गायत्री की २४ शिक्षाएँ
भू:, भुव: और स्व: ये तीन लोक हैं, इन तीनों लोकों में ओम् ब्रह्म व्याप्त है ।। जो बुद्धिमान उस ब्रह्म को जानता है, वह ही वास्तव में ज्ञानी है ।।
परमात्मा का वैदिक नाम "ॐ" है ।। ब्रह्म की स्फुरणा का सूक्ष्म प्रकृति पर निरंतर आघात होता रहता है ।। इन्हीं आघातों के कारण सृष्टि में गतिशीलता उत्पन्न होती रहती है ।। काँसे के बरतन पर जैसे हथौड़ी की हलकी चोट मारी जाए तो वह बहुत देर तक झनझनाता रहता है, इसी प्रकार ब्रह्म और प्रकृति के मिलन- स्पंदन स्थल पर ॐ की झंकार होती रहती है ।। इसलिए यही परमात्मा का स्वयं घोषित नाम माना गया है ।।
यह ॐ तीनों लोकों में व्याप्त है ।। भू: पृथ्वी, भुव: पाताल, स्व: स्वर्ग- यह तीनों ही लोक परमात्मा से परिपूर्ण हैं ।। भू: शरीर, भुव: संसार, स्व:आत्मा; यह तीनों ही परमात्मा के क्रीड़ा- स्थल हैं ।। इन सभी स्थलों को, निखिल विश्व- ब्रह्मांड को भगवान का विराट रूप समझकर वही आध्यात्मिक उच्च भूमिका प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए ।।
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