दण्ड—‘‘दो आजीवन कारावास’’ का



वीर सावरकर को ब्रिटेन में मृत्यु दण्ड की सजा सुनादी गई। अंग्रेज अधिकारियों ने तय किया कि सजा भारतवर्ष में ही भुगताई जाय जिससे भारतीय क्रांतिकारी आतंकित हों और ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सिर उठाने का साहस न करें।

एक ब्रिटिश जहाज उन्हें लेकर भारतवर्ष की ओर चल पड़ा। जहाज फ्रांस चैनेल से गुजर रहा था, उस समय वीर सावरकर के मन में विचार आया यहां या वहां—मृत्यु आज नहीं तो कल सुनिश्चित ही है फिर अपने देशवासियों को और स्वाधीनता युद्ध में आगे बढ़ रहे सेनानियों के मन में भय की भावना पैदा क्यों की जाये? मरना ही है तो क्यों न इस तरह मरा जाये कि देशवासियों को और भी त्याग बलिदान की प्रेरणा मिले।

यह विचार आते ही वे जहाज से समुद्र में कूद पड़े। धन्य साहस कि वे कई दिन तक खूंखार जंतुओं वाले सागर में तैरते हुए फ्रांस के समुद्री तट पर जा लगे।

दुर्भाग्य वश पीछा करते हुये ब्रिटिश पुलिस अधिकारी वहां भी जा पहुंचे और उन्हें दुबारा बन्दी बना लिया गया। इस बार उन्हें कड़े पहरे में भारतवर्ष लाया गया और यहां आकर उन पर दुबारा फिर मुकदमा चलाया गया। इस बार उन्हें लम्बी यातना देने का ब्रिटिश सरकार ने निश्चय किया। फलतः उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।’’ सजा सुनाने के बाद ही उन्हें अण्डमान जेल भेज दिया गया। जहां भारतीय कैदियों के साथ ब्रिटिश जेल अधिकारी नृशंस व्यवहार करके उन्हें अधमरा कर देते थे।

दुबले पतले सावरकर का जब जेल के फाटक पर पहला सामुख्य वहां के जेलर से हुआ और जेलर ने एक बार उनके शरीर की ओर देखकर कागज पर दृष्टि दौड़ाई जिसमें दो आजीवन कारावास का आदेश था, उसे जोर की हंसी आ गई।

अंग्रेज जेलर का अट्टहास समाप्त हुआ वैसे ही वीर सावरकर भी बड़ी जोर से हंस पड़े, यह देखकर सारा दर्शक समाज स्तब्ध रह गया। जेलर को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा—‘‘मिस्टर सावरकर आप किस लिये हंसे—‘‘मिस्टर जेलर पहले आप हंसे इसलिये पहले आप अपनी हंसी का कारण बताइये’’—वीर सावरकर ने ऐसे पूछा जैसे वह एक चतुर खिलाड़ी हों और फुटबाल खेल रहे हों।

जेलर चौंका और बोला—‘‘हम इसलिए हंसा कि तुम्हारा साथ ब्रिटिश हुकूमत ने कैसा मजाक किया कि इतना दुबला-पतला आदमी को दो आजीवन कारावास का सजा दिया’’—

अब गेंद को लात मारने की बारी सावरकर की थी, उन्होंने कहा—‘‘मैं इस लिये हंसा कि ब्रिटिश सरकार कितनी मूर्ख है जो मुझे फांसी न देकर आजीवन कारावास दे रही है, जनाब! तुम्हारी हुकूमत कागज का शेर है, अन्यायी अत्याचारी का रोव दिखावा मात्र होता है। तुम्हारे पुतले आग लग चुकी है और वह किसी भी दिन धराशायी हो सकता है। जहां मेरा देश स्वतन्त्र हुआ और मैं निकला जेल से?

जेलर सिटपिटा गया उसने कहा—‘‘ओह! मजाक नहीं ठीक किया सरकार ने तुमको दो नहीं चार आजीवन कारावास का सजा मिलना चाहिए था।’’

साहसी और दूरदर्शी सावरकर की बात सच निकली कुछ ही दिन में देश स्वाधीन हो गया। जेलर साहब इंग्लैंड चले गये और सावरकर कैद मुक्त हो गये।







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