चौबीस अक्षर- चौबीस शक्ति स्रोत
गायत्री मंत्र में २४ अक्षर हैं ।। इन्हें मिलाकर पढ़ने से ही इनका शब्दार्थ और भावार्थ समझ में आता है, पर शक्ति -साधना के संदर्भ में इनमें से प्रत्येक अक्षर का अपना स्वतंत्र अस्तित्त्व और महत्व है ।। इन अक्षरों को परस्पर मिला देने से परम तेजस्वी सविता देवता से सद्बुद्धि को प्रेरित करने के लिए प्रार्थना की गई है और साधक को प्रेरणा दी गई है कि वह गायत्री की सर्वोपरि संपदा '' सद्बुद्धि '' का- ऋतंभरा प्रज्ञा का महत्त्व समझे और अपने अंतराल में दूरदर्शिता का अधिकाधिक समावेश करे ।। यह प्रसंग अति महत्वपूर्ण होते हुए भी रहस्यमय तथ्य यह है कि महामंत्र का प्रत्येक अक्षर शिक्षाओं और सिद्धियों से भरा- पूरा है ।।
शिक्षा की दृष्टि से गायत्री मंत्र के प्रत्येक अक्षर में प्रमुख सद्गुणों का उल्लेख किया गया है और बताया गया है कि उनको आत्मसात करने पर मनुष्य देवोपम विशेषताओं से भर जाता है ।। अपना कल्याण करता है और अन्य असंख्यों को अपनी नाव पर बैठाकर पार लगाता है ।। हाड़- मास से बनी और मल- मूत्र से सनी काया में जो कुछ विशिष्टता दिखाई पड़ती हैं, वे उसमें समाहित सत्पवृत्तियों से ही हैं ।। जिसके गुण- कर्म में जितनी उत्कृष्टता है, वह उसी अनुपात से महत्वपूर्ण बनता है और महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त करके जीवन- सौभाग्य को हर दृष्टि से सार्थक बनाता है ।। …..