देवियो और भाइयो! स्रष्टा ने मनुष्य जीवन विशेष उद्देश्य के लिए बनाया है और विशेष उपहार के रूप में दिया है । भगवान ने अपने कार्य में, अपने विश्व उद्यान में सहायता करने के लिए इसको सुरम्य और समुन्नत बनाने के लिए मनुष्य को अपने सहायक के रूप में पैदा किया । उसको जो अनेक विशेषताएँ दी हैं, वह एक अमानत के रूप में, एक धरोहर के रूप में दी हैं, ताकि इसका ठीक तरीके से उपयोग करके वह अपने व्यक्तिगत जीवन में सरलतापूर्वक- सारा काम चला सके और निर्वाह कर सके । उसके पास जो समय बचे, शक्तियों बचें, उससे विश्व उद्यान को समुन्नत बनाने के लिए प्रयत्न करना उसके लिए संभव बन सके । इस दृष्टि से मनुष्य शरीर बनाया, शौक-मौज के लिए नहीं बनाया । शौक- मौज के लिए अगर मनुष्य शरीर बनाया होता तो फिर यह बहुत भारी पक्षपात गिना जाता । अन्य प्राणियों को जो सुविधाएँ नहीं मिलीं, वह मनुष्य को ही क्यों दी गईं? इसका एकमात्र उत्तर यही है कि जिस तरह विशेष तरीके से एक खजांची के पास खजाना जमा कर दिया जाता है, मिनिस्टर के पास विशेष अधिकार केंद्रित कर दिए जाते हैं, उसी प्रकार भगवान ने मनुष्य को विशेष अधिकार दिए हैं, ताकि वह इस विश्व उद्यान को सुंदर, समुन्नत, सुविकसित बनाने के लिए भगवान के कार्य में मदद करे । हममें से प्रत्येक का कर्त्तव्य है कि उस परम पुनीत उत्तरदायित्व को समझें जो भगवान ने हमारे ऊपर सौंपा है ।