देवियो, भाइयो! दो प्रश्न आपके मस्तिष्क में संभवतः: उठते रहते होंगे ।। एक प्रश्न यह कि हमें क्या करना है और क्या बनना है? दूसरा यह कि हमें क्या कराना है और क्या बनाना है? इसके संबंध में स्थूल रूप से आपको कई चीजें दिखाई पड़ती हैं ।। क्या करना है? सवेरे उठना चाहिए नहाना चाहिए पूजा करनी चाहिए हवन करना चाहिए ।। ये क्रियाएँ हैं और जनता में क्या कराना चाहिए? जनता में हवन कराने चाहिए सम्मेलन कराने चाहिए त्योहार- संस्कार कराने चाहिए ।।
क्रिया व विचार दोनों महत्त्वपूर्ण
मित्रो! ये क्रियाएँ आपको दिखाई पड़ती हैं कि जनता के बीच में आपको क्या क्रियाएँ करानी चाहिए और अपने आप में क्या क्रियाएँ करनी चाहिए? क्रियाओं का अपना मूल्य है, महत्त्व है ।। हम जानते हैं कि क्रियाओं के माध्यम से विचारों के निर्माण में बहुत ही अधिक सहायता मिलती है ।। क्रियाऐं महत्त्वपूर्ण होती हैं, यह बात भी सही है लेकिन मित्रो! यह बात भी ध्यान में रखने योग्य है कि क्रियाओं और विचारणा में जमीन- आसमान का अंतर होना भी संभव है ।। क्रिया क्या हो सकती है और हमारे ढंग क्या हो सकते हैं ।। इसमें फरक रह गया तो क्रिया का, खासतौर से धार्मिक क्रिया का