बुद्धि, कर्म व साहस की धनी प्रतिभायें

नीचे से ऊपर बढ़ने वाले श्री ए.जी. वेल्स

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आगे बढ़ने की अदम्य आकांक्षा, आन्तरिक उत्साह, ध्येय के प्रति अविचल निष्ठा मनुष्य को क्या से क्या बना डालती हैं। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण देखिये।

एक कपड़े की दुकान। मालिक जोर से डांट रहा है ‘‘जल्दी करो भाई! ग्राहक चला जायगा, तब कपड़ा निकाल कर दोगे क्या?’’

और छोटी उम्र का एक लड़का, जो उस दुकान का नौकर है शीघ्रता कपड़े का थान निकाल कर दे रहा है। हाथ काम में लगे हैं दिमाग दूकान के मालिक की डाट के प्रति सजग है—और मन? वह उड़ रहा है किसी ऐसे लोक की कल्पना में जहां यह दासता, यह ताबेदारी, यह परवशता न होगी!

किन्तु परवशता से छुटकारा कैसे पाया जाय? मन को ऊंचा उठने की, कुछ बने की कामनाओं को कैसे पूरा किया जाय? प्रत्येक वस्तु के लिये पैसा चाहिए तब कहीं आवश्यक साधन सुविधाएं जुट पाते हैं।

लेकिन वह लड़का सोचता है ‘‘मेरी मां तो गरीब है गरीब न होती तो मुझे यों थोड़े से पैसों के लिये इस उम्र में ऐसी नौकरी क्यों करनी पड़ती? लेकिन फिर भी मेरी महत्वाकांक्षाएं अडिग हैं। मुझे ऊंचा उठना है। आगे बढ़ना है। सारी जिंदगी यही दासता नहीं करना है। साधन नहीं हैं तो उन्हें जुटाऊंगा। कठिन से कठिन श्रम करूंगा। अपने ध्येय को प्राप्त करने के लिये जो भी कठिनाइयां सामने आऐंगी उन्हें पराजित करूंगा और दुनिया को दिखा दूंगा कि भाग्य नहीं मनुष्य की कर्म निष्ठा बड़ी है।’’

बस किशोर का संकल्प प्रबल हुआ, और उसने निश्चित दिशा में प्रयत्न प्रारम्भ कर दिये। उसके हृदय में एक ऐसा व्यक्ति बनने की महत्वाकांक्षा थी जो संसार प्रसिद्ध हो—जिसे सब आदर तथा श्रद्धा के साथ स्मरण करें और जो काल पर अपने अमिट पदचिह्न छोड़ जाये।

और इस सबके लिये उसे सबसे अधिक भाया एक लेखक का व्यक्तित्व। बस उसने इसी दिशा में अपने सारे प्रयत्न, अपनी समस्त गतिविधियां मोड़ दीं।

सुबह से शाम तक दुकान पर काम करता वह, रात को छुट्टी पाता, तो घर आकर पढ़ना प्रारम्भ कर देता। गये रात तक उसका अध्ययन चलता रहता। प्रातः भी दुकान जाने का समय होने तक—वह थोड़ा सा समय अपने अध्ययन के लिये निकाल लेता और रात को पढ़े हुए अंश की पुनरावृत्ति हो जाती।

कुछ दिन में यह हाल हो गया कि पुस्तकें दुकान भी साथ जाने लगीं और जितने समय कोई ग्राहक न आता उतने समय उसका अध्ययन चलता रहता। उसकी निष्ठा को देख कर मालिक भी कुछ न कहता।

लिखने के लिये पहले पढ़ना—ज्ञान बढ़ाना आवश्यक था। सो प्रथम प्रक्रिया पूर्ण हुई। अब उसने लेखन भी धीरे धीरे प्रारम्भ किया। पहले छोटे छोटे लेख लिखे। अपने आप लिखता फिर काटता फिर लिखता। जब तक पूरा संतोष न हो जाता कि यह प्रत्येक दृष्टि से उत्कृष्ट हो गया है तब तक उसे संवारता ही रहता।

कभी निर्देशन की भी आवश्यकता पड़ती, तो वह साभार परिचित लोगों के पास जाता और अपनी समस्या का समाधान कर लेता।

जो भी इस की गहन निष्ठा, प्रबल प्रयासों तथा अटूट लगन को देखता वही इस के प्रति सहानुभूति प्रकट करता और भरसक सहायता के लिये तैयार हो जाता। लाइब्रेरी से पुस्तकें लाकर पढ़ीं कुछ परिचित लोगों की सहायता से प्राप्त कीं। अधिकतर उसने सामाजिक उपन्यासों का ही अध्ययन किया जिसके फलस्वरूप जीवन का एक दर्शन उसके सामने आया और आया मानव का मनोवैज्ञानिक स्वरूप।

धीरे धीरे लेखों से कहानियां लिखनी प्रारम्भ कीं। लिखते-लिखते जब उसे पूर्ण विश्वास हो गया कि अब मेरी कहानियां लोगों को मनोरंजन एवं उल्लास देने के साथ उन्हें जीवन की एक दिशा देने में भी पूर्ण समर्थ हैं तब उसने कहानियों का प्रकाशन भी प्रारम्भ कर दिया। जनता में उसकी कहानियों का भरपूर स्वागत हुआ। वे लोगों को इतनी प्रिय लगीं कि उसे कहानी लेखन का कार्य बढ़ाना आवश्यक हो गया। जनता में उसकी कहानियों की धूम मच गई, लोग मुक्त कंठ से उसकी सराहना करने लगे।

लोगों ने सराहना की, तो उत्साह और बढ़ा! मासिक प्रतियां दुगुनी हो गईं। पर पत्रिकाओं में भी देना प्रारम्भ किया! इससे उसका व्यक्तित्व प्रकाश में आया लोगों ने उत्साहित किया। प्रेरणा तथा प्रशंसा दोनों में ही अपार जीवनी शक्ति होती है। व्यक्तित्व के विकास में ये ऐसे ही कार्य करती हैं जैसे पौधे के विकास में जल तथा प्रकाश।

अब तक विचारों में भी परिपक्वता आ गई थी और कलम में प्रौढ़ता। अब जो उपन्यास लिखना प्रारम्भ किया तो उसमें भी आशातीत सफलता प्राप्त हुई।

गरीबी अपने आप में एक ऐसी शिक्षिका है जो न जाने क्या क्या सिखा देती है, न जाने कितना ज्ञान भर देती है जीवन में। इस युवक ने भी गरीबी की पाठशाला में जिंदगी की किताब पढ़ी थी। सो लेखों में तथा उपन्यासों में वह मार्मिकता रहती कि छपते ही हाथों हाथ बिकते। लोग पढ़ते पसंद करते और सराहते।

एक लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त करने का उस बालक का स्वप्न आयु के साथ बढ़ा विकसित हुआ और आयु के साथ ही सफल होता हुआ युवा तथा प्रौढ़ होता गया।
अपने अदम्य साहस प्रबल मनोकामना, महत्वाकांक्षा, लगन, उत्साह, कठिन श्रम तथा आत्म विश्वास के बल पर ही यह व्यक्ति सफलता अर्जित कर सका। ये सब गुण हों, तो कोई भी मनुष्य प्रयास करके अपना अभीष्ट पा सकता है आगे बढ़ सकता है उन्नति के शिखर पर पहुंच सकता है, इसी महान लेखक की तरह, जिसका नाम था श्री एच.जी. वेल्स। जो कि विश्व की साहित्यिक विभूतियों में एक ऐतिहासिक व्यक्ति है।
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