अमृत वचन जीवन के सिद्ध सूत्र

संकल्पवान्-व्रतशील बनें

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संकल्पवान्-व्रतशील बनें

आपको यहाँ से जाने के बाद में कई काम करने हैं, बड़े मजेदार काम करने हैं, बहुत अच्छे काम करने हैं। लेकिन ये चलेंगे नहीं, बस आपका मन बराबर ढीला होता चला जायेगा। मन की काट करने के लिये आप एक विचारों की सेना और विचारों की शृंखला बनाकर के तैयार रख लीजिए। विचारों से विचारों को काटते हैं, जहर को जहर से मारते हैं, काँटे को काँटे से निकालते हैं। कुविचार जो आपके मन में हर बार तंग करते रहते हैं, उसके सामने ऐसी सेना खड़ी कर लीजिए, जो आपके बुरे विचारों के सामने लड़ सकने में समर्थ हो। अच्छे विचारों की भी एक सेना होती है।

    बुरे विचार आते हैं, लोभ के विचार आते हैं, लालच और बेईमानी के विचार आते हैं, आप ईमानदारों के समर्थन के लिये उनके इतिहास और वर्ण और स्वास्थ्य और आप्त-पुरुषों के  वचन उन सबको मिलाकर के रखिए। हम ईमानदारी की कमाई खायेंगे, बेईमानी की कमाई हम नहीं खायेंगे। काम-वासना के विचार आते हैं, व्यभिचार के विचार आते हैं। आप ऐसा किया कीजिए, कि उसके मुकाबले की एक और सेना खड़ी कर लिया कीजिए। अच्छे विचारों वाली सेना। जिसमें आपको यह विचार करना पड़े, हनुमान् कितने सामर्थ्यवान हो गये ब्रह्मचर्य की वजह से। भीष्म पितामह कितने समर्थ हो गये, ब्रह्मचर्य के कारण। आप शंकराचार्य से लेकर के और अनेक व्यक्तियों, संतों की बात याद कर सकते हैं। महापुरुषों की जिन्होंने अपने कुविचारों से लोहा लिया है।

    कुविचारों से लोहा नहीं लिया होता तो विचारे संकल्पों की क्या बिसात थी, चलते ही नहीं, टूट जाते। कुविचार हावी हो जाते और जो विचार किया गया था, वो कोने पे रखा रह जाता। ऐसे समय में विचारों की एक सेना तैयार खड़ी कर लीजिये तो आपके लिये स्वर्ग होगा। जब बेईमानी के विचार आयें, काम-वासना के विचार आयें, ईर्ष्या के विचार आयें, अधःपतन के विचार आयें तो आप उनकी रोकथाम के लिये अपनी सेना को तैयार कर दें और उनके सामने फिर लड़ा दें। लड़े बिना काम कैसे चलेगा, बताइये न? रावण से लड़े बिना कहीं काम चला? दुर्योधन से लड़े बिना काम चला? कंस से लड़े बिना काम चला? लड़ाई मोहब्बत की है अथवा कैसी है, हिंसा की है, अहिंसा की है, ये मैं इस वक्त बात नहीं कह रहा हूँ। मैं तो यह कह रहा हूँ कि आपको अपनी बुराइयों, कमजोरियों से मुकाबला करने के लिये और समाज में फैले अनाचार से लोहा लेने के लिए भी, हर हालत में आपको ऐसे ऊँचे विचारों की सेना बनानी चाहिए जो आपको भी हिम्मत देने में समर्थ हो सके और आपके समीपवर्ती इस वातावरण में भी नया माहौल पैदा करने में समर्थ हो सके। ये संकल्प भरे विचार होते हैं।

    हजारी किसान ने ये फैसला किया था कि ‘‘मुझे हजार आम के बगीचे लगाने हैं।’’ बस घर से निकल पड़ा तो उसकी बात लोगों ने मान ली। क्यों मान ली? वो संकल्पवान् था। संकल्पवान् नहीं होता, तब ऐसे ही व्याख्यान करता फिरता, ‘‘साहब! पेड़ लगाइये, हरियाली बढ़ाइये।’’ तब कोई लगाता क्या? संसार इतना प्रचार किया करती है, कोई सुनता है क्या? सुनने के लिये ये बहुत जरूरी है कि जो आदमी उस बात को कहने के लिये आया है, वो संकल्पवान् हो। संकल्पवान् होने का अर्थ है, ऊँचे सिद्धान्तों को अपनाने का निश्चय। अवश्य निश्चय में कोई, रास्ते में कोई व्यवधान न आये, इसीलिये थोड़े-थोड़े समय के लिये ऐसे अनुशासन जिससे कि स्मरण बना रहे, मनोबल बढ़ता रहे, मनोबल गिरने न पाये। संकल्प की याद करके आदमी अपनी गौरव-गरिमा को बनाये रह पाये। इसलिये आपको व्रतशील होना जरूरी है।

    पीले कपड़े पहनने के लिये आपको कहा गया है, ये व्रतशील होने की निशानी है। दूसरे लोग पीले कपड़े नहीं पहनते, आपको पहनना चाहिए। इसका मतलब ये है, दुनिया का कोई दबाव आपके ऊपर नहीं है और दुनिया की नकल करने में और अनुकरण करने में आपकी कोई मर्जी नहीं है। ये क्या है, ये व्रतशील की निशानी है। भोजन जैसा भी हो, खराब है तो खराब से क्या करें? खराब से ही काम चलायें, लेकिन नहीं साहब! जायका अच्छा नहीं लगता, वहाँ कचौड़ी खायेंगे। मत कीजिए ऐसा। तरह-तरह के व्यंजन और तरह-तरह के स्वादिष्ट भोजन की बात मत चलाया कीजिए। फिर क्या होगा? खान-पान का जो लाभ होगा तो होगा ही, खान-पान के लाभों को मैं इतना महत्त्व देता नहीं, जितना कि इस बात को महत्त्व देता हूँ कि आपने अपने मन को कुचल डालने का, मन से लोहा लेने का, मन को बदल डालने के लिये आपने वो हथियार उठा लिया, जिससे आपका दुश्मन, आपका दोस्त बन सकता है। आपका दुश्मन नम्बर एक-आपका मन और आपका दोस्त नम्बर एक-आपका मन। दुश्मन को दोस्त के रूप में बदलने के लिये जिस दबाव की जरूरत है, जिस आग की भट्ठी में नया औजार ढालने की जरूरत है, उस भट्ठी का नाम है-संकल्प, आत्मानुशासन। अपने आपका आत्मानुशासन स्थापित करने के लिये आपको व्रतशील होना चाहिए, संकल्पवान् होना चाहिए और संकल्पों में व्यवधान उत्पन्न न हो, इसलिये आपको कोई न कोई ऐसे नियम और व्रत समय-समय पर लेते रहना चाहिए। इसका अर्थ ये होता है कि जब तक अमुक काम न हो जायेगा, तब तक हम अमुक काम नहीं करेंगे।

     संकल्पवान् बनिए। संकल्पवान् ही महापुरुष बने हैं, संकल्पवान् ही उन्नतिशील बने हैं, संकल्पवान् ही सफल हुए हैं और संकल्पवानों ने ही संसार की नाव को पार लगाया है। आपको संकल्पवान् और व्रतशील होना चाहिए। नेकी आपकी नीति होनी चाहिए। उदारता आपका फर्ज होना चाहिए। आपने अगर ऐसा कर लिया हो तब फिर आप दूसरा कदम ये उठाना कि हम ये काम नहीं किया करेंगे। समय-समय पर सोच लिया कीजिए कि गुरुवार के दिन, नमक न खाने की बात, ब्रह्मचर्य से रहने की बात, दो घण्टे मौन रहने की बात, आप भी ऐसे व्रतशील होकर के कुछ नियम पालन करते रहेंगे और उसके साथ में किसी श्रेष्ठ कर्तव्य और उत्तरदायित्व का ताना-बाना जोड़ के रखा करेंगे तो आपके विचार सफल होंगे, आपका व्यक्तित्व पैना होगा और आपकी प्रतिभा तीव्र होगी और आप एक अच्छे व्यक्ति के रूप में शुमार होंगे। अगर आप आत्मानुशासन और अपनी व्रतशीलता का महत्त्व समझें और उसे अपनाने की हिम्मत बढ़ायें। आज की बात समाप्त।

।।ॐ शान्तिः।।

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