गायत्री का शक्ति स्रोत सविता देवता

सावित्री और सविता का वेदों की माता होते हुए एक वेद-मंत्र भी है । वेद के हर मंत्र का एक छन्द, एक ऋषि और एक देवता होता है । उनका स्मरण उच्चारण करते हुए विनियोग किया जाता है । गायत्री महामंत्र का गायत्री छन्द-विश्वामित्र ऋषि और सविता देवता है । सविता बोल-चाल की भाषा में सूर्य को कहते हैं । सविता की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण गायत्री का दूसरा नाम सावित्री भी है । सविता और सावित्री का युग्म प्रख्यात है । कहते हैं, सावित्री में जो शक्ति हे, वह सविता की है । यों सविता, परब्रह्म परमात्मा को भी कहते हैं और उसकी प्रेरक विधेयक निर्मात्री, संचारिणी, आह्लादिनी, चेतना-शक्ति को गायत्री को सर्गवेत्री कहा जा सकता है । यह ज्ञान-दृष्टि हुई । विज्ञान-दृष्टि में सविता को परमात्मा का तेजपुञ्ज ब्रह्म बताते हैं, जिसके प्रभाव और प्रकाश में यह सारा दृश्य जगत् सक्रिय रहता है । उस सविता की समग्र क्षमता एवं स्थिति की-प्राण-प्रक्रिया को सावित्री माना गया है । शरीर और प्राण में जो संबंध है, वही सविता और सावित्री में है । प्राणी के अस्तित्व को प्रकाश एवं अनुभव में लाने के लिए शरीर चाहिए और शरीर सजीव बना रहे, उसके लिए उसमें प्राण की स्थिति आवश्यक है । दोनों का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है । एक के बिना दूसरे की गति नहीं, स्थिति नहीं, उपयोगिता नहीं, शोभा नहीं । इसी प्रकार सविता और सावित्री एक दूसरे के लिए जुड़े हुए हैं । दोनों का एक मिश्रित युग्म है । अलङ्कार रूप से सावित्री को, सविता की पत्नी भी कहते हैं ।

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