संसार में प्रत्येक व्यक्ति आरोग्य और दीर्घ जीवन की इच्छा रखता है । चाहे
किसी के पास कितना ही सांसारिक वैभव और सुख-सामग्रियाँ क्यों न हों, पर यदि
वह स्वस्थ नहीं है, तो उसके लिए वे सब साधन-सामग्री व्यर्थ ही हैं । हम
अपने ही युग के रॉकफेलर जैसे व्यक्तियों को जानते हैं, जो संसार के सबसे
बड़े धनी कहलाते हुए भी अस्वस्थता के कारण दो रोटी खाने को भीतरसते थे ।
इसलिए एक विद्वान के इस कथन को सत्य ही मानना चाहिए धन संसार में बहुत बड़ी
चीज नहीं है, स्वास्थ्य का महत्त्व उससे कहीं ज्यादा है । आरोग्यशास्त्र
के आचार्यों ने स्वास्थ्य-साधन की मूल चार बातें बतलाई हैं- आहार, श्रम,
विश्राम और संयम । आहार द्वारा प्राणियों की देह का निर्माण और पोषण होता
है । अत: उसका उपयुक्त होना सबसे पहली बात है । दूसरा स्थान श्रम का है,
क्योंकि उसके बिना न तो आहार प्राप्त होता है और न वह खाने के पश्चात देह
में आत्मसात् हो सकता है । विश्राम भी स्वास्थ्य-रक्षका आवश्यक अंग है,
क्योंकि उसके द्वारा शक्ति संग्रह किए बिना कोई लगातार श्रम करते रहने में
समर्थ नहीं हो सकता चौथा संयम है, जो अन्य प्राणियों में तो प्राकृतिक रूप
से पाया जाताहै, पर अपनी बुद्धि द्वारा प्रकृति पर विजय प्राप्त कर लेने का
अभिमान रखने वाले मनुष्य के लिए जिसके उपदेश की नितांत आवश्यकता है ।