बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

फिर न मिलेगा अवसर ऐसा

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समय की हवा के साथ देश-प्रेम की दबी हुई चिनगारी दावानल बन कर सारे भारत में फैल चुकी थी। कानपुर तो इस क्रान्ति का केन्द्र था। रूप के हाट में बैठी एक वेश्या के अन्तःकरण से आवाज आयी। ’’पगली अजीजन तू चुपचाप क्या बैठी है। इस हाट पर बैठकर रोज-रोज मरने की अपेक्षा तो एक ही दिन मरना अच्छा है। उठ! बहती गंगा में हाथ धोले। छोड़ यह अस्मत का व्यापार, देश की आन पर मर मिट।’’ अजीजन ने अपने अन्दर बैठे देवता की आवाज को सुना और उठ खड़ी हुई।

उसने स्त्रियों का एक दल संगठित किया। यह दल पुरुष वेश में हाथों में तलवार लिये कानपुर के राजमार्ग पर निकल पड़ा। नारियों के इस साहस को देखकर पुरुष वर्ग में एक नवीन जोश उत्पन्न हो गया। कल की वेश्या आज नारी शक्ति का प्रतीक बन गई। सबके हृदय में उसके प्रति श्रद्धा का सागर लहराने लगा।

इस महिला—सैनिक दल ने घर-घर क्रान्ति का सन्देश पहुंचाया। घायल सैनिकों की सेवा-सुश्रूषा की। उन्हें युद्ध के मैदान से उठाकर सुरक्षित स्थान पर लाने का काम बड़ी तत्परता से चलने लगा। यह दल जिधर निकल जाता उधर उत्साह की एक लहर उमड़ पड़ती। सिपाहियों को लड़ाई को उत्साहित करने के लिये इनके मधुर शब्द ही पर्याप्त थे पर ये अपने साथ फल तथा मिठाइयां ले जातीं तथा उन्हें बांटतीं।

तबले की ताल पर थिरकने वाली अजीजन अब बिजली बनकर युद्ध क्षेत्र में चमक रही है। उसके नेतृत्व में वीरांगनाओं का दल गोला बारूद सैनिकों के पास पहुंचाता उन्हें विश्राम देता तथा समय पड़ने पर स्वयं भी युद्ध में भाग लेता है।

जनरल नील कानपुर में हुई हार की खबर सुनकर बौखला उठा था। नाना साहब ने अंग्रेज परिवारों की रक्षा का पूरा प्रयास किया था पर नील अपनी सेना के साथ गांव के गांव जलाकर खाक करता हुआ आ रहा था। यह सुनकर अजीजन का बदला लेने का संकल्प और भी दृढ़ हो गया।

युद्ध क्षेत्र में अजीजन पूरी वीरता के साथ लड़ी दुर्भाग्य से अंग्रेजों ने उसे बंदी बना लिया। सेनापति हेवलाक कोस के सामने अजीजन को लाया गया तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि यह स्त्री भी युद्ध में भाग ले सकती है। उसने अजीजन से कहा—‘‘तुम यदि अपने अपराधों के लिये क्षमा मांग लो तो तुम मृत्यु दण्ड से बच सकती हो।’’

अजीजन के ओठों पर मुस्कान फैल गई। उसने अपने आप से कहा ‘‘कैसा पागल है यह अंग्रेज सेनापति? वह अजीजन मर गई जो मौत से डरती थी और पेट भरने के लिये घृणित व्यवसाय करती थी पर आज मैंने जीना सीख लिया है। मृत्यु का भय क्या? मृत्यु तो एक दिन आयेगी ही।’’ सेनापति हेवलाक इसकी निर्भीकता देखता ही रह गया। अजीजन बोली—‘‘मैं आततायी से क्षमा नहीं मांगती। तुमने निरपराध लोगों की हत्या की है।’’ हेवलाक ने पूछा—‘‘क्या अंग्रेज परिवारों के साथ ऐसा अन्याय नहीं हुआ है?’’ ‘‘तुम्हारा सेनापति नील इस प्रकार भारतीयों की हत्या नहीं करवाता तो कानपुर में उसका बदला न लिया जाता।’’ हेवलाक क्रोधित होकर चीखा ‘‘आखिर तुम चाहती क्या हो?’’ ‘‘अंग्रेजी कुशासन का अन्त।’’ अजीजन का उत्तर था।

सेनापति का इशारा पाते ही बन्दूकें गरज उठीं अजीजन का शरीर चिपड़े-चिपड़े हो गया पर उसके शब्द वायुमण्डल में गूंजते रहे।
आत्मा की आवाज को सुनकर उठ खड़ी होने वाली अजीजन अमर हो गई। मनुष्य के पतन-उत्थान की कहानी अजीजन अपनी जुबानी कह गई जिसे दुहरा कर कोई भी अमर हो सकता है।
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