(१) चन्द्रकेश्वरी
(२) अजतवला
(३) दुरितारि
(४) कालिका
(५) महाकाली
(६) श्यामा
(७) शान्ता
(८) ज्वाला
(९) तारिका
(१०) अशोका
(११) श्रीवत्सा
(१२) चण्डी
(१३) विजया
(१४) अंकुशा
(१५) पन्नगा
(१६) विर्वाक्षी
(१७) वेला
(१८) धारिणी
(१९) प्रिया
(२०) नरदत्ता
(२१) गन्धारी
(२२) अम्बिका
(२३) पद्मावती
(२४) सिद्धायिका ।
सामान्य दृष्टि से कलाएँ और मातृकाएँ अलग-अलग प्रतीत होती हैं, किन्तु तात्विक दृष्टि से देखने पर उन दोनों का अन्तर समाप्त हो जाता है । उन्हें श्रेष्ठता की सार्मथ्य कह सकते हैं और उनके नामों के अनुरूप उनके द्वारा उत्पन्न होने वाले सत्परिणामों का अनुमान लगा सकते हैं ।
गायत्री के २४ अक्षर २४ दिव्य प्रकाश स्तम्भ
गोपथ ब्राह्मण में गायत्री के २४ अक्षरों को २४ स्तम्भों का दिव्य तेज बताया गया है । समुद्र में जहाजों का मार्गदर्शन करने के लिए जहाँ-तहाँ प्रकाश स्तम्भ खड़े रहते हैं । उनमें जलने वाले प्रकाश को देखकर नाविक अपने जलपोत को सही रास्ते से ले जाते हैं और वे चट्टानों से टकराने एवं कीचड़ आदि में धँसने से बच जाते हैं । इसी प्रकार गायत्री के २४ अक्षर २४ प्रकाश स्तम्भ बनकर प्रजा की जीवन नौका को प्रगति एवं समृद्धि के मार्ग पर ठीक तरह चलते रहने की प्रेरणा करते हैं । आपत्तियों से बचाते हैं और अनिश्चितता को दूर करते हैं ।
गोपथ के अनुसार गायत्री चारों वेदों की प्राण, सार, रहस्य एवं तन है । साम संगीत का यह रथन्तर आत्मा के उल्लास को उद्देलित करता है । जो इस तेज को अपने में धारण करता है, उसकी वंश परम्परा तेजस्वी बनती चली जाती है । उसकी पारिवारिक संतति और अनुयायियों की शृंखला में एक से एक बढ़कर तेजस्वी, प्रतिभाशाली उत्पन्न होते चले जाते हैं । श्रुति कहती है-
तेजो वै गायत्री छन्दसां रथन्तरमं साम्नाम् तेजश्चतुर्विशस्ते माना तेज एवं तत्सम्यक् दधाति पुत्रस्थ पुत्रस्तेजस्वी भवति॥ -गोपथ
अर्थात्-गायत्री सब वेदों का तेज है । सामवेद का यह रथन्तर छन्द ही २४ स्तम्भों का यह दिव्य तेज है । इस तेज को धारण करने वाले की वंश परम्परा तेजस्वी होती है ।