भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व

व्रत और उपवास

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भारतीय संस्कृति में व्रत, त्यौहार, उत्सव, मेंले आदि अपना विशेष महत्त्व रखते हैं ।। हिन्दुओं के ही सबसे अधिक त्यौहार मनाये जाते हैं, कारण हिन्दू ऋषि- मुनियों ने त्यौहारों के रूप में जीवन को सरस और सुन्दर बनाने की योजनाएँ रखी हैं ।। प्रत्येक त्यौहार, व्रत, उत्सव मेले आदि का एक गुप्त महत्व है ।। प्रत्येक के साथ भारतीय संस्कृति जुड़ी हुई है ।। वे विशेष विचार अथवा उद्देश्य को सामने रखकर निश्चित किये गये हैं ।।

प्रथम विचार तो ऋतुओं के परिवर्तन का है ।। भारतीय संस्कृति में प्रकृति का साहचर्य विशेष महत्व रखता है ।। प्रत्येक ऋतु के परिवर्तन अपने साथ विशेष निर्देश लाता है, खेती में कुछ स्थान रखता है ।। कृषि प्रधान होने के कारण प्रत्येक ऋतु- परिवर्तन हँसी- खुशी मनोरंजन के साथ अपना- अपना उपयोग रखता है ।। इन्हीं अवसरों पर त्यौहारों का समावेश किया गया है, जो उचित है । ये त्यौहार दो प्रकार के होते हैं और उद्देश्य की दृष्टि से इन्हीं दो भागों में विभक्त किया जा सकता है ।।

प्रथम श्रेणी में वे व्रत, उत्सव, त्यौहार और मेले है, जो सांस्कृतिक है ।। और जिनका उद्देश्य भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों और विचारों की रक्षा करना है ।। इस वर्ग में हिन्दुओ के सभी बड़े- बड़े त्यौहार आ जाते हैं, जैसे- होलिका उत्सव, दीपावली, बसन्त, श्रावणी, संक्रान्ति आदि ।। संस्कृति की रक्षा इनकी आत्मा है ।।

दूसरी श्रेणी में वे त्यौहार आते हैं, जिन्हें किसी महापुरुष की पुण्य स्मृति में बनाया गया है ।। जिस महापुरुष की स्मृति के ये सूचक हैं, उसके गुणों, लीलाओं, पावन चरित्र, महानताओं को स्मरण रखने के लिए इनका विधान है ।। इस श्रेणी में रामनवमी, कृष्णाष्टमी, भीष्म- पंचमी, हनुमान- जयन्ती, नाग पंचमी आदि त्यौहार रखे जा सकते हैं ।।

दोनों वर्गों में मुख्य बात यह है कि लोग सांसारिकता में न डूब गये या उनका जीवन नीरस, चिन्ताग्रस्त भार स्वरूप न हो जाय उन्हें ईश्वर की दिव्य शक्तियों और अतुल सार्मथ्य के विषय में चिन्तन, मनन, स्वाध्याय के लिए पर्याप्त अवकाश मिले ।। त्यौहारों के कारण सांसारिक आधि- व्याधि से पिसे हुए लोगों में नये प्रकार की उमंग और जागृति उत्पन्न हो जाती है ।। बहुत दिन पूर्व से ही त्यौहार मनाने में उत्साह ओर औत्सुक्य में आनंद लेने लगते हैं ।।

होलिका- उत्सव गेहूँ और चने की नई फसल का स्वागत, गर्मी के आगमन का सूचक, हँसी- खुशी और मनोरंजन का त्यौहार है ।। ऊँच- नीच, अमीर- गरीब, जाति- वर्ण का भेद- भाव भूलकर सब हिन्दू प्रसन्न मन से एक दूसरे के गले मिलते और गुलाल, चन्दन, रोली, रंग, अबीर लगाते हैं ।। पारस्परिक मन- मुटाव और वैमनस्य की पुण्य गंगा बहाई जाती है ।। यह वैदिक कालीन और अति प्राचीन त्यौहार है ।। ऋतुराज वसंत का उत्सव है ।। वसंत, पशु- पक्षी, कीट- पतग, मानव सभी के लिए मादक मोहक ऋतु है ।। इसमें मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा रहता है ।। होलिका दहन प्राचीन यज्ञ- व्यवस्था का ही बिगड़ा हुआ रूप है, जब सब नागरिक भेद- भाव छोड़कर छोटे- छोटे यज्ञों की योजना करते थे, मिल- जुल कर प्रेम पूर्वक बैठते थे, गायन- वादन करते और शिष्ट मनोरंजन से आनंद मनाते थे ।। आजकल इस उत्सव में जो अपवित्रता आ गई है, उसे दूर रहना चाहिए ।। अश्लीलता और अशिष्टता को दूर करना आवश्यक है ।।

दीपावली लक्ष्मी- पूजन का त्यौहार है ।। गणेश चतुर्थी, संकट नाशक त्यौहार है ।। गणेश में राजनीति, वैदिक पौराणिक महत्त्व भरा हुआ है ।। तत्कालीन राजनीति का परिचायक है ।। बसन्त पंचमी प्रकृति की शोभा का उत्सव है ।। ऋतुराज वसंत के आगमन का स्वागत इसमें किया जाता है ।। प्रकृति का जो सौन्दर्य इस ऋतु में देखा जाता है, अन्य ऋतुओं में नहीं मिलता है ।। इस दिन सरस्वती पूजन भी किया जाता है ।। प्रकृति की मादकता के कारण यह उत्सव प्रसन्नता का त्यौहार है ।। इस प्रकार हमारे अन्य त्यौहारों का भी सांस्कृतिक महत्त्व है ।। सामूहिक रूप से सब को मिलाकर आनंद मनाने, एकता के सूत्र में बाँधने का गुप्त रहस्य हमारे त्यौहार और उत्सवों में छिपा हुआ है ।।

(भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व पृ.सं.३.१०६)

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