जिस प्रकार व्यवहार संसार में होने वाली हलचलों को संचालन जीव है, उसी प्रकार इस विश्व ब्रह्मण्ड का, पंच तत्वों को ,निर्माता एवं संचालन परमेश्वर हैं ।। शरीर के भीतर रहने वाली चेतन- सत्ता आत्मा कहलाती है और विश्व शरीर के भीतर रहने वाली चेतना को परमात्मा कहते हैं यदि परमात्मा न हो या निष्क्रिय हो जाय तो विश्व की समस्त शक्तियाँ एवं व्यवस्थायें विश्व श्रृखलित हो जाय और प्रलय होने में क्षणभर की भी देर न लगे ।।
जिस प्रकार किसी मशीन का संचालन बिजली द्वारा, शरीर का जीव द्वारा होता है, उसी प्रकार समस्त विश्व की सक्रियता परमात्मा की उपस्थिति के कारण ही है ।। सूर्य चन्द्रमा का समय निकलना, अस्त होना, दिन और रात का नियमित रीति से बदलना, ऋतुओं का परिवर्तन, भूमि की उर्वरता, पवन की गतिशीलता, जल की आर्द्रता शरीरों एवं पेड़- पौधों का जन्म, वृद्धि एवं मरण का क्रम जीवों एवं बीजों द्वारा अपनी ही जाति के प्रजनन, ईथर आकर्षण आदि विभिन्न सूक्ष्म शक्तियों का अपने- अपने ढंग से नियमित संचरण आदि को गम्भीरता से देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इस विश्व का नियम एवं संचालक कोई चेतन- तत्त्व है ।। यदि वह न हो तो आकाश में घूमने वाले अरबों- खरबों ग्रह- नक्षत्र अपने स्थान से तनिक भी भटक जाने पर एक- दूसरे से जा टकरायें और यह सुन्दर विश्व देखते- देखते नष्ट- भ्रष्ट होकर धूलि होकर बिखर जाय ।।
परमात्मा के अस्तित्व से इनकार करना मूर्खता है ।। कुछ दिन पूर्व विज्ञानवादी यह विद्युत कण- इलेक्ट्रान प्रोटान आदि है, वे अपने- अपने स्वयं चालित काम कर रहे हैं ।। उन्हीं से अपने आप चेतन उत्पन्न होती है, इसलिए ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध नहीं होता ।। यह उपहासास्पद तर्क उन दिनों कुछ जोर पकड़ने लगा था ।। जब वैज्ञानिक अन्वेषणों को प्रथम चरण ही उठा था, अब विश्व विख्यात मूर्धन्य वैज्ञानिक आइन्स्टीन तक यह स्वीकार कर चुके हैं कि अणुओं का नियमित रूप से अपनी गतिविधियाँ जारी रखना ही किसी चेतन तत्व का कार्य अपितु उन अणुओं के भीतर उनकी निज की चेतना भी विद्यमान है ।। यह कण- कण में समाये हुए सर्वव्यापक सर्वेश्वर के अस्तित्व की स्वीकृति ही है ।। जैसे- जैसे विज्ञानरूपी बालक में अधिक प्रौढ़ता एवं समर्थता आती जायेगी वैसे- वैसे अपने पिता को पिता के रूप में पहचानना कठिन न होगा ।।