बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

न्याय के लिए संघर्ष

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जगदीश चन्द्र बसु बी.ए. की उपाधि लेकर भारत लौटे। वह समय स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व का था। भारतीयों के साथ भेदभाव बरता जाता था। वह प्रेसिडेंसी कालेज में भौतिक विज्ञान के अध्यापक हो गये। कॉलेज के संचालक तथा अनेक अध्यापक अंग्रेज थे। भारतीय अध्यापकों को केवल दो तिहाई वेतन ही मिलता था।

समान योग्यता प्राप्त और एक समान विद्यालय की सेवा करने वाले अध्यापकों में वेतन की यह असमानता रंग भेद के कारण ही थी उस विद्यालय में तीन अध्यापक कम वेतन पर काम करते थे पर विरोध कौन करे? विरोध करने का परिणाम सभी जानते थे नौकरी से अलग कर देना। अंग्रेज संचालक तो यह मानता था, कि भारतीय अध्यापकों को भले ही समान शिक्षा और योग्यता प्राप्त हो पर वह विज्ञान विषयों को उतनी अच्छी तरह नहीं पढ़ा सकते थे जितनी अच्छी तरह अंग्रेज।

अंग्रेजों का यह अन्याय बसु सहन न कर सके। उन्होंने समान वेतन तथा समान सुविधाओं की मांग की और अन्याय का विरोध करने लगे। बसु भारतीय थे, अपने देश और जाति का उन्हें अभिमान था। वह सोचते, यह सब प्रकार के अन्याय इसलिए सहन करने पड़ते हैं कि हमारा देश स्वतन्त्र हीन है। सात समुद्र पार देश के व्यक्तियों का शासन है।

बसु के इस विरोध से कालेज का संचालक रुष्ट हो गया। उसने बसु की नौकरी स्थाई भी नहीं की, इसलिए और भी कम वेतन मिलता था। इस कम वेतन को लेने के लिए बसु तैयार नहीं थे। महीने की प्रथम तारीख आती, वेतन के लिए उन्हें बुलाया जाता और वह मना कर देते। पर अध्यापन कार्य में किसी प्रकार की कमी नहीं की। पूर्ण मनोयोग के साथ वे अपनी सेवायें देते रहे। और साथ ही समान अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष जारी रखा।

दो माह, चार माह, अब पूरे तीन वर्ष हो गये। इतना पैसा उनके पास कहां था जो वेतन के अभाव में अपने परिवार का खर्चा चला लेते। वह कठिनाइयों में झुके नहीं वरन् उनका सामना करने का प्रयास करते थे।

आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। अभी तक वह कलकत्ता में रहते थे पर अब वहां का मकान छोड़कर चन्द्रनगर में रहने लगे। यहां कम किराये का एक मकान मिल गया। वहां से नित्य कलकत्ता आना होता था रास्ते में एक नदी पड़ती थी, उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि रोज-रोज नाव का किराया दें। वह अपने हाथ से नाव खेकर इस पार ले आते, और उनकी पत्नी नाव को फिर वापस उस किनारे पर ले जातीं। उनकी पत्नी ने आर्थिक कठिनाइयों के समय पूरा-पूरा सहयोग दिया।

तीन वर्ष के इस संघर्ष के बाद कालेज के अधिकारियों को झुकना पड़ा और सिद्धान्ततः मान लिया कि कालेज के सभी अध्यापकों को चाहे अंग्रेज हो या भारतीय समान रूप से वेतन तथा अन्य सुविधाएं प्रदान की जायेंगी। बसु को गत तीन वर्षों का पूरा वेतन देकर उनकी सेवाओं को स्थायी घोषित किया गया।

यह जगदीशचन्द्र बसु भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे जिन्होंने वनस्पति विज्ञान में अनुसन्धान कार्य करके सम्पूर्ण विश्व में अपनी धाक जमायी थी।

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