बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

आदर्शों के लिए अड़े रहने वाले—ब्रुंडेज

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क्रीड़ा जगत में नैतिक आदर्शों की स्थापना और सुरक्षा के लिए एक अक्खड़ किन्तु कर्मठ व्यक्ति की तरह निरन्तर काम करने वाले श्री एवरी ब्रुंडेज को सदा याद किया जाता रहेगा। ओलम्पिक खेलों का सीमा विस्तार ही नहीं उनका स्तर और गौरव बढ़ाने में भी मानो उन्होंने अपने व्यक्तित्व को घुला ही दिया हो।

ओलम्पिक संस्थान के प्रधान 80 वर्षीय लोह-पुरुष ने अपने कर्तव्य को विश्व का महत्वपूर्ण किया—केन्द्र बनाने में अद्भुत सफलता पाई है। यह सब अनायास ही नहीं हो गया, न उत्तराधिकार में मिला है न किसी के अनुग्रह ने उन्हें यह संस्थान दिलाया है वरन् अपनी क्षमता और प्रतिभा के कारण ही वे इस स्थान तक पहुंचे हैं।

उनका स्वावलम्बी जीवन 12 वर्ष की आयु से आरम्भ होता है जब उन्होंने मां बाप से बिछुड़ कर एक मजदूर के रूप में अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास किया। वे पढ़े पर अपनी पढ़ाई और निर्वाह की व्यवस्था बचे हुए समय में मजदूरी करके जुटाई। वे चाहते तो किन्हीं उदार व्यक्तियों एवं संस्थाओं की सहायता भी ले सकते थे पर उन्हें यह जरा भी पसन्द नहीं था। हाथ-पांव रहते हुए क्यों किसी के आगे हाथ पसारें? यह मानवीय स्वभाव के विरुद्ध है। जब उन्हीं के कई साथी असहाय बनकर दूसरों की सहायता पर अपनी शिक्षा और गुजर चला रहे थे; तब उन्हें भी वैसी सुविधा मिल सकती थी पर उन्होंने अनावश्यक अहसान और ऋण-भार अपने ऊपर लादने की अपेक्षा यही उचित समझा कि प्रगति भले ही कम हो—देर में हो पर स्वाभिमान की हर कीमत पर रक्षा की जाय।

खेल उन्हें आरम्भ से ही प्रिय थे। विद्यार्थी काल में वे चैंपियन रहे। दर्शन, मनोविज्ञान इन्जीनियरिंग आदि विषयों की वे ऑनर्स परीक्षायें उत्तीर्ण करते रहे। साथ ही खेलों में पूरी दिलचस्पी से भाग लेते रहे। फलतः उनमें वे कुशल भी बन गए। सन् 1912 में इन्होंने प्रथम बार अमेरिका की ओर से स्टाकहोम ओलंपिक खेलों में भाग लिया। इसके बाद उनकी योग्यता और क्षमता को पहचान कर सम्मानित किया गया। वे क्रमशः उस विश्व संगठन के संचालक मण्डल का उत्तरदायित्व सम्भालते हुए प्रधान पद तक पहुंचे।

ब्रूंडेज का मत है कि खेलों को विशुद्ध खेल ही रहने दिया जिया। उनके द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावनाओं की वृद्धि की जाय और शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के विकास क्रम को प्रोत्साहित किया जाय। यह क्षेत्र इतने उद्देश्य तक ही सीमित रहे। इसमें उन दूषित तत्वों का प्रवेश न होने दिया जो विपरीत प्रभाव डालते हैं। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर इन्होंने उस क्षेत्र में पेशेवर खिलाड़ियों का प्रवेश ओलम्पिक प्रतियोगिताओं में निषिद्ध ठहराया। साथ ही विजेताओं को अतिरिक्त सम्मान देकर अन्य खिलाड़ियों में उसी प्रकार की ललक उत्पन्न होने की सम्भावना को भी ध्यान में रखा। यदि विजेताओं को राजनैतिक या आर्थिक प्रोत्साहन उनके देशवासी देते हैं तो फिर अन्य विजेता या तो वैसी हर उपलब्धि के लिये अपने देशवासियों से झगड़ेंगे या फिर रुष्ट एवं दुखी होंगे। यह अवांछनीय प्रतिस्पर्धा उत्पन्न न होने देने से ही क्रीड़ा क्षेत्र का स्तर बढ़ता है। यह उनकी मान्यता है। अनेक विरोध प्रतिरोधों के रहते हुए वे इस आदर्श को कड़ाई के साथ निबाहते चले आ रहे हैं—और विश्व के समस्त देशों के—लगभग ढाई करोड़ खिलाड़ियों को अपने इस निर्देश से निर्देशित, नियन्त्रित करते हैं। क्रीड़ा क्षेत्र में चक्रवर्ती शासन का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं श्री एवरी ब्रुंडेज।

उनके मूलमन्त्र का जब-जब जहां उल्लंघन हुआ कड़ाई से काम लेने में उन्होंने कोई शिथिलता नहीं बर्ती। सन् 1954 में अर्जनटाइना सरकार ने अपने खिलाड़ियों में एक विशेष रियायत कर दी कि जो कार खरीदेंगे उन पर टैक्स माफ रहेगा। इस सुविधा का लाभ उठाकर वे लाइसेंसों को बेचकर पैसा बनाने लगे।

ब्रुण्डेज ने इसका विरोध किया। इस पर अर्जेन्टाइना के शासक उबल पड़े। उन्होंने कहा—‘‘हम अपने देश में कुछ भी कर सकते हैं।’’ उसके जवाब में ब्रुण्डेज ने भी यही लिखा—‘‘उसी तरह ओलम्पिक संगठन पर हमारा अधिकार है। यदि निर्धारित आदर्शों की उपेक्षा की जायेगी तो अर्जेन्टाइना के खिलाड़ियों को भविष्य में किसी प्रतियोगिता में भाग न लेने दिया जायेगा। यह कड़ाई काम आई। अर्जेन्टाइना सरकार को अपना निश्चय बदलना पड़ा। खिलाड़ियों को दी जाने वाली अतिरिक्त सुविधा वापस लेनी पड़ी।

खिलाड़ी केवल खिलाड़ी रहें व्यवसायी नहीं। यह सिद्धान्त उन्हें इसलिये निर्धारित करना पड़ा कि, कहीं रेस के घोड़ों की तरह मालदार आदमी उन्हें भी अपनी कठपुतली न बनालें, और पुलिस, फौज में काम करने वाले विशिष्ट बलवानों को ही चैंपियन बनकर विश्वख्याति पर छा जाने का मौका मिले। यदि ऐसा हुआ तो सर्वसाधारण में खेलों के प्रति रुचि उत्पन्न करने वाले संस्थान अपना उद्देश्य ही खो बैठेगा तब वह मुट्ठी भर लोगों को अधिक सम्मान प्रदान करने का माध्यम रह जायेगा और एक प्रकार से उदीयमान खिलाड़ियों का रास्ता बन्द हो जायेगा।

इसी आधार पर उन्होंने अमेरिका के सबसे बड़े माइनर सेन्टी को जीवन भर के लिये ‘एक्येचर’ की सूची से हटा दिया।

एक और ऐसी ही घटना कनाडा में घटी। कु. अन्ना स्काट ने बर्फ पर फिसलने (स्केटिंग) को विश्व प्रतियोगिता जीती। ओटावा के नागरिकों ने उसका शानदार स्वागत करने और उसे एक बहुमूल्य कनवर्टीबल ब्यूक कार उपहार में देने का निश्चय किया। यह ता ब्रुंडेज को लगा, उन्होंने तुरन्त सन्देश भेजा कि यदि स्काट ने यह उपहार स्वीकार किया तो उसे व्यवसायी घोषित किया जायेगा और अयोग्य ठहराया जायगा—खिलाड़ियों की सूची में उसका नाम न रहेगा। इस धमकी का कारगर प्रभाव पड़ा और उसी समारोह में स्काट ने यह उपहार अस्वीकृत कर दिया। इससे कनाडा में बहुत रोष उभरा। उनके पुतले तक जलाये गए—पर ब्रुण्डेज टस से मस नहीं हुए। वे खिलाड़ियों में इस प्रकार की अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करने, उन्हें परस्पर ईर्ष्यालु बनाने और एक ही वर्ग में अभागे, सौभाग्यशाली का विभेद उत्पन्न नहीं करना चाहते थे। अस्तु इस प्रकार के कठोर कदम उठाने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था।

ऐसी ही एक घटना का सामना उन्हें हिटलर से घोर विरोध लेकर उन दिनों करना पड़ा जब हिटलर का सितारा आसमान को छू रहा था और उसके सामने मुंह खोलने की हिम्मत किसी की भी नहीं पड़ती थी।

अनुपयुक्तता के विरुद्ध लड़ने में उन्हें अगणित संघर्ष करने पड़े। इतना ही नहीं उन्होंने उस महान् संगठन को सुविस्तृत सुगठित और सुव्यवस्थित बनाने में पूरा-पूरा योगदान दिया। उन्होंने अपने हाथ में एक कार्य लिया और उसी में तन्मय हो गये। यदि आधे-अधूरे मन से यह कार्य किया होता तो उतनी सफलता कदापि न मिलती और दूसरे अगणित संगठन प्रयासों की तरह वह भी लंगड़ा, लूला, काना-कुबड़ा रह कर किसी प्रकार अपनी गाड़ी खींचने तक सीमित रहता।
ब्रुण्डेज के पास उनकी अपनी थोड़ी सी आजीविका है। उनके पास एक बड़ा मकान है उससे किराये की जो आमदनी होती है उसी से वे अपनी गुजर करते हैं। इतना ही नहीं ओलम्पिक संस्थान से वे किराया भाड़ा तक और आफिस खर्च तक नहीं लेते। यों यह राशि 30-40 हजार डालर तक जा पहुंचती है। वे चाहते तो वेतन न सही, इतना खर्च तो संस्था खुशी-खुशी ही देती रहती। अपने पास की आजीविका को बेटे-पोतों के लिये संग्रह करते रहना और सेवा के बदले उपहार, पुरस्कार प्राप्त करना आमतौर से तथाकथित सेवाभावियों का कार्यक्रम रहता है, पर यह ओछापन ब्रुण्डेज जैसे महामानव स्वीकार नहीं कर सकते। उन्होंने किया भी नहीं है, यही उनकी महानता के अनेक आधार हैं जिन्होंने केवल उन्हें ही नहीं वरन् उनके द्वारा संचालित कार्य को भी उन्नति के उच्च शिखर तक पहुंचाया है।
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