अमृत वचन जीवन के सिद्ध सूत्र

संकल्प जगायें- ऊँचे उठें

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         सृष्टि का कुछ ऐसा विलक्षण नियम है, कि पतन स्वाभाविक है और उत्थान कष्टसाध्य बनाया गया है। पानी को आप छोड़ दीजिए, नीचे बहता हुआ चला जायेगा। इसके लिये और आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। नीचे गिरने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है और कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है। ऐसा ही संसार का कुछ विलक्षण नियम है। पतन के लिये, बुरे कर्मों के लिये आपको ढेरों के ढेरों साधन मिल जायेंगे, सहकारी मिल जायेंगे, किताबें मिल जायेंगी और कोई नहीं मिलेगा तो आपके पिछले जन्म- जन्मांतरों के संग्रह किये हुए कुसंस्कार ही इस मामले में आपकी बहुत मदद करेंगे। वो आपको गिराने के लिये बराबर प्रोत्साहित करते रहेंगे। पाप- पंक में घसीटने के लिये बराबर आपका मन चलता रहेगा। इसके लिये न किसी अध्यापक की जरूरत है, न किसी और की कोई सहायता की जरूरत है। ये तो अपनी नेचर जैसी हो गई है, पीछे की तरफ गिराने वाली कोशिश इस संसार में इतनी भरी हुई पड़ी है, जिससे बचाव अगर आप न करें, उसका विरोध आप न करें, उसका मुकाबला आप न करें तो आप विश्वास रखिए, आप निरन्तर गिरेंगे, पतन की ओर गिरेंगे। सारा समाज इसी तरफ चल रहा है। 

         आप निगाह उठा के देखिए। आपको कहाँ ऐसे आदमी मिलेंगे जो सिद्धान्तों को ग्रहण करते हों और आदर्शों को अपनाते हों। आप जिन्हें भी देखिए। अधिकांश लोगों में से कई बुराई की ओर चलते हुए दिखाई पड़ेंगे आपको। पाप और पतन के रास्ते पर उनका चिंतन और मनन काम कर रहा हुआ होगा। उनका चरित्र भी गिरावट की ओर और उनका चिंतन भी गिरावट की ओर। फिर आपको क्या करना चाहिए? अगर आपको ऊँचा उठना है तो आपको भीतर से हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। क्या हिम्मत करें? ये हिम्मत करें कि ऊँचे उठने वाले जिस तरीके से संकल्प बल का सहारा लेते रहे और हिम्मत से काम लेते रहे, व्रतशील बनते रहे, आपको उस तरीके से व्रतशील बनना चाहिए। देखा है न आपने। जब जमीन पे से ऊपर की तरफ चढ़ना होता है तो जीने का इन्तजाम करते हैं, सीढ़ी का इन्तजाम करते हैं। तब मुश्किल से धीरे- धीरे चढ़ते हैं। गिरने में क्या देर लगेगी? अंतरिक्ष में उल्काएँ अपने आप गिरती रहती हैं। जब जमीन से रॉकेट अन्तरिक्ष की ओर फेंकने पड़ते हैं, तब करोड़ों- अरबों रुपया खर्च करते हैं, तब एक रॉकेट का ऊपर अंतरिक्ष में उछालना सम्भव होता है। तो क्या करना चाहिए? आपको यही करना पड़ेगा कि चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए जो कुसंस्कार ढेरों के ढेरों इकट्ठे कर लिये हैं, अब इन कुसंस्कारों के खिलाफ बगावत शुरू कर दीजिए। कैसे करें? अपने को मजबूत बनाइये। मजबूत नहीं बनायेंगे तब। तब फिर आपके पुराने कुसंस्कार फिर आ जायेंगे। मन को समझायें। जरा सी देर में समझ जायेगा, फिर उसी रास्ते पर आ जायेगा। क्या करना चाहिए? 

         ‘संकल्प शक्ति’ का विकास करना चाहिए। ‘संकल्प शक्ति’ किसे कहते हैं? ‘संकल्प शक्ति’ उसे कहते हैं, जिसमें कि ये फैसला कर लिया जाता है कि हमको ये तो करना ही है। ये हर हाल में करना है। करेंगे या मरेंगे। इस तरीके से संकल्प अगर आप किसी बात का कर लें तो आप विश्वास रखिए, फिर आपका जो मानसिक निश्चय है, वो आपको आगे बढ़ा देगा। अगर आपका मनोबल नहीं है और निश्चय बल नहीं है, ऐसे ही ख्वाब देखते रहते हैं कि ‘ये करेंगे’, विद्या पढ़ेंगे, व्यायाम करना शुरू करेंगे, फलाना काम करेंगे। आप कल्पना करते रहिए। कभी कुछ नहीं कर सकते। कल्पनाएँ आज तक किसी की सफल नहीं हुईं और संकल्प किसी के असफल नहीं हुए। 

         इसीलिये आपको संकल्प शक्ति का सहारा लेने के लिये व्रतशील बनना चाहिए। आप व्रतशील बनिए। श्रेष्ठ काम करने के लिये, उन्नति की दिशा में आगे बढ़ने के लिये आपको कोई न कोई संकल्प मन में लेना चाहिए कि ये काम करेंगे। 

         काम करने तक के लिये कई आदमी ऐसा कर लेते हैं कि जब तक ये अच्छा काम न कर लेंगे, ये काम नहीं करेंगे। जैसे नमक नहीं खायेंगे, घी नहीं खायेंगे वगैरह- वगैरह। ये क्या है? इसको देखने में तो कोई खास बात नहीं है। आपको अमुक काम करने से नमक का क्या ताल्लुक और आपने घी खाना बन्द कर दिया तो कौन- सी ऐसी बड़ी बात हो गई जिससे कि आपको काम में सफलता मिल जायेगी। इन चीजों में तो नहीं है दम। लेकिन दम इस बात में है कि आपने इतना कठोर निश्चय कर लिया है और आपने सुनिश्चित योजना बना ली है कि हमको ये करना ही करना है। तब फिर आप विश्वास रखिये, आपका काम पूरा हो करके रहेगा। चाणक्य ने निश्चय कर लिया था कि जब तक मैं नन्द वंश का नाश न कर लूँगा, तब तक बाल नहीं बाधूँगा। ये अपना व्रत और प्रतिज्ञा को याद रखने का एक प्रतीक है, सिम्बल है। प्रतिज्ञाएँ तो भूल जाते हैं, लेकिन अगर कोई ऐसा बहिरंग अनुशासन भीतर लगा लें तो आदमी भूलता नहीं है। 

         आदमी का संकल्प मजबूत होना चाहिए। अध्यात्म का प्राण ही वह संकल्प है। संकल्प बल न हो तब। हिम्मत न हो तब। तब फिर आदमी बेपेंदी के लोटे के तरीके से इधर- उधर भटकता रहता है। संकल्प कर लेने के बाद तो आदमी की आधी मंजिल पूरी हो जाती है। 

         संकल्प बल एक लाठी के तरीके से है। जो आपको गिरने से बचा लेता है और आपको ऊँचा चलने के लिये, आगे बढ़ने के लिये हिम्मत प्रदान करता है। आपको भी अपने मनोबल की वृद्धि के लिये आत्मानुशासन स्थापित करना चाहिए। ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में, खान- पान के सम्बन्ध में, समयदान और अंशदान के सम्बन्ध में आपको कोई न कोई, कोई न कोई काम ऐसे जरूर करने चाहिए, जिसमें कि ये प्रतीत होता हो कि आपने छोटा- सा संकल्प लिया है, उसे पूरा करने में सफल रहे हैं। ये मनोबल बढ़ाने का तरीका है। संकल्प शक्ति, मनोबल से ज्यादा बढ़ कर के आदमी के व्यक्तित्व को उभारने वाली, प्रतिभा को उभारने वाली, उसके चरित्र को उभारने वाली और कोई वस्तु है ही नहीं और ये संकल्प बल की वृद्धि के लिये ये आवश्यक है कि आप छोटे- छोटे, छोटे- छोटे ऐसे कुछ नियम लिया कीजिए थोड़े समय के लिये। ये काम न कर लेंगे, तब तक हम ये नहीं करेंगे। मसलन शाम को इतने किताब के पन्ने न पढ़ लेंगे, सोयेंगे नहीं। मसलन हम सबेरे का भजन जब तक पूरा न कर लेंगे, खायेंगे नहीं। ये क्या है? ये व्रतशीलता के साथ में जुड़ा हुआ अनुशासन है। 

         व्रत और संकल्प आदमी की जिन्दगी के लिये बहुत बड़ी कीमती वस्तु है। आप ऐसे ही किया कीजिए। 

आज की बात समाप्त। 
॥ॐ शान्तिः॥ 
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