बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

असमय बुझी दोष ग्रस्त-प्रतिभा पैरासेलसस

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सोलहवीं शताब्दी का प्रारम्भिक काल योरोप के इतिहास में क्रांति युग माना जाता है। गणित, ज्योतिष, विज्ञान, रसायन, चिकित्सा तथा दर्शन आदि के क्षेत्रों में नई खोजें हो रही थीं अनेक विद्रोहियों ने अपने पूर्व में प्रचलित मान्यताओं का खुलकर विरोध किया था। चिकित्सा शास्त्र क्षेत्र में विसेलियस पारे तथा पैरासेलसस आदि ऐसे विद्वान हुये थे जिन्होंने अपने युग की चिकित्सा प्रणाली के अनेक सिद्धान्तों को मिथ्या सिद्ध कर दिया था।

यूरोप के औषधीय वैज्ञानिकों के अनुसार धातुओं और रासायनिक तत्वों का प्रयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़े ही भयंकर परिणाम उत्पन्न करने वाला था। क्योंकि उनकी दृष्टि में यह वस्तुएं विष थीं। पर पैरासेलसस उस युग के उन महत्वपूर्ण विद्वानों में से एक थे जिन्होंने सर्व प्रथम यूरोप के औषधीय ज्ञानकोष में रसायनिक तत्वों और धातुओं का समावेश किया था। पैरासेलसस का जन्म स्विट्जरलैंड में सन् 1493 में हुआ था। इनका अधिकांश समय अपनी मातृ-भूमि से परामिडों की छाया तक बीसियों देशों की यात्रा में व्यतीत हुआ। यात्रा के मध्य चिकित्सा शास्त्र के कितने ही आचार्यों, चिकित्सकों और फकीरों से भेंट करके विषय से सम्बन्धित नये-नये अनुभव एकत्रित किए थे।

पैरासेलसस का विश्वास था कि प्रकृति की विचित्रताओं का रहस्य जानना कोई आसान कार्य नहीं है। जिज्ञासु को इन विचित्रताओं के मध्य ही भटकना होगा और अपनी मान्यताओं के अनुसार उनका सारा जीवन भटकने में ही गया। तब कहीं शोध कार्य में सफलता प्राप्त कर सके। पैरासेलसस द्वारा संचित ज्ञान श्रृंखला बद्ध न होकर एक विशाल संग्रहालय की तरह था जिसमें विभिन्न कालों की वस्तुएं संग्रहीत रहती हैं।

पैरासेलसस के संग्रह में रहस्यवादी दर्शन से लेकर अरबी हकीमों के नुस्खे तक संग्रहीत थे। इसलिये इस अद्भुत वैज्ञानिक पर दार्शनिक और चिकित्सक दोनों ही क्षेत्र के व्यक्तियों का जोर है। रहस्यवादी दार्शनिक इन्हें अपना जनक मानते हैं जब कि आधुनिक वैज्ञानिक औषधीय रसायन का जन्मदाता कहकर अपना दावा प्रस्तुत करते हैं।

सन् 1525 में पैरासेलसस की ख्याति चिकित्सक के रूप में सारे यूरोपीय राज्यों में फैल चुकी थी। इसलिये बेसल विश्व-विद्यालय में औषधि विज्ञान विभाग में प्राध्यापक पद पर इनकी नियुक्ति हो गई थी। विश्व-विद्यालय के उस कक्ष में, जिसमें पैरासेलसस अपने विद्यार्थियों को पढ़ाया करते थे, गेलन की औषधि विज्ञान सम्बन्धी रचनाओं में आग लगादी। बाद में उन्होंने अपने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा—‘पुरानी मान्यताओं और संस्कारों को जब तक तुम अग्नि के समर्पित नहीं कर देते तब तक तुम मान्यताओं को कैसे सीख सकते हो। अमुक व्यक्ति ने यह कहा है, इसलिये तुम उसे मानने के लिये तैयार क्यों हो जाते हो, सत्य स्वयं अनुभव करना चाहिये और जिसमें उसी स्वीकार करने का साहस है वही अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल हो सकता है।’’

पैरासेलसस के इस व्यवहार से विश्व-विद्यालय के सारे उच्च अधिकारी विरोधी हो गये। पैरासेलसस को अपने मार्ग पर विश्वास था अतः कोई विरोधी उनका कुछ न बिगाड़ सका। प्रत्येक नये कार्य में परम्परावादी बाधा डालते ही हैं। पैरासेलसस रोगहीन जीवन को ही सबसे महत्वपूर्ण स्थान देते थे। उनकी मान्यता के अनुसार चिकित्सक का लक्ष्य सत्य की प्राप्ति होना चाहिए। ज्ञान को पुस्तकों की सीमाओं में बांधना उन्हें कहां पसन्द था इसी लिये तो वे कहा करते थे कि ज्ञान पुस्तकों के बाहर बिखरा हुआ है। वास्तव में यह कथन उनके जीवन में सही रूप में दिखाई देता है उन्होंने अपना सारा जीवन पुस्तकों को पढ़कर ज्ञान संचित करने में नहीं लगाया वरन् पुस्तकों के बाहर जो ज्ञान बिखरा पड़ा है उसे वे संजोते रहे।

पैरासेलसस आजन्म पुरातन परम्पराओं का विरोध करते रहे। कोई बात पहले से चलती आ रही है इसलिये वह सही ही होगी यह कोई आवश्यक तो नहीं। उन दिनों विश्व–विद्यालय में शिक्षा का माध्यम लैटिन भाषा थी। पर पैरासेलसस ने जर्मन भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया। यद्यपि यह कार्य विश्व-विद्यालय की परम्परा के विपरीत था और संपूर्ण यूरोप में उच्च ज्ञान के लिये लैटिन को ही मान्यता प्राप्त थी। पर पैरासेलसस का यह तर्क था कि जर्मन जन सामान्य की भाषा है अतः क्यों न इसे मान्यता दी जाये। एक ओर विद्यार्थियों में उनकी लोकप्रियता बढ़ी तो दूसरी ओर विश्व-विद्यालय के अधिकारी तथा लैटिन प्रेमी उनके विरोधी हो गये।

पैरासेलसस ही वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने उपदंश (सिफलिस) जैसे भयंकर रोग से छुटकारा दिलाने के लिये भरसक प्रयत्न किया और सफलता भी मिली। उपदंश की अवस्थाओं का वर्णन करते हुए इस रोग को वंशानुगत बताया। इस रोग की चिकित्सा के लिये उन्होंने पारद का प्रयोग किया था। पैरासेलसस ने ही सर्व प्रथम कैलोमेल और ऐण्डीमनी का प्रयोग चिकित्सा के लिये किया था। पूर्वी देश शताब्दियों से औषधि निर्माण में रसायनों का प्रयोग करते आ रहे हैं। इस वैज्ञानिक ने यह अद्भुत ज्ञान पूर्वी देशों से ही प्राप्त किया था।

यदि व्यक्ति में अच्छी लगन हो तो वह अपनी विरोध मान्यताओं को भी समूल नष्ट कर सकता है। पैरासेलसस का स्वभाव अहंकारी था। उनका अहंकार इस सीमा तक बढ़ गया था कि उन्होंने एकबार बेसल विश्व-विद्यालय में अपने भाषण में कहा था कि दुनिया के तमाम विश्व-विद्यालयों का अनुभव मेरी दाढ़ी के बालों से भी कम है। व्यक्ति के सन्गुण यदि उसे उत्थान की ओर ले जाते हैं तो उसके अन्दर अड्डा जमाये अवगुण भीतर ही भीतर उसकी जड़ खोखली करते रहते हैं। सद्गुण यदि अच्छाई का प्रसार करते रहते हैं तो अवगुण वातावरण को विषैला बनाने में कब चूकते हैं।

इस अहं वृत्ति के कारण पैरासेलसस से बेसल के नागरिक भी विरोध प्रकट करने लगे थे। बेसल के न्यायाधीश का अपमान करने के बाद दण्ड से बचने के लिये नगर छोड़ कर भागना पड़ा अहंकार की प्रवृत्ति ज्ञानी की प्रगति में बाधक होती है जब वह अपने को सबसे अधिक विद्वान समझने लगता है तो विद्वान में नम्रता का और विनय का जो गुण है वह लुप्त हो जाता है और उसका ज्ञान एक सीमाबद्ध होकर रह जाता है।

इसके अतिरिक्त पैरासेलसस को शराब पीने की भी बड़ी बुरी लत लगी थी। पहले तो शराब को पीता है पर बाद को शराब ही आदमी को पीकर उसका अन्त कर देती है। सुरापान के दोष के कारण अनेक लांछनायें सहनी पड़ीं और 1541 में एक मदिरालय में अधिक पी जाने के कारण केवल 84 वर्ष की की आयु में उनका देहान्त हो गया। यदि इन दोषों से उनका जीवन बचा रहता तो शायद और वे भी नई-नई खोजें करके मानवता का भला करते।

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