घर परिवार भी एक शरीर है

प्रेम को परमेश्वर कहते हैं । परमेश्वर इंद्रियातीत है, उसे नेत्र आदि इंद्रियों से या बुद्धि कल्पना से नहीं जाना जा सकता । भाव संवेदनाएँ ही उसे अनुभव में उतारती हैं । प्रेम निकटवर्ती से होता है या निकटवर्ती से प्रेम हो जाता है । हम शरीर को प्यार करते हैं । उसे सुखी बनाने के लिए अधिक से अधिक प्रयास और त्याग करते हैं । यहाँ तक कि वासना विलासिता के लिए पतन पराभव तक स्वीकार कर लेते है । नरक, भव-बंधन, अपयश, तक स्वीकार करते हैं पर अपने प्रेमी को सुखी संतुष्ट बनाने लिए उचित-अनुचित तक का विचार छोड़कर प्रेयसी काया के इच्छानुवर्ती बनते हैं । प्रेम में प्रेमी के लिए बहुत कुछ सब कुछ, करना पड़ता है । सेवा सहायता करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाती । माता और बच्चे के बीच जो वात्सल्य चलता है, उसे प्रेम का सांसारिक उदाहरण समझा जा सकता है । बच्चा अनजान होने के कारण अनेक प्रकार की गड़बड़ियाँ ही उत्पन्न करता रहता है पर माता उस पर क्षोभ किए बिना सब कुछ सहन करती रहती है । अपना लाल लहू सफेद दूध के रूप में परिणत करके बालक को पिलाती है पर प्रतिदान की बात कभी सोचती तक नहीं

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