गायत्री का देवता सविता है । सविता का भौतिक स्वरूप रोशनी और गर्मी देने
वाले अग्नि पिण्ड के रूप में परिलक्षित होता है पर उसकी सूक्ष्म सत्ता
प्राण शक्ति से ओत-प्रोत है । वनस्पति, कृमि, कीट, पशु-पक्षी,जलचर, थलचर और
नभचर वर्गों के समस्त प्राणी सविता देवताद्वारा निरन्तर प्रसारित
प्राण-शक्ति के द्वारा ही जीवन धारण करते है । वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है
कि इस जगती पर जो भी जीवन के चिह्न हैं, वे सूक्ष्म विकिरण शीलता के ही
प्रतिफल है । सावित्री उस प्राणवान सविता देवताकी अधिष्ठात्री है । उसकी
स्थिति को अनन्त प्राण-शक्ति के रूप में आँकाजाय तो कुछ अत्युक्ति न होगी ।
यह विश्वव्यापी प्राणशक्ति जहाँ जितनी अधिक मात्रा में एकत्रित होजाती है
वहाँ उतनी ही सजीवता दिखाई देने लगती है । मनुष्य में इस प्राणतत्त्व का
बाहुल्य ही उसे अन्य प्राणियों से अधिक विचारवान् बुद्धिमान्,गुणवान्
सामर्थ्यवान् एवं सुसभ्य बना सका है । इस महान् शक्ति पुंज का प्रकृति
प्रदत्त उपयोग करने तक ही सीमित रहा जाय तो केवल शरीर यात्राही संभव हो
सकती है और अधिकांश नर पशुओं की तरह केवल सामान्य जीवन ही जिया जा सकता है,
पर यदि और किसी प्रकार अधिक मात्रा मेंबढ़ाया जा सके तो गई