बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

अमरीका का आदर्श राष्ट्रीय अध्यापक-दल

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32 वर्षीय रिचर्ड हील्ट ने सैनफ्रान्सिस्को (केलिफोर्निया) में बस चलाने का धन्धा छोड़ दिया और वह निर्धन बच्चों को शिक्षा देने के लिये वाशंगटन चले गये।

धर्मशास्त्र के 28 वर्षीय छात्र केनेथ बर्नन आजकल फिलाडेल्फिया की गन्दी बस्ती के एक स्कूल में छात्रों को चित्रकारी की शिक्षा दे रहे हैं।

इन दो व्यक्तियों ने अपने जीवन के कार्यक्षेत्रों में मौलिक परिवर्तन क्यों कर लिया? इसका कारण यह था कि उन्हें अमरीका में एक शैक्षणिक एवं निर्धनता विरोधी अभिनव कार्यक्रम ‘राष्ट्रीय अध्यापक-दल’ ने अपनी ओर बरबस आकृष्ट कर लिया था।

इस दल का संगठन इस विचार को लेकर किया गया है कि शिक्षा निर्धनता के चक्र को तोड़ने का सबसे उत्तम उपाय है। इस कार्यक्रम ने एक साल के अन्दर ही 1100 पुरुषों और महिलाओं को अपनी ओर आकृष्ट किया है। उनमें से अधिकांश कालेजों के युवा स्नातक एवं स्नातिकायें हैं। ये लोग निर्धन परिवारों के बच्चों को शिक्षा देने के नये और अच्छे तरीके ढूंढ़ने और उन्हें कार्य रूप में लाने का निरन्तर प्रयास करते रहते हैं।

दल के दो तिहाई शिक्षक बड़े शहरों की गन्दी बस्तियों के स्कूलों में कार्य करते हैं और शेष देहाती स्कूलों में। दल के अधिकांश सदस्य अपने लिये निश्चित किये स्कूलों में सप्ताह में चार दिन कार्य करते हैं और दो दिन किसी निकटवर्ती विश्वविद्यालय में स्नातकों के पाठ्यक्रमों में भाग लेकर अपना अध्ययन भी जारी रखते हैं। ‘राष्ट्रीय शिक्षक दल’ के सदस्य दस से लेकर 5 तक की टोलियों में ऐसे प्रत्येक स्कूल में कार्य करते हैं, जिसने उन शिक्षकों की मांग की हो। दो वर्ष तक सेवा कार्य करने के पश्चात् ही अध्यापकों को एम.ए. की उपाधि मिल जाती है।

दल के लगभग 260 सदस्य अनुभवी शिक्षक हैं और वे शिक्षक के दलों के नेताओं के रूप में काम करते हैं। स्कूल के मुख्याध्यापक और दल के नेता द्वारा उन अध्यापकों के कार्य की योजना बनाई जाती है। इसका उद्देश्य छात्रों की व्यावसायिक योग्यता में क्रमिक वृद्धि करना और स्कूल की आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है।

ये सेवाभावी अध्यापक नियमित शिक्षकों का स्थान ग्रहण नहीं करते हैं। प्रारम्भ में वे थोड़े विद्यार्थियों के साथ कार्य करते हैं, अथवा एक विद्यार्थी के साथ कार्य करके बालक की नियमित शिक्षा की कमी को पूरा करते हैं। वे ऐसे बच्चों की ओर विशेष रूप से ध्यान देते हैं, जो शिक्षकों के लिये समस्या बने हुये हों।

तदनन्तर ‘राष्ट्रीय शिक्षक-दल’ के सदस्य आवश्यकतानुसार नियमित श्रेणियों को शिक्षा देते हैं और इस प्रकार नियमित शिक्षकों को अन्य गतिविधियों के लिये समय मिल जाता है।

कभी-कभी ‘राष्ट्रीय शिक्षक-दल’ के शिक्षकों को परीक्षा में असफल हो जाने वाले ऐसे छात्रों का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है, जिन्हें नियमित शिक्षक-मण्डल ने कमी दूर कराये जाने के हेतु अधिक पढ़ाई के लिये चुना हो।

अमरीका के विख्यात शिक्षा-शास्त्री, सामाजिक नेताओं एवं प्रबुद्ध नागरिकों ने ‘राष्ट्रीय शिक्षक-दल’ की इस योजना की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुये कहा है कि छोटा-सा कार्यक्रम हमारी शिक्षा प्रणाली में बड़ा परिवर्तन ला रहा है।

‘राष्ट्रीय शिक्षक-दल’ अमरीका के गरीब बालकों और उनके माता-पिताओं के लिये वरदान सिद्ध हो रहा है। हमारे देश में भी शिक्षा के पिछड़ेपन को देखते हुये ऐसे प्रयास की नितान्त आवश्यकता है, जिससे विद्यार्थियों में फैल रही निराशा और विफलता की भावना दूर होकर वे उचित बौद्धिक एवं स्वावलम्बी बनाने वाली औद्योगिक शिक्षा प्राप्त कर न केवल आदर्श नागरिक ही बनें बल्कि देश के नव-निर्माण में उचित योगदान दे सकें।

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