प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं । सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारी पन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना । विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है । इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है । कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है । इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं । वर्षा में हैजा, दस्त, फुन्सी, खुजली, आदि रोग फैलते हैं, शरद ऋतु में मलेरिया, जूड़ी, हड़फूटन, शिरदर्द आदि का जोर चलता है । शीत ऋतु में वातरोग, दर्द, खाँसी, जुकाम, निमोनियाँ आदि बढ़ते हैं, गर्मियों में लू लगना, दाह, दिल की धड़कन, कब्ज आदि की अधिकता रहती है । क्योंकि इस समय वायुमण्डल में वैसे ही तत्वों की अधिकता रहती है । हवन के धूम से आकाश की आवश्यक सफाई हो जाती है । हानिकारक पदार्थ नष्ट होते और लाभदायक तत्व बढ़ते हैं । फलस्वरूप वायुमण्डल सब किसी के लिए आरोग्य वर्धक हो जाती है ।
किस ऋतु में किन वस्तुओं का हवन करना लाभदायक है, और उनकी मात्रा किस परिणाम से होनी चाहिए, इसका विवरण नीचे दिया जाता है । पूरी सामग्री की तोल १०० मान कर प्रत्येक ओषधि का अंश उसके सामने रखा जा रहा है । जैसे किसी को १०० छटांक सामग्री तैयार करनी है, तो छरीलावा के सामने लिखा हुआ २ भाग (छटांक) मानना चाहिए, इसी प्रकार अपनी देख-भाल कर लेनी चाहिए । बहुआ खोटे दुकानदार सड़ी-गली, घुनी हुई, बहुत दिन की पुरानी, हीन वीर्य अथवा किसी की जगह उसी शकल की दूसरी सस्ती चीज दे देते हैं । इस गड़बड़ी से बचने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए । सामग्री को भली प्रकार धूप में सुखाकर उसे जौकुट कर लेना चाहिए ।
बसन्त-ऋतु
छरीलावा २ भाग, पत्रज २ भाग, मुनक्का ५ भाग, लज्जावती एक भाग, शीतल चीनी २ भाग, कचूर २.५ भाग, देवदारू ५ भाग, गिलोय ५ भाग, अगर २ भाग, तगर २ भाग, केसर १ का ६ वां भाग, इन्द्रजौ २ भाग, गुग्गुल ५ भाग, चन्दन (श्वेत, लाल, पीला) ६ भाग, जावित्री १ का ३ वां भाग, जायफल २ भाग, धूप ५ भाग, पुष्कर मूल ५ भाग, कमल-गट्टा २ भाग, मजीठ ३ भाग, बनकचूर २ भाग, दालचीनी २ भाग, गूलर की छाल सूखी ५ भाग, तेज बल (छाल और जड़) २ भाग, शंख पुष्पी १ भाग, चिरायता २ भाग, खस २ भाग, गोखरू २ भाग, खांस या बूरा १५ भाग, गो घृत १० भाग ।
ग्रीष्म-ऋतु
तालपर्णी १ भाग, वायबिडंग २ भाग, कचूर २.५ भाग, चिरोंजी ५ भाग, नागरमोथा २ भाग, पीला चन्दन २ भाग, छरीला २ भाग, निर्मली फल २ भाग, शतावर २ भाग, खस २ भाग, गिलोय २ भाग, धूप २ भाग, दालचीनी २ भाग, लवङ्ग २ भाग, गुलाब के फूल ५॥ भाग, चन्दन ४ भाग, तगर २ भाग, तम्बकू ५ भाग, सुपारी ५ भाग, तालीसपत्र २ भाग, लाल चन्दन २ भाग, मजीठ २ भाग, शिलारस २.५० भाग, केसर १ का ६ वां भाग, जटामांसी २ भाग, नेत्रवाला २ भाग, इलायची बड़ी २ भाग, उन्नाव २ भाग, आँवले २ भाग, बूरा या खांड १५ भाग, घी १० भाग ।
वर्षा-ऋतु
काला अगर २ भाग, इन्द्र-जौ २ भाग, धूप २ भाग, तगर २ भाग देवदारु ५ भाग, गुग्गुल ५ भाग, राल ५ भाग, जायफल २ भाग, गोला ५ भाग, तेजपत्र २ भाग, कचूर २ भाग, बेल २ भाग, जटामांसी ५ भाग, छोटी इलायची १ भाग, बच ५ भाग, गिलोय २ भाग, श्वेत चन्दन के चीज ३ भाग, बायबिडंग २ भाग, चिरायता २ भाग, छुहारे ५भाग, नाग केसर २ भाग, चिरायता २ भाग, छुहारे ५ भाग, संखाहुली १ भाग, मोचरस २ भाग, नीम के पत्ते ५ भाग, गो-घृत १० भाग, खांड या बूरा १५ भाग,
शरद्-ऋतु
सफेद चन्दन ५ भाग, चन्दन सुर्ख २ भाग, चन्दन पीला २ भाग, गुग्गुल ५ भाग, नाग केशर २ भाग, इलायची बड़ी २ भाग, गिलोय २ भाग, चिरोंजी ५ भाग, गूलर की छाल ५ भाग, दाल चीनी २ भाग, मोचरस २ भाग, कपूर कचरी ५ भाग पित्त पापड़ा २ भाग, अगर २ भाग, भारङ्गी २ भाग, इन्द्र जौ २ भाग, असगन्ध २ भाग, शीतल चीनी २ भाग, केसर १ का ६ वां भाग, किशमिस ६ भाग, वालछड़ ५ भाग, तालमखाना २ भाग, सहदेवी १ भाग,धान की खील २ भाग, कचूर २.७५ भाग, घृत १० भाग, खांड या बूरा १५ भाग ।