बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

श्रम, सम्पदा व सद्भावना का धनी—हेनरी फोर्ड

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अमेरिका के ग्रीन फिल्ड नामक गांव की पाठशाला में पढ़ने वाले आठ वर्षीय बालक हेनरी की मशीनों में बड़ी रुचि थी। कोई भी मशीनरी देखी नहीं कि उसकी जानकारी पाने के लिए उसके मन में तीव्र आकांक्षा जाग्रत हो जाती। पिता एक साधारण किसान थे। उनके पास इसकी इस रुचि को तृप्त करने का कोई साधन नहीं था। अपने घर में रखी हुई टाइमपीस घड़ी उसके लिये बड़ा आकर्षण का केन्द्र थी। उसके भीतर जो संसार भरा पड़ा था उसे जानने के लिए वह बेचैन रहा करता था।

माता-पिता दिन भर खेत में परिश्रम करके रात्री को घोड़े बेचकर सोते। यह समय उसे अपनी आकांक्षा पूरी करने के लिए उपयुक्त लगा। उसने एक रात उस टाइमपीस को खोलकर उसके सारे पुर्जे फिर ज्यों के त्यों फिट कर दिये। उस दिन उसकी प्रसन्नता देखते ही बनती थी।

हेनरी का जन्म 30 जुलाई 1863 को ग्रीन फिल्ड ग्राम के फोर्ड परिवार में हुआ था। बचपन में ही वह बड़ा जिज्ञासु था। मशीनों के बारे में उसकी विशेष जिज्ञासा थी। अपने घर की टाइमपीस खोलकर फिट कर देने के बाद उसने घर के कबाड़ खाने में पड़ी एक पुरानी घड़ी को खोला तथा दिन भर उसी को ठीक करने में जुटा रहा। जिस घड़ी को कारीगर ठीक नहीं कर पाये थे उसे इस आठ वर्ष के बालक ने ठीक कर दिया था। उसके कुछ पुर्जे उसने अपने हाथ से बनाये। इस सफलता के पीछे एक ही कारण था वह था हेनरी का मनोयोग।

हेनरी को अब अपनी ज्ञान वृद्धि के लिये और मशीनें चाहिये वे कहां से मिलें? हेनरी को उसके लिये एक तरकीब सूझी। वह जिस घर में जाता वहां की घड़ी देखने लग जाता और फिर असावधानी प्रकट करता हुआ गिरा देता। घर वाले उसे डांटते तो वह कहता ‘‘लाइये मैं अपने पिता के हाथ इसे ठीक करवा लूंगा। अपने घर आकर वह स्वयं उसे ठीक कर देता। बारह वर्ष की आयु में हेनरी अच्छा घड़ी साज बन गया।

गांव की पाठशाला की पढ़ाई पूरी करने पर हेनरी के पिता ने खेती करने को कहा। हेनरी को खेती करने में रुचि नहीं थी वह इंजीनियर बनना चाहता था। वह डेट्राइट चला गया। वहां औद्योगिक प्रशिक्षण स्कूल में भर्ती हो गया जहां मशीनों सम्बन्धी पढ़ाई होती थी। पिता की इच्छा के विपरीत हेनरी इस स्कूल में भर्ती हुआ तो उन्होंने खर्च देना बन्द कर दिया। घड़ी साजी का ज्ञान यहां उसके लिये बड़ा हितकर सिद्ध हुआ। वह डेट्राइट की एक घड़ी सुधारक दुकान पर पहुंचा। दुकान के मालिक से बोला—मैं घड़ियां सुधारना जानता हूं, क्या आप मुझे काम देंगे।’’ बारह वर्ष के इस देहाती बालक को देखकर उस दुकानदार को विश्वास नहीं हुआ। वह कुछ विनोदी स्वभाव का था। उसने सोचा कि यह घड़ियां तो क्या सुधारेगा पर प्रहसन की सामग्री अवश्य बन जायेगा। उसने इसे ऐसी घड़ी लाकर दी जिसे कोई सुधारक सुधार नहीं पाया था। हेनरी अपने काम में जुट गया। यह उसी प्रकार की घड़ी थी जो उसके घर में कबाड़ खाने की शोभा बढ़ा रही थी। हेनरी ने उसे ठीक कर दिया। दुकानदार की आंखें आश्चर्य से फैल गईं। उसने हेनरी को अपने यहां रख तो लिया पर ग्राहक भड़क न जाये इस कारण हेनरी के लिए पर्दे के पीछे बैठने की व्यवस्था करनी पड़ी।

इस दुकान में काम करने से दुकानदार को बहुत लाभ हुआ। वह बहुत कम समय में घड़ियां ठीक कर देता व पारिश्रमिक दुकानदार जो देता वही ले लेता। हेनरी ने इसे व्यवसाय के रूप में नहीं अपनाया था वह इसे साधना की तरह पूरे मनोयोग से करता था। उसे तो यंत्रों की जानकारी करने—अपनी ज्ञान वृद्धि से मतलब था। उसकी इस साधना का ही परिणाम था कि वह विश्व का धन कुबेर बना और उसके साथ के कारीगर अपने व्यावसायिक दृष्टिकोण के कारण घड़ी सुधारक से आगे न बढ़ पाये।

अपनी पढ़ाई से बचे समय में वह घड़ियों की इस दुकान पर काम करके अपना खर्च जुटा लेता। पूरे मनोयोग से पढ़ने का परिणाम यह हुआ कि वह जब इस स्कूल से निकला तो केवल यंत्रों का ज्ञाता ही नहीं था वरन् यंत्रों के आवश्यक सुधार तथा निर्माण के सम्बन्ध में भी उसका मस्तिष्क बहुत काम करने लगा था। अपनी प्रतिभा के कारण उसे काम ढूंढ़ने में दौड़-धूप नहीं करनी पड़ी। उसे ‘एडीसन एल्यूमिनेटिंग कम्पनी’ में इंजीनियर के पद पर नौकरी मिल गई।

प्रगति के इच्छुक पुरुषार्थी कभी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं होते वे तो निरन्तर आगे बढ़ना चाहते हैं। वे नदी की तरह निरन्तर गतिमान रहना चाहते हैं बन्द तालाब की तरह सड़ना नहीं चाहते। जिन व्यक्तियों ने महान उपलब्धियां प्राप्त कीं वे प्रथम श्रेणी के व्यक्ति थे दूसरी के नहीं। हेनरी इंजीनियर बनकर ही संतुष्ट नहीं हो गया। उसने कारखाने का काम करने के पश्चात बचे हुए समय में नवीन यंत्र बनाने का विचार किया। उसके पिता कृषक थे। ग्रीन फिल्ड के संगी निवासी किसान थे। हेनरी फोर्ड ने उनके लिये एक ऐसी गाड़ी का निर्माण करने की योजना बनाई जो खेतों पर सामान ले जाने में प्रयुक्त हो सके।

हेनरी फोर्ड इस दिशा में पहला व्यक्ति नहीं था। उसके पहले भी मोटर गाड़ी का निर्माण हो चुका था। वह मोटर गाड़ी इतनी लागत में पड़ती थी कि साधारण व्यक्ति उसे खरीदने का साहस नहीं कर सकता था। अब तक यंत्र चलित मोटर कार अमीर लोगों के लिये ही थी। हेनरी फोर्ड चाहता था कि इसमें यांत्रिक सुधार करके कम से कम लागत की मोटर कार बनाई जाय जिससे सामान्य व्यक्ति लाभ उठा सकें।

हेनरी इस काम में जुट गया। उसने अपने घर के अन्दर ही मोटर कार बनानी आरम्भ कर दी। 1892 में यह बनकर तैयार हुई तो निकालने की समस्या सामने आयी। घर की दीवार फोड़कर उसके लिए रास्ता बनाया गया। मोटर कार 5-6 मील प्रति घंटा की रफ्तार से चलती थी। देखने में बड़ी भद्दी थी और शोर करके आसमान सिर पर उठा लेती थी। इस प्रयास को लोगों ने पागलपन समझा। हेनरी का मजाक उड़ाया। हेनरी जानता था कि वह सफल हुआ है।

इस निर्माण के पीछे हेनरी फोर्ड का उद्देश्य यह था कि उसे जन साधारण खरीद सके और अधिक संख्या में बनाई जा सके। पहली मोटर कार में उसने कम से कम लागत लगाई थी। 1898 में दूसरी मोटर कार तैयार हुई जो देखने में तो भद्दी थी पर कीमत तथा चलने के दृष्टिकोण से अति उत्तम थी। उसने इसका प्रचार करने के लिए मोटर कार रेस में भाग लिया और रेस जीती।

1903 में डेट्राइट में ‘‘फोर्ड मोटर कम्पनी’’ की स्थापना हुई। हेनरी फोर्ड ने 1898 वाले मॉडल में थोड़ा सुधार करके मोटर कारों का निर्माण आरम्भ कर दिया। उनकी मोटर कारें सस्ती होने से चल निकलीं। उनमें दिन पर दिन सुधार होने लगा। फोर्ड एक इंजीनियर ही नहीं कुशल व्यापारी तथा उद्योगपति के रूप में प्रसिद्ध होने लगा। अधिक संख्या में मोटर बनाने के कारण लागत कम पड़ने लगी और मोटर कारें सस्ती पड़ने लगीं।

कारखाने की प्रणाली में सुधार करने के लिये हेनरी के उर्वर मस्तिष्क में कोई न काई योजना आती रहती थी। उसने ‘कन्वेयर बेल्ट’ का आविष्कार करके कारीगरों के समय की बड़ी बचत कर दी। मोटर कार में भी प्रत्येक मॉडल में वह पर्याप्त सुधार करके निकालता जिससे लोगों का विश्वास बढ़ने लगा।

आरम्भिक दिनों में जब उसने अपनी थोड़ी सी पूंजी से डेट्राइट में फोर्ड मोटर कम्पनी की स्थापना करके उत्पादन आरम्भ किया था तो उसे बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पहले तो उसका एक भागीदार उसे छोड़कर चला गया। वह अधिक लाभ लेने के लिए मोटर गाड़ी का मूल्य अधिक रखना चाहता था। हेनरी इस पर राजी न हुआ। सीमित साधनों से कारखाना चलने लगा तो जी.बी. सेल्डन ने इसके विरुद्ध नमूना चोरी का दावा दायर कर दिया। पहली बार वह हार गया किन्तु वह निराश होने वाला नहीं था। उसने आगे अपील की और जीता।

इन कठिनाइयों को पार करता हुआ हेनरी फोर्ड आगे बढ़ता गया। अपने उत्पादन में निरन्तर सुधार करता रहा। इसके कारखाने में बनी मोटर कारें धड़ाधड़ बिकने लगीं। एक दिन जिस हेनरी फोर्ड की मोटर कार को ‘खटारा’ कहकर लोगों ने उसका मजाक उड़ाया वही अपनी लगन, अपने परिश्रम, सूझ बूझ तथा धैर्य से विश्व के श्रेष्ठतम पूंजीपतियों में गिना जाने लगा। उसके कारखाने में विश्व भर में सबसे अधिक मोटर गाड़ियां बनतीं हैं जो प्रति वर्ष लाखों की संख्या में बनाई व बेची जाती हैं।

विश्व युद्ध के समय हेनरी फोर्ड ने मित्र राष्ट्रों की मदद की। अपने कारखाने अमेरिका सरकार के लिए खोल दिये। उसमें जल जहाजों का निर्माण होने लगा। युद्ध के समय कितनी ही मोटर गाड़ियां हेनरी फोर्ड ने अमेरिका सरकार को दे दीं। हेनरी केवल धन कुबेर ही नहीं एक देशभक्त का हृदय भी रखता था। विनाश के बादल मंडराये तो वह अपनी सम्पदा को लोकहित में प्रयुक्त करने को आतुर हो उठा।

शिकागो ट्रिब्यून नामक पत्र ने हेनरी फोर्ड को राजद्रोही ठहराया। हेनरी फोर्ड अन्तर्राष्ट्रीय शांति का पक्षपाती था। वह नहीं चाहता था कि कोई राष्ट्र अपने पास शस्त्रों का विशाल भंडार रखे इसके लिये उसने एक आंदोलन चलाया था। आपातकालीन स्थिति में अमेरिका को जी-जान से सहायता करने वाले हेनरी फोर्ड का विवेक कहता था कि शस्त्रों की होड़ मानव के लिये हितकर नहीं है। हेनरी में एक सच्चे मानव के गुण थे तभी वह सरकार की नीति के विरुद्ध आंदोलन चला सका था। उसने शिकागो ट्रीब्यून पर दावा दायर किया और तीन वर्ष तक मुकदमा लड़कर जीता।

हेनरी फोर्ड के कारखाने में 18000 आदमी काम करते हैं। उनमें नवयुवक, हृष्ट–पुष्ट कर्मचारी बहुत कम हैं। अधिकांश अन्धे, काने लूले, लंगड़े, अपंग कर्मचारियों को उन्होंने अपने कारखाने में काम दिया। ईश्वर के मंदिर की तरह उनके प्रति श्रमालय का द्वार हर व्यक्ति के लिए खुला है। वे यह नहीं देखते कि यह व्यक्ति मेरे यहां काम कर सकेगा या नहीं वरन् यह देखते हैं कि उसे कौन सा काम देकर उसे रोजगार दिया जाय। समाज में जो कैदी स्थान नहीं पा सकते उनको भी वे अपने यहां काम देते थे। उन्हें ईश्वर ने धन दिया था। उस धन को उन्होंने अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने में लगाया। ऐसे लोग जिन्हें कहीं काम नहीं मिलता था वे इनके यहां काम पाते थे। अपने कर्मचारियों को ये अधिक से अधिक वेतन तथा सुविधाएं देते थे। दान देने में भी हेनरी फोर्ड कभी पीछे नहीं रहे।

एक घाटे में चलने वाली जहाज कम्पनी इन्होंने खरीद ली। मजदूर हड़ताल कर रहे थे। खरीदने के दूसरे ही दिन इन्होंने घोषणा कर दी कि मजदूरों को उनकी मांग के बराबर वेतन दिया जायेगा। मजदूर काम पर लौट आए। थोड़े ही समय में घाटा भी पूरा हो गया। हेनरी फोर्ड ने इस प्रयोग से दिखा दिया कि उदारता का परिणाम शुभ ही होता है। मजदूरों को अधिक वेतन देकर भी लाभ कमाया जा सकता है।

हेनरी फोर्ड की इच्छा थी कि वे एक साधारण आदमी की तरह मरें। उनकी यह इच्छा पूरी हुई। जिस दिन हेनरी फोर्ड की मृत्यु हुई उस दिन घनघोर वर्षा हुई। उनके बेटे भी उनके पास नहीं पहुंच सके। बिजली टेलीफोन आदि के तार टूट चुके थे। फर्नीचर जलाकर उनके कमरे में उजाला किया गया। अन्तिम समय में उनके पास उनकी पत्नी व एक नौकर ही था।

हेनरी फोर्ड ने अपने अध्यवसाय से अपार धन अर्जित किया उसका उपयोग जन-कल्याण में किया तथा कभी उस पर गर्व नहीं किया। उन्होंने जीवन जीकर बताया कि धन साधन है साध्य नहीं। काश! सब पूंजीपति हेनरी फोर्ड के जीवन से कुछ प्रेरणा लेते।

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