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चित्रों का भला और बुरा प्रभाव

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आपने कहीं न कहीं महात्मा गांधी के साथ या अलग से उन तीन बन्दरों का चित्र अवश्य देखा होगा जिसमें एक बन्दर दोनों हाथों से अपनी आंख बन्द किए है। जिसका तात्पर्य है ‘‘बुरी बात मत देखो’’,  ‘‘बुराई की तरफ से अपनी आंखें बन्द करलो’’। किसी चित्र या दृश्य को देख कर उससे संबंधित अच्छाई या बुराई का प्रभाव अवश्य पड़ता है। बुरे चित्र देखने पर बुराइयां और अच्छे दृश्य देखने पर अच्छाइयां पनपती हैं।

वस्तुतः जो कुछ भी हम देखते हैं उसका सीधा प्रभाव हमारे मन में और मस्तिष्क पर पड़ता है। किसी चित्र या दृश्य विशेष को बार बार देखने पर उसका सूक्ष्म प्रभाव हमारे अन्तर मन पर अंकित होने लगता है। और जितनी बार उसे देखा जाता है उतना ही वह स्थाई और परिपक्व बनता जाता है। हमारा अव्यक्त मन कैमरे की प्लेट के समान है जिस पर नेत्रों के लेन्स से जो छाया गुजरती है वही उस पर अंकित हो जाती है! हम अच्छा या बुरा जो कुछ भी देखते हैं। उसका सीधा प्रभाव हमारे अन्तरमन पर, सूक्ष्म चेतना पर होता है।

प्रत्येक चित्र का अस्तित्व केवल उसके आकार प्रकार तथा रंग रूप तक ही सीमित नहीं रहता वरन् उसके पीछे कुछ आदर्श होते हैं कुछ विचार, धारणायें और मान्यतायें होती हैं। ये अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी किन्तु होती अवश्य हैं। वस्तुतः चित्र की अपनी एक भाषा होती है जिसके माध्यम से चित्रकार समाज में अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है। प्रत्येक चित्र में उससे हाव, भाव, भंगिमा, पोशाक, अंग प्रत्यंग, मुख, मुद्रा आदि में कुछ संकेत भरे होते हैं। चित्र या दृश्य देखने के साथ-साथ उनसे सम्बन्धित अच्छी बुरी धारणा, संकेत भी मनुष्य के मन पर अंकित हो जाते हैं। हमारा मन इन आदर्शों, संकेतों को चुपचाप ग्रहण करता रहता है। चित्र दर्शन के साथ-साथ उसमें निहित अच्छाई भी मानस पटल पर अंकित हो जाती है।

शान्त गम्भीर मुद्रा में महान् तत्व के चिंतन में लीन किसी महापुरुष का चित्र देखकर उससे मनुष्य को गम्भीरता शान्ति की प्रेरणा मिलती है। किसी वीर योद्धा का चित्र देख कर हृदय में शौर्य और साहस के भाव उत्पन्न होते हैं। किसी जनसेवी, परमार्थ परायण शहीद की प्रतिमा देख कर समाज के लिए मर मिटने की भावना जागृत होती है। किसी देवी-देवता या अवतार की प्रतिमा देखकर, किसी मन्दिर, मस्जिद, गिर्जाघर में जाने पर, परमात्मा और उसके दिव्य गुणों का स्मरण होता है। ठीक इसी तरह भद्दे अश्लील कहे जाने वाले, अर्द्धनग्न, असामाजिक, हाव भाव मुद्रा तथा शारीरिक अंगों के भड़कीले प्रदर्शन वाले चित्र मनुष्य में कई नैतिक बुराइयां पैदा करते हैं। उसकी पाशविक वृत्तियों को जगाकर बुराइयों की ओर प्रेरित करते हैं। कोई भी गन्दा या अश्लील चित्र-दृश्य देखने पर मनुष्य के मन में भी गन्दगी, अश्लीलता भड़क उठती है।

किसी भी चित्र को बार-बार देखने पर उसमें निहित विचार, आदर्शों की छाप मनुष्य में गहरी होती जाती है। ऐसी स्थिति में कोई दृश्य विशेष उसके सामने न हो तब भी उसकी कल्पना मानस पटल पर पूरा चित्र अंकित कर लेती है, पूर्व स्मृति के आधार पर और वैसी ही प्रेरणा मनुष्य को देती है, जब भी मनुष्य का मन विश्राम में होता है तो पूर्व में देखे गए चित्रों, दृश्यों की कल्पना जागृत होकर उस समय उन्हें प्रत्यक्ष देखने जैसी अनुभूति होती है। इसलिए चित्रों को देख लेने से ही बात समाप्त हो जाती हो ऐसा नहीं है। वे धीरे-धीरे मानव प्रकृति के अंग बन जाते हैं और उसे समय-समय पर वैसी ही प्रेरणा देते रहते हैं। अन्तर में छिपी पड़ी इन प्रेरणाओं के अनुसार बहुधा मनुष्य काम भी करने लगता है।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि हम जो कुछ भी देखते हैं उसका हमारी प्रकृति, व्यवहार-आचरण आदि पर भारी प्रभाव पड़ता है। अच्छे चित्र देखने पर जीवन में अच्छाइयां पैदा होती हैं। बुरे चित्र देखने पर बुराइयां। आवश्यकता इस बात की है कि बुरे चित्र, बुरे दृश्य देखने के बजाय उधर से आंख मींच लेना, बुराइयों को न देखना ही श्रेयस्कर होता है। गांधीजी के आंख मीचने वाले बन्दर से हमें यही प्रेरणा मिलती है।

अच्छे या बुरे चित्रों का चुनाव करना हमारी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। यदि हमें अपने जीवन में अच्छे आदर्श, उच्च प्रेरणा, दिव्य गुणों को प्रतिष्ठापित करना हो तो इस सम्बन्ध में अच्छे चित्रों का चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। महापुरुषों के, शहीदों के, तपस्वी त्यागी सन्त महात्माओं के चित्र ढूंढ़ने पर सफलता से मिल जाते हैं। इसी तरह की कोई उत्कृष्ट ऐतिहासिक घटनाओं, त्याग बलिदान का दृश्य जिनमें अंकित हों ऐसे चित्र भी मिल जाते हैं। प्रेरणा-प्रद आदर्श वाक्यों का चुनाव भी अच्छे चित्रों का काम दे सकता है। इस तरह हम उत्कृष्ट चित्रों का संग्रह करके अपनी जीवन शिक्षा की महत्वपूर्ण सामग्री जुटा सकते हैं इनसे हमें उठते-बैठते सोते जागते उत्कृष्ट प्रेरणा, महान शिक्षा मिल सकती है।

चित्र दर्शन की इस वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझकर ही हमारे पूर्वजों ने नित्य मन्दिरों में भगवान की मूर्ति के दर्शन, साधु महात्माओं के दर्शनों का विधान बनाया होगा। एक भारतीय नागरिक का धर्म कर्तव्य है कि वह प्रातः सायं भगवान् तथा गुरुजनों के दर्शन करें उन्हें प्रणाम करें। सोने पूर्व, उठने पर शुभ दर्शन एक आवश्यक धर्म कर्तव्य माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे धार्मिक चित्र बहुत समय से हमें उच्च आदर्शों, सामाजिक मर्यादाओं त्याग, वैराग्य, संयम, बल, पौरुष, कर्तव्य आदि की उत्कृष्ट प्रेरणा देकर आत्म-विकास की ओर अग्रसर करते रहे हैं।

खेद है आज कला के नाम पर, चलचित्रों के माध्यम से, धन के लोभ के लिये समाज में बहुत ही भद्दे अश्लील चित्रों की बाढ़ सी आ गई है। यत्र-तत्र बाजार में इस तरह के चित्र अधिक मिलते हैं जिनमें दूषित हाव-भाव, भड़कीले पोशाक शारीरिक अंगों का फूहड़ प्रदर्शन मुख्य होते हैं। सिनेमा में तो अभिनेता और अभिनेत्रियों के अर्धनग्न शरीर उनकी अश्लील मुद्रायें भड़काने वाले तथा कथित ‘ऐक्टिंग‘ दर्शक पर कैसा प्रभाव डालता होगा इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। समाज में बढ़ती हुई अश्लीलता, फूहड़पन, फैशनपरस्ती का एक कारण सिनेमा में दिखाये जाने वाले भद्दे चित्र भी हैं।

बाजार में खुले आम इस तरह की पत्र-पत्रिकायें बिकती देखी जा सकती हैं जिनमें बहुत ही गन्दे उत्तेजित चित्र होते हैं। भोले-भाले, अनुभवहीन यौवन में पैर रखने वाले युवक इनसे बहुत जल्दी ही प्रभावित हो जाते हैं। पैसा खर्च करके खरीदते हैं लेकिन ये गन्दे चित्र उनमें कामोत्तेजना भड़काने, कई दुर्गुण पैदा करने का बहुत बड़ा काम करते हैं। एक बुराई से अनेकों बुराइयां पैदा होती हैं और पतन का पथ प्रशस्त बन जाता है।

बहुत से धार्मिक कहे जाने वाले चित्र भी इसी श्रेणी में आते हैं। सीता-राम, कृष्ण-राधा, शिव-पार्वती, लक्ष्मी-विष्णु आदि युगल देवों के चित्र बहुधा बड़े ही अश्लील रूप में, अर्धनग्न या गन्दे हाव भावों के साथ मिलते हैं। चित्रकार एवं प्रकाशक का इनके पीछे क्या उद्देश्य रहता है इसकी हम चर्चा नहीं करना चाहते लेकिन साफ रूप से इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अन्य भद्दे चित्रों की तरह ये चित्र भी मनुष्य को भद्दी प्रेरणा देते हैं। बहुत से मन्दिर में देव मूर्तियां भी अश्लील स्थिति में बनी रहती हैं, वे भी इसी श्रेणी में आती हैं।

कोई भी चित्र, दृश्य चाहे वह धार्मिक हो या सामाजिक कलाकृति हो या किसी चलचित्र का अंश यदि वह अश्लील, भद्दा और फूहड़ है तो उससे बचने का पूरा-पूरा प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि इनसे मनुष्य में पाशविक प्रवृत्तियों को ही प्रोत्साहन मिलता, जागृत होती हैं। दूषित कामनायें भड़क उठती हैं, गन्दी प्रेरणायें मिलती हैं जो मनुष्य के चरित्र-आचरण, स्वभाव, प्रकृति को दूषित बना देते हैं।

अपने निवास स्थान, अध्ययन कक्ष, दुकान कहीं के भी लिए आदर्श चित्रों का चुनाव करें। जिन पर उठते बैठते, चलते फिरते हर समय आपकी नजर पड़ती रहे। इनसे आप को उत्कृष्ट प्रेरणा मिलेगी। अच्छे चित्र, अच्छी पुस्तक का प्रभाव तो उसे पढ़ने उस पर मनन चिन्तन करने पर ही पड़ता है लेकिन चित्र तो देखने पर ही मनुष्य को प्रभावित करता है। गन्दे-अश्लील चित्र देखने से बचें। गांधीजी के बन्दर की तरह बुराई की ओर से आंख मीच लें और अच्छाई को देखें।

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