भोजन करता है? भोजन में ऐसे तत्व तो नहीं हैं, जो कब्ज करने में सहायक हो रहे हैं? क्या रोगी पर्याप्त जल का प्रयोग करता है? भोजन के पश्चात् कहीं वह उद्विग्न हो, या जल्दबाजी में दफ्तर तो नहीं भागता? भूख न लगने पर भी वह ठूंस-ठूंस कर भोजन करता है? उसकी मनोवृत्ति अधिक उत्तेजक पदार्थ खाने की ओर तो नहीं है? इन प्रश्नों पर गम्भीरता से विचार कर रोग का निदान होना चाहिये।

भोजन की मात्रा के विषय में बड़ा अन्धकार फैला हुआ है। न कम न अधिक—उचित मात्रा में ही करने से भोजन द्वारा लाभ हो सकता है। धन सम्पन्न व्यक्ति मिर्च खटाई मसालों से भरे स्वादिष्ट भोजन करते हैं, जिह्वा के स्वाद में ठूंस-ठूंसकर खाते हैं। भूख लगे या न लगे, अच्छी मिठाई, चाप पकौड़ी देख कर आमाशय को आराम न देंगे। ऐसी आदतों का अध्ययन पूर्व ही करलें।

वही भोजन लाभदायक है, जो प्रकृति के समीप है, अर्थात् जिसे बहुत पकाकर अनेक मसालों से पूर्ण नहीं बनाया गया है। प्राकृतिक अवस्था में पाये जाने वाले भोजन में ही हमें उचित मात्रा में विटामिन तथा खनिज लवण प्राप्त होते हैं। प्राकृतिक पदार्थों में स्वयं कब्ज नाशक वस्तुओं का आधिक्य है। इनसे न केवल कोष्टबद्धता दूर होती है, प्रत्युत सौन्दर्य में वृद्धि होती है, आंतें सशक्त बनती हैं, शरीर की रोग निवारक शक्ति में अभिवृद्धि होती है, हृदय, दिमाग, पाचन शक्ति, गुर्दे और फेफड़े निज कार्य प्राकृतिक रूप में करते हैं। उन पर अधिक बोझ नहीं पड़ता। प्रकृति हमें स्वयं रोग से बचाने का प्रयत्न करती है। भोज्य पदार्थों को खराब कर हम रोग मोल लेते हैं। कब्ज उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थ— कब्ज बढ़ाने में सहायता देने वाले भोजनों में मैदा मुख्य है। आटा जितना बारीक पीसा जायगा, वह उतना ही विटामिन हीन होगा, चोकर नष्ट हो जायगी, तो देर से पचेगा। मैदा के बने अधिकतर पदार्थ कब्ज करेंगे। बिस्कुट, डबलरोटी, मांस, वनस्पति घृत, तरह-तरह की मिठाइयां, जो प्रायः मैदा की बनती हैं, अधिक मिर्च मसाले वाले पदार्थ, सिगरेट, चावल, साबूदाना, अरारोट, पनीर इत्यादि कब्ज करने वाले हैं। फलों में अनानास, केला, लीची, कब्ज करने वाले हैं। सिंघाड़ा ठण्डा होने के कारण कब्ज कर देता है। चना देर में पचने वाला भारी अनाज है। तरवतर हलुवे, पूड़ी कचौड़ी मिर्च-मसाले युक्त चाट-पकौड़ी, बासी रोटी, तेल युक्त अचार, मुरब्बे, तामसिक तथा गरिष्ठ भोजन, आलू अरबी, भिंडी, शकरकंद इत्यादि देर में पचते हैं। शराब, चाय और तंबाकू कब्ज में वृद्धि करती हैं। चाय के अंदर टैनिन पदार्थ अलव्यूमन तत्व को कठिन बना देता है और काबिज है। इनके अतिरिक्त आधुनिक सभ्य समाज के अनेक नवीन खाद्य पदार्थ जैसे—अण्डे, पनीर, अरारोट, कार्न फ्लावर, हैपिओका, सेम, नये आलू, अखरोट, शर्करा का अधिक उपयोग है। इन सभी से यथाशक्ति बचते रहें।

कब्ज दूर करने वाले पदार्थ— अनाजों की चोकर, दालों की चोकर तथा तरकारियों के ऊपरी छिलके, पत्तियां अपना विशेष महत्व रखती हैं। इनके प्रयोग से कब्ज उत्पन्न नहीं होता। प्रकृति का कुछ ऐसा नियम है कि तमाम दालों के, फलों के छिलकों में अमूल्य कब्ज नाशक शक्ति भर दी गई है। तरकारियों के छिलकों में खुज्जा यथेष्ट मात्रा में विद्यमान रहता है। यदि आपके भोजन में खुज्जा काफी रही तो मल आसानी से आंतों में चला जाता है और खुश्की नहीं आ पाती। खुज्जा गेहूं के आटे की चोकर, चावल के कन, फल और तरकारियों के छिलकों में अत्यधिक होती है। इसका भोजन हर प्रकार की कब्ज दूर करता है।

श्री सालिग राम पथिक, चोकर के महत्व के विषय में लिखते हैं—‘‘ताजे बढ़िया अन्न और हरी तरकारियों पर रहने वाले ग्रामीण आज भी संतरे का रस पीने वाले लोगों से अधिक स्वस्थ हैं। कारण स्पष्ट है। उनकी रोटी बहुत कुछ प्राकृतिक गेहूं जैसी होती है। यह रोटी घर की चक्की से पिसे गेहूं, बाजरे, के मोटे आटे से पतली मुकरियों या कण्डों की पतली-पतली आंच पर बनी होती हैं। वे काफी मोटी होती हैं और हमारे शहरी करारे फुलकों की तरह निरी कोयला नहीं हो जाती। गरीबी के कारण चोकर को या तो आटे के अन्दर ही रहने दिया जाता है या दुबारा अनाज में मिलाकर पीस लिया जाता है, अर्थात् अनाज को पूरी तरह खा लिया जाता है। इधर आटा बिजली की चक्की में मैदा सदृश पिस कर आता है, जिसमें अत्यधिक गर्मी के कारण गेहूं के विटामिन तथा उत्पादक अंश बहुत कुछ नष्ट हो जाते हैं। तब वह आटा बारीक चलनी से छाना जाता है और भूसी को पैसे दो पैसे में बेच दिया जाता है। इस आटे की पतली पतली चपाती तेज आग पर बनती हैं... इनमें क्या रह गया? इसी प्रकार सब्जियों की हत्या की जाती है।’’ छिलके क्या हैं? फलों, तरकारियों, अनाजों की जान। ये वे अमूल्य पदार्थ हैं, जिनमें प्रकृति ने बहुमूल्य खाद्य पदार्थों की शक्ति भर डाली है। यदि हम पौष्टिक तत्व प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें चोकर को, सब्जियों और फलों के छिलकों को, घी से भी अधिक महत्व पूर्ण समझना चाहिये। ये पदार्थ मल को बाहर निकालने में अत्यधिक सहायता प्रदान करते हैं। प्रतिदिन 2.5 तोला चोकर अपने आटे में मिलाकर प्रयोग करें। कब्ज रफूचक्कर हो जायगा।

अन्न, फल, तरकारियों के छिलकों से उदर की सफाई की क्रिया तीव्र गति से होती है।प्रायः गाय, भैंस इत्यादि को अनाज की चुनी, चने के छिलके इत्यादि पदार्थ दिये जाते हैं। इसका रहस्य यही है कि चोकर यथेष्ट मात्रा में पहुंचे तथा पेट साफ रहे। कब्ज के रोगी को गेहूं के आटे की चोकर, चावल के कण, फल तरकारियों के छिलके, पत्तीदार सब्जियां जैसे, पालक, मेंथी, बथुआ, मूली के पत्ते अधिक लेने चाहिये। छिलकों की खुज्जा जीर्ण कब्ज तक को दूर कर देती है। तरकारियों को छील कर उनका ऊपरी भाग नष्ट न करें। आलू, मूली, शलजम, गाजर, लौकी, कद्दू, तोरई इनकी ऊपर की त्वचा बहुमूल्य है। उसे नष्ट न करें। यदि आपका मन तरकारियों के छिलकों से हटता है, तो उन्हें कम से कम छीलना चाहिये। सेब, नाशपाती, खीरा, ककड़ी, अमरूद, टमाटर तो बिना छिले ही प्रयोग में लाने चाहिये। पालक की पत्तियां, पोदीना, धनिया, हरी दशा में खाने से लाभ होता है। अंग्रेजों में सलाद की हरी पत्तियां खाने की प्रणाली अनुकरणीय है। हम चाहें तो अदरक, प्याज, पालक, मूली, शलजम इत्यादि को प्राकृतिक दशा में प्रयोग कर सकते हैं। प्याज आयुवर्द्धक और पौष्टिक है। जिन्हें इसके परहेज न हो, वे कच्ची प्याज तथा प्याज की पत्तियों का प्रयोग करें। मूली के वृक्ष पर लगने वाले मूंगरे या सोंगरे कब्ज नाशक हैं। इसी प्रकार सेम की फलियां, लोभिये की फलियां, सेऊ चना कच्ची दशा में प्रयुक्त हो सकते हैं।

साक-सब्जियों को अधिक उबालना, उबला पानी फेंक देना अधिकाधिक भूनना उनकी स्वाभाविक जीवनदायिनी शक्ति को विनष्ट करना है। जो खाद्य पदार्थ जितना अधिक भुना जायगा, उसकी उतनी ही शक्ति नष्ट हो जायगी। तेल में तले हुए पदार्थ मृत प्राय हैं। वे आंतों में चिपकते हैं कब्ज करते हैं।

फल तथा सब्जियों के सलादों का प्रयोग— प्राकृतिक रूप में भोजन में कब्ज दूर करने की स्वाभाविक शक्ति निहित है। जानवरों को या तो कब्ज होता ही नहीं, होता भी है तो शीघ्र ही ठीक हो जाता है। जो भोजन (शाक भाजियां, फल, अन्न) अपनी प्राकृतिक दशा में लिया जाता है, वह शीघ्र पाची होता है।

शाक-भाजियों तथा फलों के सलादों में कब्ज दूर करने की अद्भुत क्षमता है। गाजर, मूली, अदरक, ककड़ी, शलजम, टमाटर, खीरा, प्याज इत्यादि यदि कच्चे प्रयोग में लाये जायं, तो वे कब्ज को स्वभावतः ही विनष्ट करते हैं। इन तरकारियों तथा फलों के स्वादिष्ट सलाद बना कर दोनों बार भोजन में काम में लेना चाहिये। एक बार के भोजन में तीन छटांक सलाद रखने का क्रम रहना उचित है।

सबसे स्वादिष्ट और कब्ज नाशक सलाद प्याज, टमाटर, अदरक और मूली का होता है। इन सभी वस्तुओं को बारीक काट लें। टमाटर की खटाई से यह मिलकर एक अजीब प्रकार का स्वाद प्रदान करेगा। टमाटर को लौकी की भांति काट कर महीन मसाला मिलाकर प्रयोग करें। यदि टमाटर पका है तब तो सर्वोत्कृष्ट है ही, यदि कच्चा भी हो तो उसके बारीक टुकड़े काट कर प्रयोग में लेना चाहिये। ऊपर से धनिये की पत्तियां उपयोग में लाई जा सकती हैं। मिर्च से सावधान! जितना कम इसका प्रयोग करें, वही ठीक है। मिर्च उत्तेजक और तामसी है। मिर्च खाने से जीभ में इतना दर्द होता है कि भोजन ठीक तरह चबाया भी नहीं जा सकता। मुंह में पर्याप्त लार भी नहीं सम्मिश्रित हो पाती। बिना पिसा भोजन निगल जाने से आंतों पर अधिक बोझ पड़ता है। इससे पेचिश हो जाना निश्चित है। काली मिर्च का प्रयोग कर सकते हैं। यदि हरी मिर्च मिलती हो तो कम मात्रा में महीन-महीन काट कर उसका प्रयोग किया जा सकता है।

सलादों में आप टमाटर या नीबू की खटाई का प्रयोग करें। टमाटर एवं नीबू दोनों ही में अद्भुत शक्तियां हैं। पहले नीबू को ही लीजिये। कागजी नीबू, जम्भारी नीबू, खट्टी नारंगी तथा संतरा इन सब में साइट्रिक ऐसिड मौजूद है। इसके अतिरिक्त इनमें बहुत से प्राकृतिक लवण, पोटाश, फास्फोरस इत्यादि भी हैं जिनसे रक्त शुद्ध होता है तथा अम्लता कम होती है। नीबू यद्यपि खट्टा है पर इसका प्रभाव एवं लाभ रक्त की अम्लता को नष्ट करता है। अग्निमांद्य, अपच एवं पेट के अन्य रोगों के लिये नीबू औषधि स्वरूप है। प्रातःकाल एक गिलास गर्म जल में नीबू का रस पीने से कब्ज दूर होता है। सेब और केले के सलाद के साथ नीबू का प्रयोग उत्तम है। कब्ज के अतिरिक्त रक्तचाप के आधिक्य को दूर करने में, मोटे को पतला करने में नीबू उत्तम है।

नीबू मिश्रित जल से एनिमा लेने से पेट साधारण जल की अपेक्षा आन्तरिक सफाई अच्छी तरह करता है। यदि मल में विषैले कीटाणु, लम्बे सींक जैसे सफेद कीड़े या जीर्णता हो तो वह भी दूर हो जाते हैं। सेर डेढ़ सेर जल में गुनगुना कर छटांक भर नीबू का रस मिश्रित करना चाहिए।

नीबू का कल्प भी किया जाता है। साधारणतः दो-दो नीबूओं का रस पिलाया जाता है। यदि प्रतिदिन रोगी इस प्रकार का ढाई-तीन सेर जलपान करले तो कब्ज दूर हो जाता है। नीबू के प्रयोग से आन्तरिक स्वच्छता होकर मुंह की झांई, मुंहासे विलुप्त हो जाते हैं, दाद, खाज, त्वचा की फुन्सियां दूर हो जाती हैं। रक्त में निखार हो जाने से सौन्दर्य निखर उठता है।

भोजन के पश्चात जायका सुधारने के लिए एक कागजी नीबू चूसना हितकर है। इससे भोजन के पाचन में यथेष्ट लाभ होता है। लार अन्दर जाती है। कब्ज के रोगी को नाश्ते के स्थान पर नीबू के रस और शहद के गर्म शर्बत का प्रयोग करना चाहिये।

कब्ज टमाटर से भय खाता है क्योंकि इसमें विटामिन ए तथा बी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसमें प्राकृतिक लवणों का आधिक्य है। लोहे की मात्रा दुग्ध से दूनी होती है, तथा चूने के दृष्टिकोण से यह सेब केले से भी श्रेष्ठ है। हृदय दौर्बल्य को दूर करने के अतिरिक्त टमाटर भूख की अभिवृद्धि करता है तथा पाचन शक्ति को तीव्र करता है। कब्ज के रोगी को टमाटर का रस पीना चाहिये। छोटे-छोटे टुकड़े काट कर थोड़ा नमक छिड़ककर प्रायः नाश्ते में उपयोग करें अथवा फल की भांति प्रचुर मात्रा में उपयोग में लायें। दोनों समय भोजन में एक प्लेट बिना पके टमाटर का सलाद रक्खा करें। इसमें पोदीना धनिया या अदरक मिश्रित कर लिया करें। टमाटर का रस ज्वर की गर्मी को भी दूर करने में गुणकारी है। टमाटर का रस जल के साथ मिश्रित कर लेने से उपवास काल में अन्दरूनी सफाई हो जाती है। टमाटर के विटामिन तथा कब्ज नाशक रूप में प्रयोग के लिये इन्हें ताजा तथा बिना पके ही प्रयोग में लाना चाहिये।

टमाटर, अदरक, नीबू के पश्चात् कब्ज नाशक फलों में पपीते का विशेष स्थान है। इसमें कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं कि तीन-चार घण्टे पश्चात् सब कुछ पच कर पुनः क्षुवा प्रतीत होने लगती है। कब्ज दूर करने के लिये प्रातःकाल एक पपीता का नाश्ता करें, कुछ दूध पी लिया करें। पेट की अच्छी सफाई हो सकेगी। पपीते में प्रस्तुत पेप्सिन नामक पदार्थ भोजन को शीघ्रता से पचाने की शक्ति रखता है तथा कब्ज दूर करता है।

अमरूद पेट की सफाई के लिये उत्तम फल है किन्तु इसका ऊपरी छिलका तथा बीज भी खा लेने चाहिये। ये बीज पेट में नहीं रहते। जब मल के रूप में बाहर आते हैं, तो अपने साथ जीर्ण मल निष्कासन करते हैं। प्रतिदिन एक अमरूद का सलाद खाने से आप कब्ज से मुक्त रहेंगे। प्रातःकाल के भोजन के पश्चात् भी अमरूद खाया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि वह भोजन में मिल जाय, जिससे अपना चमत्कार प्रदर्शित कर सके।

गाजर इतनी सस्ती सब्जी है कि लोग इसके महत्व को नहीं समझते। इसमें कब्ज नाशक गुण प्रचुरता से हैं। इसका प्रभाव देर से किन्तु व्यापक होता है। यह संचित मल को खुरच कर बहिर्गत करती है। इसमें कैरोटीन नामक तत्व भी विद्यमान है, जो कब्ज के साथ समस्त रोगों को दूर करता है। डॉक्टर विट्ठलदास मोदी के अनुसार कुछ दिन केवल गाजर तथा दूध ग्रहण करने से पुराने से पुराना दाद, खाज, एक्जिमा और उकबत से पिंड छुड़ाया जा सकता है।

संक्षेप में, गाजर, मूली, केला, अमरूद, नासपाती, सेब, खीरा, ककड़ी, पालक, हरा धनिया, टमाटर, प्याज इत्यादि फल तरकारियों का प्रयोग कच्चा ही करना श्रेयस्कर है। परवल, लौकी (घीया), नेनुआ, तोरई, शलजम, सहजन, सेम, सींगरा, लोभिया इत्यादि को कम पकाइये, जिससे उनके विटामिन पदार्थ एवं रेचक गुण नष्ट न हो जायं। खीरा, नासपाती, अमरूद इत्यादि के बारीक टुकड़े काट कर, टमाटर मिश्रित कर सुस्वादु चाट बनाइये। हरी तरकारियों में सलाद, पालक, प्याज के हरे पत्ते, बथुआ का प्राकृतिक रूप में प्रयोग कीजिये। सरसों, मूली के पत्तों, बथुवे, चने के हरे पत्तों का साग बनाने की प्रथा पंजाब में प्रचलित है। यह कब्जनाशक है। उबली हुई तरकारी का जल कभी न फेंकना चाहिये। इसमें फल तरकारियों का सार तत्व निचुड़ आता है।

पत्तीदार सब्जियां जैसे पालक, बथुआ, मेथी इत्यादि में स्वभावतः रेचक गुण विद्यमान हैं। इसमें फुजले का अंश कब्ज को दूर करता है। तरकारियों की ऊपरी त्वचा, रेशे स्वयं तो पचते नहीं, जीर्ण मल को तोड़ देते हैं। अतः ऊपरी छिलके सहित उनका प्रयोग लाभदायक है। पालक का उपयोग अधिक कर दीजिए। यदि हो सके तो थोड़ा थोड़ा कच्चा खाने का अभ्यास डालिये। रात्रि में सोते समय आधी छटांक पालक खाने से लाभ होता है। प्रातः शौचादि की स्वच्छता होता है। रक्त की क्षीणता के कारण शरीर में लोह अंश की जितनी पूर्ति पालक से होती है, दूसरी पत्ती वाली सब्जी से नहीं होती। इसी प्रकार के रेचक गुण बथुए, मेथी, नेनुआ इत्यादि में हैं। इनके सेवन से रक्त में क्षार की मात्रा अधिक होकर वह परिष्कृत हो जाता है। हरी पत्तियों के सलादों में पालक, चौराई, कुल्फा, बथुआ, सरसों चना, खेसा, मटर, लाल साग, प्ररसा, लेट्यूस, मेथी, सोया आदि का साग, कुसुम, धनिया, पोदीना, तुलसी की पत्ती, बेल की पत्ती शलजम की पत्ती इत्यादि की नरम पत्तियों का चुन कर स्वच्छ करलें तथा जल में स्वच्छता से धो डालें। किसी चीनी या पत्थर के बर्तन में बारीक काट लें। ऊपर टमाटर, नीबू सन्तरे का रस या दही डालें और पांच मिनट पश्चात् सुस्वादु सलाद का जायका लें। कब्ज जड़मूल से जाता रहेगा।

मौसमी तरकारियां जैसे—खरबूजा, तरबूजा, फूलगोभी, गांठगोभी, खीरा, ककड़ी, मूली, गाजर, चुकन्दर इत्यादि के सलाद काम में लें। कुछ तरकारियों के रायते बड़े जायकेदार होते हैं। इन्हें कच्चा या थोड़ा पकाकर रायते बनायें। रायतों में आप बथुआ, हरा धनिया, कद्दू, खीरा, पपीता, ककड़ी का प्रयोग करें। राई का अचार बनायें। उसे पिया करें। फलों के सलादों के लिए केला, पपीता, आम, अमरूद, संतरा, नारंगी, मौसमी, सेब, नासपाती, मकोय, पका बेल, शरीफा, अंगूर, रसभरी तथा बेर प्रमुख हैं। सूखे सेबों के भी सलाद बनाये जाते हैं। इनमें मुनक्का, किशमिश, दुआरा, बादाम, पिंड खजूर, अंजीर, पका गूलर, नारियल की गिरी, बीज इत्यादि को भिगोकर उसमें टमाटर या नीबू का रस मिश्रित करलें। घी या मधु डाल लें या दही में मिलाकर रायता बनालें। इसका प्रयोग कब्ज न होने देगा।

हरे अन्नों के सलाद बनाया कीजिए। इनमें हरे चने, मटर, अरहर, खेसारी, उड़द, सोयाबीन, मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूं कुचल लें बाद में हलका नमक मिर्च कागजी नीबू मिला लें। भीग कर वे हरे अन्नों की तरह काम में लाये जायेंगे। इनमें चने और लोबिया प्रमुख हैं। अंकुरित चने खाया कीजिये।

मिश्रित सलादों में पत्तियों, तरकारियों तथा फलों का सम्मिश्रण रखना चाहिये। कुछ पत्तियों वाले साग ले लीजिये। कुछ तरकारियां जैसे—गोभी, मूली, चुकन्दर, कुछ फल जैसे—अमरूद, टमाटर, सूखे मेवे, अंजीर, सेब, नासपाती ले लें। इनको बारीक काट लें। कुछ प्याज, टमाटर, नीबू का रस या अदरक मिश्रित कर लें—यह बड़ा गुणकारी सलाद हैं।

आदर्श भोजन में 12 छटांक ताजे फल तथा साग-सब्जी, 8 छटांक दूध, ढाई छटांक अन्न, डेढ़ छटांक घी या मक्खन, 1 छटांक सूखे फल मेवे इत्यादि रखने चाहिये। दही भू-लोक का अमृत है। कब्ज वाले को दही का खूब प्रयोग करना चाहिए। रात्रि में शयन से पूर्व आध सेर दूध पीना चाहिये। यदि कब्ज जीर्ण हो, तो 20 मुनक्का खाकर पियें या मुनक्का दूध में उबाल लें और उन दोनों ही चीजों का प्रयोग करें। कब्ज वालों को दाल कम खाना चाहिये, सब्जी और फल अधिक। आलू का प्रयोग कम करें। चावल कम लें। रात्रि का भोजन हलका रक्खें। गुड़ दस्तावर है। भोजन के पश्चात् थोड़ा गुड़ अवश्य ले लिया करें।

व्यायाम द्वारा कब्ज से मुक्ति— आलस्यमय जीवन उदर की आन्तरिक व्यवस्था को बिगाड़ देता है। प्रकृति हमसे श्रम तथा क्रियाशीलता चाहती है। जो जानवर चलते-फिरते, भागते, तैरते या उड़ते रहते हैं, वे कभी कब्ज से पीड़ित नहीं रहते। हमारे पूर्व पुरुष न साइकिल का प्रयोग करते थे, न पग-पग पर रिक्शा या तांगे का। उनकी टांगें ही उनका भार इधर-उधर ले जाती थीं।

सभ्यता के साथ मनुष्य आलसी और साइकिलों का गुलाम बना। उसका स्वास्थ्य बिगड़ा। यदि मनुष्य चलता-फिरता रहे, घण्टों कुर्सी पर या दुकान पर न बैठा रहे, तो वह गरिष्ट पदार्थ भी पचा सकता है, किन्तु आधुनिक युग में तो लोग क्रियाशीलता से भयभीत होते हैं।

व्यायाम वह साधन है जिसके द्वारा पेट की व्यवस्था ठीक रहती है। खूब खेलिये-कूदिये, तैरिये। टहलने का क्रम जीवन का महत्वपूर्ण अंग बना लीजिए। आप किसी न किसी दौड़ने वाले खेल में भाग लीजिये। तैरना सीखिये, तैरने से पेट की अच्छी कसरत हो जाती है। व्यायाम से शरीर के रग रेशे में रक्त का संचालन ठीक रूप में होने लगता है। पेट की कसरतें बड़ी आवश्यक हैं। कसरत का नियम स्मरण रखिये। जिस अंग से अधिक काम लिया जायगा, वह दृढ़ तथा शक्तिशाली बनेगा, जिसे निष्क्रिय छोड़ दिया जायगा वह धीरे-धीरे अपनी स्वाभाविक शक्ति नष्ट कर देगा। यदि हम कसरत द्वारा रक्त संचालन को नित्य उत्तेजित करते रहें, तो रक्त की गति स्वाभाविक रहती है, स्नायु रज्जु कमजोर नहीं हो पाते।

पेट के लिये यौगिक आसनों के व्यायाम श्रेष्ठ हैं। वे सभी आसन्न उत्तम हैं, जिससे पेट पर जोर पड़ता है और अन्दर के हिस्सों की कसरतें होती हैं। पांव ऊपर उठाना, झुकना, टेढ़ा होना या बैठ कर पांव फैलाकर उन्हें हाथों से छूना बड़े लाभ के प्रयोग हैं। आसनों में शीर्षासन तथा सर्वांग आसन पाचन संस्थान के लिये उपयोगी हैं। शीर्षासन द्वारा पाचन संस्थान की क्रिया भी शुद्ध हो जाती है, यकृत, प्लीहा और गुर्दे की सभी त्रुटियां दूर हो जाती हैं। सर्वांग आसन मन्दाग्नि, अजीर्ण तथा क्षुधाहीनता के लिए लाभकारी है। कब्जियत में यह आसन मत्स्यासन के साथ आश्चर्यजनक लाभ पहुंचाता है। आसनों के व्यायाम की पूरी जानकारी के लिए निम्नलिखित ग्रंथ पढ़ने चाहिये— (1) ‘‘आसन’’—लेखक-डॉक्टर बालेश्वर प्रसाद सिंह प्रकाशक—स्वास्थ्य ग्रन्थ भण्डार बादशाही मण्डी, प्रयाग।

(2) आसन तथा प्राणायमा—लेखक-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अखण्ड ज्योति कार्यालय, मथुरा।

शरीर की आभ्यान्तरिक स्वच्छता के लिये प्राचीन योगियों की छह क्रियाएं—नौलि, नेति, धौति, वस्ति, कपाल-भाती और त्राटक बड़ी उपयोगी है। नौली पेट की सफाई के लिए सबसे उत्तम है। धौति और वस्ति एनिमा का प्रतिनिधित्व करती है। ये दोनों क्रियाएं किसी विशेषज्ञ के द्वारा ही सीख कर उपयोग में लानी चाहिये। आसनों के शास्त्रीय प्रयोग से शरीर यन्त्र का मल विसर्जन कार्य ठीक होता है। योगासनों से भीतरी ग्रन्थियां निज कार्य उत्तमता से सम्पन्न कर सकती हैं। ये युवावस्था बनाये रखने तथा वीर्य रक्षा में सहायता रहते हैं। इनसे पाचन संस्थान पुष्ट होते हैं तथा पेट की पूर्ण सफाई हो जाती है। योगासन पेशियों को बल देते हैं। ऊपरी पेशियों में तनाव उत्पन्न करके मोटे व्यक्ति को दुबला तथा दुबले को मोटा बनाते हैं। योगासन स्त्रियों की शरीर रक्षा के विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक् विकास, सुधरता, संतुलन, गति सौन्दर्य आदि गुण उत्पन्न करते हैं।

योगासनों से कब्ज नहीं रहता। दिमाग काफी ताजा रहता है और धारणा शक्ति को नवीन स्फूर्ति प्राप्त होती है। ऊपर उठाने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं। तथा आत्म सुधार भी दृढ़ता से चलता है। इनमें श्वांस क्रिया का नियमन होता है, हृदय और फेफड़े को बल मिलता है, रक्त शुद्धि होती है, मन में स्थिरता और संकल्प शक्ति में अभिवृद्धि होती है। योगासन मनुष्य को ब्रह्मचारी संयमी और आहार-विहार में मध्य मार्ग अनुकरण करने वाला बनाते हैं। अतः मन तथा शरीर को सम्पूर्ण स्थायी स्वास्थ्य प्रदान करते हैं।

अपनी रुचि के अनुकूल कुछ ऐसी कसरतें चुन लीजिये जो उन आंतों की कसरत करदें, जिनमें मल भरा रहता है। यह नाभि के तीन ओर हैं। नाभि के दाहिनी ओर नीचे से ऊपर की ओर आती है तथा वहां से बांए तरफ बांई कोख तक पहुंचती है, फिर नाभि की ओर उतरती है। आपका व्यायाम ऐसा हो जो इस आंत को सशक्त बनावे। ऐसी कसरतें करें जिनमें पेट पर जोर पड़े। जैसे सीधे खड़े होकर धीरे-धीरे कमर के बल झुकना या आगे झुककर अपने पांव छूने का प्रयत्न करना। भागने—दौड़ने तथा तैरने में आंतों का व्यायाम होता है। लेट कर पांव ऊंचे करना उपयोगी है। सवेरे शाम दो-दो मील टहल कर आप आंतों को क्रियाशील बना सकते हैं। आज के युग के लिये टहलने से बढ़ कर सरल और दूसरा सुन्दर व्यायाम नहीं है। फुटबाल, हाकी, बौलीबाल इत्यादि भागने दौड़ने वाले सभी खेल कब्ज दूर करते हैं।

डा. विट्ठल दास मोदी के अनुसार आंतों को मजबूत बनाने की एक और युक्ति है—उन्हें ठंडक पहुंचाना। एक मोटा सा तौलिया चौपर्त कर छह इंच चौड़ा तथा एक फुट लम्बा बना लें और ठंडे पानी में भिगो कर और हलका सा निचोड़ कर पेड़ू पर अर्थात् नाभि के नीचे 15-20 मिनट तक रक्खें। मिट्टी की पट्टी का भी प्रयोग अति लाभदायक है। ठण्डक का कोई भी प्रयोग टहलने जाने से पूर्व करें। पहले ठण्डक फिर टहलकर गर्मी लाने का यह प्रयोग आंतों को शीघ्र सजग कर उन्हें अपना कार्य तेजी से करने में प्रवृत्त करता है।

जल के प्रयोग— कम जल पहुंचने से आमाशय सूख जाता है भोजन में तरलता आवश्यक है। कब्ज के सभी रोग कम पानी पीने से इस रोग के शिकार होते हैं। पानी का प्रयोग यथेष्ट मात्रा में करें। भोजन के साथ थोड़ा पानी पिएं। एक घण्टे पश्चात् आध सेर जल लें। पूरे दिन में लगभग तीन सेर पानी शरीर से पहुंचना चाहिये। सोते समय एक गिलास ठण्डा पानी पीने का क्रम रक्खें और प्रातःकाल शय्या त्यागने से पूर्व ही बिस्तर पर बैठे-बैठे एक गिलास बासी पानी पीकर उषःपान करें। पेट में पचते समय अर्थात् भोजन करने के लगभग डेढ़ घण्टे पश्चात् जब भोजन आंतों में जाने योग्य हो जाता है। उसके पश्चात् वह जितने ही पतले घोल के रूप में रहेगा उतना ही वह शीघ्र पचेगा। आंतों को उसके साथ उलझे रहने की आवश्यकता न होगी। जल के प्रवाह की गति से भी मल आगे अग्रसर होगा। अतः दिन रात में कम से कम तीन सेर जल उदर में पहुंचना आवश्यक है। इससे पेट में नमी बनी रहती है। सवेरे आध सेर जल पीकर 10-15 मिनट पश्चात् शौच जाने से कब्ज जादू की तरह दूर हो जाता है। जल पीने के पश्चात् बैठे रहने की अपेक्षा टहलना उत्तम है। प्रायः उषःपान कर बिस्तर में लोटना जल की अंतड़ियों के हर भाग में पहुंचा देता है। शौच जाने से पूर्व खड़े होकर बारी-बारी से दोनों हाथों को 5-7 बार ऊपर सानने से आंतों में गति उत्पन्न होती है तथा शौच साफ होता है।

प्रकृति की पुकार की अवहेलना न करें— अधिकांश व्यक्ति मल की हाजत रोकने के कारण कब्ज के शिकार हैं। यदि हाजत के समय शौचादि से निवृत्त न हो तो मल कड़ा हो जाता है तथा आंतों में बुरी तरह चिपक जाता है, कठिनाई से उतरता है, अटट्टी देर में लगती है, आराम नहीं मिलता और वायु निकला करती है। अतः शौच की आदत डालें, हाजत की राह न देखें। हाजत तो उन्हें होती है जो उसकी पुकार सुनते हैं। कोई समय निश्चित कर दो बार शौच अवश्य जायं।

प्रकृति का कुछ ऐसा नियम है कि यथा समय आपका हाजत होगी। उसी समय आपको प्रकृति की पुकार सुननी चाहिये। जानवर प्रायः इस कार्य में शिथिलता नहीं करते। इसलिये गन्दे होते हुए भी वे स्वस्थ रहते हैं। एक सज्जन अपने व्यक्तिगत अनुभव लिखते हुये निर्देश करते हैं—

‘‘मुझे तो अधिकांश कब्ज का कारण हाजत रोकना ही जान पड़ता है। हम खाने पर ही ज्यादा जोर देते हैं और हाजत की बात को भूल जाते हैं। हाजत के समय पाखाने न जाने की भूल बहुत से व्यक्ति करते हैं। जिन्हें धोती में निकल जाने वाली हाजत होती है, उनकी तो बात ही न्यारी है, शेष तो यह विचार करते हैं कि जब तक हाजत को रोका जाय, रोको। और काम करो पर हाजत की परवाह न करो। पर हाजत रुकती कहां है? हाजत रोकने से दवा की आवश्यकता पड़ती है। हाजत—पढ़े-लिखों की हाजत भी उनके दिमाग की भांति सूक्ष्म होती है, बातों में लगे हैं, या किसी कार्य में, और सोचते रहते हैं कि जब जोर की होगी तब जायेंगे, किन्तु जोर की होती ही नहीं। वक्त पर पाखाने गये, कांख खूंसकर चले आये, कभी हुआ कभी नहीं हुआ। मैं जब देहात की बात सोचता हूं, जहां घरों में पाखाने नहीं हैं, क्या हाल होता होगा औरतों का? उन्हें तो जरूर पाखाना पेशाब की हाजत रोकनी होती होगी? ओफ! कितना बड़ा पाप है! पाखाने हमारे होते हैं गन्दे, वहां जाना नर्क में जाने के बराबर समझा जाता है।’’

डा. कुलरंजन मुकर्जी के अनुसार हाजत की परवाह न करना कब्ज का प्रधान कारण है। पुनः पुनः की लापरवाही के परिणाम स्वरूप मलद्वार के स्नायुओं की चेतना घटने लगती है और कब्ज जड़ जमाने लगता है। प्रत्येक व्यक्ति को शौच जाने के लिए नियमित समय रखना चाहिये।

शौच का एक समय निश्चित कर लें जैसे प्रातः 6 बजे तथा सायंकाल 6 बजे। बाहर-बारह घण्टों का अन्तर देकर यह समय निश्चित करलें। यदि उस समय हाजत प्रतीत न भी हो, तो भी शौचालय में निश्चित समय पर दस मिनट अवश्य बैठें। धीरे-धीरे आंतों की आदतों में सुधार होता जायगा। प्रत्येक आदत धीरे-धीरे बनती है, किन्तु एक बार बन कर वह जटिलता से व्यक्ति में घुस जाती है।

जब आप शौचालय में बैठें, तो मन में पवित्रता के विचार करें—‘‘हम पवित्र हो रहे हैं, शौच से निवृत्त होकर हम अपने मन, शरीर, बुद्धि तथा कर्म व्यापार को पवित्र कर रहे हैं। हम निर्विकार हो रहे हैं। हमारे गुप्त विष निकल कर हमें आरोग्य प्रदान कर रहे हैं। हमें कोई बीमारी नहीं है।’’ इस प्रकार के गुप्त विचार रोगी के अचेतन मन को प्रभावित करते हैं। रेचन में प्रचुर सहायता प्राप्त होती है। अवांछनीय पदार्थ एवं प्रबल विचारों के परिणाम स्वरूप निकल जाते हैं। सद्भावनाएं जब दृढ़ विचार बल से संयुक्त हो जाती हैं, तो एक अज्ञात शक्ति हमारे शरीर में जादू जैसे कार्य करती है।

हाजत को न टाला जाय, इस सम्बन्ध में एक बंगाली कहावत बड़ी तथ्यपूर्ण है। इसका अभिप्राय यह है शौच जायं या न जायं—जब यह द्विविधा मन में उत्पन्न हो, तो शौच जाना ही उचित है।

एनिमा द्वारा कब्ज नाश—एनिमा का प्रयोग प्राचीन है। मिश्र के एक पक्षी को इसके आविष्कार का श्रेय है। यह पक्षी अपनी लम्बी चोंच में पानी भर गुदा में डालकर कोष्ठबद्धता दूर करता देखा गया था। कब्ज दूर करने के लिए लोगों ने इसके प्रयोग किये।

इसके द्वारा मल मार्ग से साबुन मिश्रित गर्म पानी गुदा मार्ग से चढ़ाया जाता है तो मल ढीला होकर सरलता से बहिर्गत हो जाता है। जहां दस्त की ओषधियां म्युकस मेम्बरेन पर कर्कशता उत्पन्न करती हैं, वहां एनिमा का पानी सुखद प्रभाव डालता है, जुलाब की सहायता से केवल बड़ी आंत की सफाई होती है, यह भी बहुत मामूली होती है, पर एनिमा स्थायी लाभ पहुंचाता है।

उपवास तथा एनिमा के प्रयोग से कब्ज दूर किया जा सकता है। एनिमा के बर्तन को गुदा से तीन-चार फुट ऊंचा टंगिये। जितनी ऊंचाई होगी, उतनी ही शीघ्रता से पानी प्रवेश करेगा। प्रारम्भ में आध सेर जल चढ़ाइये, फिर अभ्यास और आवश्यकतानुसार डॉक्टर की राय लेकर 3 सेर तक पानी चढ़ा सकते हैं। पानी को अन्दर रोके रहें। यदि करवट बदल सकें, या लोट सकें तो और भी उत्तम है। निज हाथ से उदर को धीरे-धीरे मलें। मलने से पूर्व संचित मल बाहर हो सकेगा। यदि एक बार एनिमा से ऐसा प्रतीत हो कि पेट भारी है तो पुनः ले सकते हैं। पुराना कब्ज एक दिन के एनिमा लगाने में साफ नहीं हो पाता। हफ्ते और कभी-कभी तो महीनों इसमें लग जाते हैं। पानी अन्दर जाने के पश्चात् उसे मन निष्कासन में यथेष्ट समय लगता है। अतः कुछ अधिक काल के निमित्त टट्टी बैठना चाहिए। छोटे बच्चों को पानी कम दें। आयु के अनुसार पानी की मात्रा निर्धारित होनी चाहिए।

डा. कुलरंजन मुकर्जी का विचार है कि साधारण स्नान के पूर्व 10 मिनट तक कटि स्नान करने से आंतें नर्म पड़ जाती है।, जीर्ण मल नर्म हो जाता है। यह कब्ज दूर करने का सबसे पुराना तथा सरल उपाय है। रोगी को नंगे होकर ठण्डे पानी से भरे टब से जांघों से आगे तक नाभि के ऊपर के भाग को पानी से बाहर रखकर नाभि के निचले हिस्से को निरन्तर तेजी से रगड़ना चाहिये। कटि स्नान का इलाज निश्चित और स्थायी लाभ पहुंचाता है।

कमर के चारों ओर गीली पट्टी भी कब्ज के लिये उपयोगी सिद्ध हुई है। 9 इंच चौड़ी पट्टी ठण्डे पानी में भिगो कर दो-तीन फेरा पेट तथा कमर के चारों और लपेट देनी चाहिये। पट्टी बहुत ढीली या कसी हुई न हो।

सोने से पूर्व करने के लिए कुछ उपचार— सोने से पूर्व आधा सेर दूध पीना लाभदायक है। यदि एक चम्मच जैतून का तेल ले लिया जाय तो मल विसर्जन में लाभ होता है। प्रतिदिन एक-दो नीबू पानी के साथ प्रयोग करने से भी लाभ होता है। ईसबगोल की भुसी एक तोला या त्रिफला से लेने से प्रातःकाल मल साफ होता है। श्री जानकी शरण वर्मा के अनुसार कब्ज का प्रधान कारण नाड़ी बल की कमी है। कब्ज को दूर करने के उपायों में नाड़ियों का स्वस्थ और सक्रिय बनाने के उपायों को प्रधानता मिलना चाहिये। नाड़ियों की स्वस्थावस्था के लिए 1-ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये, 2-खुली हवा में रहना और ऋतु अनुसार शरीर में धूप लगने देना चाहिए, 3-शरीर को कभी भी अनावश्यक तनाव की अवस्था में न रखना चाहिये, 4-गहरी श्वांस का अभ्यास करना चाहिये, 5-व्यायाम या टहलना शक्ति भर करें, 6-जलोपचार, 7-समुचित खान-पान। यदि दैनिक जीवन में तत्वों को स्थान प्रदान किया जाय, तो नाड़ी बल ठीक रहेगा तथा कब्ज क्या प्रायः सभी रोग दूर रहेंगे, लेकिन रोग हो जाने पर इनकी ओर विशेष ध्यान देना चाहिये।

पूरा भोजन करने के पश्चात् गहरी चाय पीने से कब्ज होता है। ऐसा कदापि न करें। भोजन के पश्चात् मानसिक परिश्रम करने वालों को प्रायः कब्ज रहता है। उस समय रक्त का दौरा पेट में होना चाहिये, मस्तिष्क में नहीं। रात्रि में सोते समय रीढ़ की हड्डी के सीधे रहने से आंतों को अपनी क्रिया के लिये पूर्ण अवसर प्राप्त होता है तथा कब्ज नहीं हो पाता। तख्ते पर या कड़ी चारपाई पर लेटने से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है। मल त्याग के लिये रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठना चाहिए।

डा. एस. सी. दास लिखते हैं—कई रोगियों के लिए तो बहुत साधारण नियम काम के होते हैं और उन्हीं से कब्ज दूर हो जाता है। जैसे, 1-अधिक जल पीना अथवा सोते समय और सवेरे उठने पर एक-एक गिलास ठण्डा पानी पीना, 2-चाय कम पीना अथवा चाय पीना बन्द कर देना, 3-अधिक फलों का प्रयोग करना, 4-भाप से उबली हुई सेब अथवा नासपाती का प्रयोग कई बार के कब्ज के रोगियों को ठीक करने में समर्थ हुआ है, 5-कई लोगों का कब्ज खेल-कूद, तैरने, घुड़ सवारी अथवा तेजी से चलने से जा सकता है, 6-अन्य लोग यदि वे केवल नित्य समय पर शौच जायं और सच्चे मन से इच्छा करें कि हमारा पेट साफ होने लगे, तो उनका कब्ज जा सकता है। शौच की हाजत को न टाला जाय, और न रोका जाय, 7-कुछ लोगों को कब्ज इसलिए होता है कि वह आवश्यकता से अधिक भोजन करते हैं अथवा उनके खाद्यों का मेल ठीक नहीं। इस प्रकार के रोगियों को भोजन का उचित ज्ञान होना आवश्यक है। पेशाब पाखाने की हाजत कमी न टालिए, न रोकिए। खूब कसरत कीजिए तथा गहरी श्वास का अभ्यास कीजिए अपने भोजन में प्रोटीन और श्वेतसार की मात्रा घटा कर आधी से भी कम करदो, फल और तरकारियों की मात्रा तिगुनी-चौगुनी करदो। शौच का समय निश्चित करलो, और उसी समय शौचादि का जाओ। दोनों समय के भोजनों के मध्य में खूब जल पीओ। जो व्यक्ति उपयुक्त साधारण नियमों की आदत डाल लेगा, वह इस सभ्यता के संहारक रोग से बचा रहेगा।

प्रो. परमानन्द शास्त्री के अनुसार कोष्ठबद्धता में प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम, ठीक समय पर भोजन, स्नान और शौचादि तथा उत्तम सेब, अनार, अंगूर, अमरूद आदि पके हुए फल अधिक परिणाम में खाने चाहिए। इस रोग में बार-बार विरेचन लेना हानिकर है, परन्तु बार-बार विरेचन लेने की अपेक्षा वस्तिकर्म करना या नाभि तक जल में बैठना बहुत लाभदायक है।

प्रातःकाल उठकर धीरे-धीरे एक गिलास ठण्डा जल पीना चाहिए। हरड़ या त्रिफला चूर्ण रात्रि के समय खाना चाहिए। गर्म जल में ओलिव आयल 4 ड्राम मिलाकर प्रातःकाल पीना चाहिए। गर्म जल में नीबू का रस या थोड़ा सा नमक डाल कर प्रातःकाल पीना चाहिए अथवा दूध में मुनक्का पका कर पीनी चाहिए, मीठी चीजें अधिक न खानी चाहिए, और अचार, चटनी, गर्म मसाले, चाय, कॉफी जैसे मादक पदार्थों का त्याग करना चाहिए।

यदि सम्भव हो तो प्रतिदिन पपीता अंगूर इत्यादि फलों को अधिक उपयुक्त प्रमाण में खाकर रात्रि को चक्की के मोटे आटे की रोटी खानी चाहिए।

कब्ज नाशक स्वर्ण सूत्र— भिन्न-भिन्न प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुभवपूर्ण कुछ नियम यहां उद्धृत किए जाते हैं। दैनिक जीवन में इनका प्रयोग करने से हम कब्ज से दूर रह सकते हैं। वास्तव में हमें इन्हीं स्वर्ण सूत्रों के बल पर अपनी आदतों का नवनिर्माण करना चाहिए—

(1) मलावरोध का सर्व प्रथम कारण अयोग्य खान-पान है। इसके लिए तम्बाकू, भांग, गांजा, शराब आदि नशीली वस्तुएं त्याग देनी चाहिए। मिर्च, मसाले, अचार इत्यादि गर्म तथा विक्षोभक पदार्थों को और मैदा, मिष्ठान्न आदि गरिष्ठ वस्तुओं को भोजन से निकाल देना चाहिये। हरे शाक, ताजे फल, चोकर वाला आटा, शुद्ध दूध, सूखे फल, अंजीर, खजूर, मुनक्का, आम, प्याज, पपीता विशेष रूप से खाने चाहिये। ताजा मट्ठा बड़ा उपयोगी है।

(2) आमाशय और आंत को आराम देने के लिये उपवास आवश्यक है। उपवास काल में एनिमा द्वारा संचित मल को निकाल दें। जल में एक या दो नीबू का रस या शुद्ध शहद डाल देना लाभदायक सिद्ध होता है। स्थायी कोष्ठबद्धता में यदि 4-5 छटांक जल प्रतिदिन लिया जाय, तो बड़ा लाभ होता है।

(3) मिट्टी की पट्टी बड़ा लाभ पहुंचाती है। यह मल को ढीला करती है।

(4) श्वास लेते समय फेफड़ों को वायु से पूरा-पूरा भरना चाहिये और सम्पूर्ण वायु को बाहर फेंक कर फेफड़ों को सिकोड़ना चाहिये। इस प्रकार लगातार फुलाने और सिकोड़ने से पाचन अवयवों की क्रिया उत्तम प्रकार से होकर दस्त साफ आता है।

(5) बैठे रहने की अपेक्षा चलने फिरने से मल को आने ठेलने में सहायता प्राप्त होती है। यथा सम्भव सुबह शाम टहलने के अतिरिक्त भी दिन में अपने काम में चलने फिरने का अवसर निकाल लेना हितकर होगा।

(6) भोजन में विटामिन बी. की कमी से आंतें दुर्बल हो जाती हैं और कब्ज रोग हो जाता है। यह कमी बहुत अधिक तले भुने भोजन करने से हो जाती है। इसलिये भोजन ताजा और सादा होना चाहिये। प्रतिदिन कुछ कच्चे, हरे शाक, फल तरकारियां आदि अवश्य खानी चाहिए। खमीर में यह विटामिन सबसे अधिक होता है। इसलिए खमीरी रोटी पेट के लिए बड़ी उत्तम चीज है।

(7) वर्षाकाल में प्रतिदिन एक पकी हुई हरड़, थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर खानी चाहिए। शरद ऋतु में चीनी के साथ हेमन्त ऋतु में सोंठ के चूर्ण के साथ, शीतकाल या शिशिर ऋतु में शहद के साथ और कर्मी के दिनों में गुड़ के साथ मिलाकर खानी चाहिए। गुड़ दस्तावर है। भोजन के पश्चात् उसका प्रयोग उत्तम होता है।

(8) आलिव आयल मिले हुए गर्म या ठण्डे जल को मनुष्य की प्रकृति के अनुसार सेवन कराना चाहिये, अर्थात् गर्म पित्त प्रकृति वाले को प्रातःकाल ठण्डा जल और शीत प्रकृति वाले को प्रतिदिन तीन चार बार गर्म जल पीना चाहिये।

(9) बैठे न रहें। पेट की कसरतें यौगिक आसन, प्राणायाम इत्यादि करने, खेलने कूदने तथा प्रातः सायं टहलने से अन्तड़ियों का व्यायाम हो जाता है। मल निष्कासन में इससे प्रचुर सहायता प्राप्त होती है।

(10) यथेष्ट जल का प्रयोग किया करें। पानी भोजन करते समय न पीकर खाने के दो घण्टे पश्चात् या आध घण्टे पहले पी सकते हैं। साधारण स्नान के पूर्व कटि स्नान कर लेना भी मल ढीला करने का सर्वोत्तम उपाय है। पूरा पानी न पीना बहुतों को कब्ज का कारण होता है। मनुष्य को शरीर स्वस्थ रखने के लिये प्रतिदिन 3 सेर जल का प्रयोग होना चाहिये।

(11) कुपथ्य भोजन के कारण जो कब्ज होता है, उसके कारण बहुधा आंतों में खुश्की आ जाती है तथा कब्ज हो जाता है। आहार में चिकनाई बढ़ा देने से, लज के अधिक सेवन से तथा ईसबगोल के सेवन से यह खुश्की दूर हो जाती है और कब्ज मिट जाता है।

(12) यदि कब्ज दूर करना चाहें तो रात्रि में मुनक्का दूध में उबाल कर पिया करें। एक सप्ताह के प्रयोग से कब्ज दूर हो जाता है।

(13) यदि दवाई चाहें तो कौस्ट्रोयल की बड़ी चम्मच का प्रयोग करें। अन्य तेज दवाइयों से बचें। जहां तक हो एनिमा तथा व्यायाम द्वारा ही चिकित्सा करें।
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