धर्म तत्त्व का दर्शन और मर्म भाग 5

किसी भी मनुष्य अथवा समाज की उनंती का लक्षण है सुख - शांति और सम्पन्नता |यह तीनो बाते एक दुसरे पर उसी प्रकार निर्भर है |जिस प्रकार किरणें सूर्य पर और सूर्य किरणों पर निर्भर हैं | जिस प्रकार किरणों के आभाव में  सूर्य का अस्तित्व नहीं ,उसी प्रकार बिना सुख - शांति के सम्पन्नता की सम्भावना नही और बिना सम्पन्नता के सुख -शांति का आभाव रहता  है |

यदि गंभीर द्रष्टि से देखा जाय तो पता चलेगा कि आरामदेह  जीवन की सुविधाएँ  सुख - शांति का कारण नहीं हैं , बल्कि निर्विघ्न तथा निर्द्वंन्द्व जीवन प्रवाह की संदिग्ध गति ही सुख -शांति का हेतु है | जिसका जीवन एक संदिग्ध तथा स्वाभाविक गति बहता जा रहा है , सुख - शांति उसी को प्राप्ति होती है | इसके विपरीत जो अस्वाभाविक  एवं उद्वेगपूर्ण   जीवनयापन करता है  व  और अशांत रहता  है 

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