परम पूज्य गुरुदेव एवं महर्षि पतंजलि में अद्भुत साम्य है। अध्यात्म जगत् में इन दोनों की उपस्थिति अत्यन्त विरल है। ये दोनों ही अध्यात्म के शिखर पुरुष हैं, परन्तु वैज्ञानिक हैं। वे प्रबुद्ध हैं—बुद्ध, कृष्ण, महावीर एवं नानक की भाँति, लेकिन इन सबसे पूरी तरह से अलग एवं मौलिक हैं। बुद्ध, कृष्ण, महावीर एवं नानक- ये सभी महान् धर्म प्रवर्तक हैं, इन्होंने मानव मन और इसकी संरचना को बिल्कुल बदल दिया है, लेकिन उनकी पहुँच, उनका तरीका वैसा सूक्ष्मतम स्तर पर प्रमाणितनहीं है। जैसा कि पतंजलि का है। जबकि महर्षि पतंजलि एवं वेदमूर्ति गुरुदेव अध्यात्मवेत्ताओं की दुनिया के आइंस्टीन हैं। वे अद्भुत घटना हैं। वे बड़ी सरलता से आइंस्टीन, बोर, मैक्स प्लैंक या हाइज़ेनबर्ग की श्रेणी में खड़े हो सकते हैं। उनकी अभिवृत्ति और दृष्टि ठीक वही है, जो एकदम विशुद्ध वैज्ञानिक मन की होती है। कृष्ण कवि हैं, कवित्व पतंजलि एवं गुरुदेव में भी है। किन्तु इनका कवित्व कृष्ण की भाँति बरबस उमड़ता व बिखरता नहीं, बल्कि वैज्ञानिक प्रयोगों में लीन हो जाता है। पतंजलि एवं गुरुदेव वैसे रहस्यवादी भी नहीं हैं, जैसे कि कबीर हैं। ये दोनों ही बुनियादी तौर पर वैज्ञानिक हैं, जो नियमों की भाषा में सोचते- विचारते हैं।