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यज्ञ भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख स्तम्भ है। प्राचीन काल में समाज की प्रत्येक श्रेणी से किसी न किसी रूप में यज्ञ का सम्बन्ध था। ऋषि, मुनि, ब्राह्मण, पंडित आदि का तो मुख्य धर्म—कर्तव्य यज्ञ ही था और उनका समस्त जीवन यज्ञायोजनों में ही लगा करता था। वे समस्त जनता तक यज्ञ का सन्देश पहुंचाते थे, जिससे समाज में सद्भाव, प्रेम और धर्म के प्रति आस्था का भाव बना रहता था।
यज्ञ का स्थूल रूप अग्निहोत्र का है और उसको किसी रूप में करते रहना प्रत्येक हिन्दू धर्मावलम्बी का परम कर्तव्य माना जाता है। उसका मुख्य उद्देश्य तो आध्यात्मिक ही है, पर मानसिक और शारीरिक उन्नति की दृष्टि से उसका महत्व कम नहीं है। वेद और उपनिषदों से लेकर पुराणों और काव्यों तक में इस तथ्य का प्रतिपादन किया है, और यज्ञों को मानव-जन्म का सबसे बड़ा पुरुषार्थ बतलाया है।
इस पुस्तक में यज्ञ के इन सब पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए भारतीय जनता को यज्ञ धर्म के पालन करने की प्रेरणा दी गयी है, जिससे आशा है सब पाठक लाभान्वित होंगे।
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