अमृत वचन जीवन के सिद्ध सूत्र

जीवन कैसे जीयें?

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जीवन कैसे जीयें?

संसार में हम हैं। संसार में रह करके हम अपने कर्तव्य पूरे करें। हँसी-खुशी से रहें, अच्छे तरीके से रहें, लेकिन इसमें इस कदर हम व्यस्त न हो जायें, इस कदर फँस न जायें कि हमको अपने जीवन के उद्देश्यों का ध्यान ही न रहे। अगर हम फँसेंगे तो मरेंगे।

    आपने उस बन्दर का किस्सा सुना होगा जो अफ्रीका में पाया जाता है-सिम्बून और जिसके बारे में ये कहा जाता है कि शिकारी लोग उसको चने, मुट्ठी भर चने का लालच देकर के उसकी जान ले लेते हैं। लोहे के घड़े में चने भर दिये जाते हैं और सिम्बून उन चनों को खाने के लिये आता है, मुट्ठी बाँध लेता है, मुट्ठी को निकालना चाहता है तो मुट्ठी निकलती नहीं है। जोर लगाता है तो भी नहीं निकलती, इतनी हिम्मत नहीं होती कि मुट्ठी को खाली कर दे, छोड़ दे और हाथ को खींचे। लेकिन वो मुट्ठी को छोड़ना नहीं चाहता है। छोड़ने के न चाहने का परिणाम ये होता है कि हाथ बाहर निकलता नहीं और शिकारी आता है, उसको मार-काट के खतम कर देता है, फिर उसकी चमड़ी को उखाड़ लेता है। हम और आपकी स्थिति ऐसी है, जैसे अफ्रीका के सिम्बून बन्दरों जैसी।

    हम लिप्साओं के लिये, लालसाओं के लिये, वासनाओं के लिये, तृष्णा के लिये, अहंकार की पूर्ति के तरीके से मुट्ठी पकड़ करके बन्दरों के तरीके से फँसे रहते हैं और अपनी जीवन सम्पदा का विनाश कर देते हैं, जिससे हमको बाज आना चाहिए और हमें अपने आपको इससे बचाने के लिये कोशिश करनी चाहिए। हमको अपनी क्षुद्रता का त्याग करना है। क्षुद्रता का अगर हम त्याग कर देते हैं, तो हम कुछ खोते नहीं हैं, हम कमाते ही कमाते हैं।

    कार्लमार्क्स मजदूरों से ये कहते थे कि ‘‘मजदूरो! एक हो जाओ, तुम्हें गरीबी के अलावा कुछ खोना नहीं है’’ और मैं ये कहता हूँ कि ‘‘अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले विद्यार्थियो! तुम्हें अपनी क्षुद्रता के अलावा और कुछ नहीं खोना है। पाना ही पाना है। आध्यात्मिकता के मार्ग पर पाने के अलावा कुछ नहीं है। इसमें एक ही चीज हाथ से गुम जाती है, उसका नाम है, आदमी की क्षुद्रता और संकीर्णता।’’ क्षुद्रता और संकीर्णता को त्यागने में अगर आपको कोई बहुत कष्ट न होता हो तो मेरी प्रार्थना है कि आप इसको छोड़ दें और आप महानता के रास्ते पर चलें। जीवन में भगवान् को अपना हिस्सेदार बना लें। भगवान् के साथ आप नाता जोड़ लें। जोड़ लेंगे तो ये मुलाकात की हिस्सेदारी आपके बहुत काम आयेगी।

    गंगा ने अपने आपको हिमालय के साथ में जोड़े रखा। गंगा का और हिमालय का तालमेल और उसका रिश्ता-नाता ठीक बना रहा और हमेशा गंगा अपना पानी खर्च करती रही, लेकिन पानी की कमी कभी नहीं पड़ने पाई। हिमालय के साथ रिश्ता हम जोड़ें, भगवान् के साथ रिश्ता हम जोड़ें तो हमारे लिये जीवन में कभी अभावों का, कभी उस तरह के संकटों का अनुभव न करना पड़ेगा, जैसे कि सामान्य लोग पग-पग पर जीया करते हैं। गंगा का पानी सूखा नहीं, लेकिन नाली का सूख गया। उसने किसी महान् सत्ता के साथ सम्बन्ध मिलाया नहीं। बाढ़ का पानी आया और उछलने लगा। बाढ़ का पानी सूखा और नाला सूख गया। नौ महीने सूखा पड़ा रहा। बरसाती नाला तीन महीने सूखा पड़ा। लेकिन गंगा युगों से बहती चली आ रही है, कभी भी सूखने का नाम नहीं लिया।

     हम हिमालय के साथ जुड़ें, हम भगवान् के साथ जुड़ें तो हमारा भी सूखने का कभी मौका न आयेगा। फिर हम इतनी हिम्मत कर पायें तब। आप-हम भगवान् को समर्पित कर सकें अपने आपको तो भगवान् को हम पायें। हम भगवान् की कला का सारा लाभ उठा सकते हैं। शर्त ये है कि हम अपने आपको, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को, अपनी कामनाओं को और अपनी विष-वृत्तियों को भगवान् के सुपुर्द कर दें। हम भगवान् के साथ में अपने आपको उसी तरीके से जोड़ें जैसे कठपुतली, जैसे पतंग और जैसे बाँसुरी। न कि हम इस तरीके से करें कि पग-पग पर हुकूमत चलायें। भगवान् के पास हम अपनी मनोकामना पेश करें। ये भक्ति की निशानी नहीं है।

    भगवान् की आज्ञा पर चलना हमारा काम है। भगवान् पर हुकूमत करना और भगवान् के सामने तरह-तरह के फरमाइश पेश करना, ये सब वेश्यावृत्ति का काम है। हम में से किसी की उपासना लौकिक कामनाओं के लिये नहीं; बल्कि भगवान् की साझेदारी के लिये, भगवान् को स्मरण रखने के लिये, भगवान् का आज्ञानुवर्ती होने के लिये और भगवान् को अपना समर्पण करने के उद्देश्य से उपासना होनी चाहिए। अगर आप ऐसी उपासना करेंगे तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि उपासना सफल होगी। आपको आंतरिक संतोष मिलेगा। न केवल आंतरिक संतोष मिलेगा;  पर आपके व्यक्तित्व का विकास होगा और व्यक्तित्व के विकास करने का निश्चित परिणाम ये है कि आदमी भौतिक और आत्मिक, दोनों तरीके की सफलताएँ भरपूर मात्रा में प्राप्त करता है।

    मेरा आपसे अनुरोध ये है कि आप हँसती-हँसाती जिन्दगी जीयें, खिलती-खिलाती जिन्दगी जीयें, हलकी-फुलकी जिन्दगी जीयें। हलकी-फुलकी जिन्दगी जीयेंगे तो आप जीवन का सारे का सारा आनन्द पायेंगे। अगर आप घुसेंगे (सेंध मारेंगे) तो आप नुकसान पायेंगे। आप अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिये जिन्दगी को जीयें। हँसी-खुशी से जीयें। हमें माली की जिन्दगी जीनी चाहिये, मालिक की नहीं। मालिक की जिन्दगी में बहुत भारीपन है और बहुत कष्ट है। माली की जिन्दगी केवल रखवाली के तरीके से, चौकीदार के तरीके से अगर आप जीयें तो हम पायेंगे जो कुछ भी कर लिया, हमारा कर्तव्य काफी था। मालिक को चिंता रहती है। सफलता मिली, नहीं मिली। माली को इतनी चिंता रहती है कि अपने कर्तव्यों और अपने फर्ज पूरे किये कि नहीं किये?

    दुनिया में रहें, काम दुनिया में करें, पर अपना मन भगवान् में रखें अर्थात् उच्च उद्देश्यों और उच्च आदर्शों के साथ जोड़कर रखें। हम दुनिया में डूबें नहीं। हम खिलाड़ी के तरीके से जीयें। हार-जीत के बारे में बहुत ज्यादा चिंता न करें। हम अभिनेता के तरीके से जीयें। हमने अपना पाठ-प्ले ठीक तरीके से किया कि नहीं किया; हमारे लिये इतना ही संतोष बहुत है। ठीक है, परिणाम नहीं मिला तो हम क्या कर सकते हैं? बहुत सी बातें परिस्थितियों पर निर्भर रहती है। परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल नहीं रहीं तो हम क्या कर सकते थे? कर्तव्य हमने हमारा पूरा किया, बहुत है, हमारे लिये बहुत है; इस दृष्टि से आप जीयेंगे तो आपकी खुशी को कोई छीन नहीं सकता और आपको इस बात की परवाह नहीं होगी कि जब कभी सफलता मिले, तब आपको प्रसन्नता हो। 24 घण्टे आप खुशी से जीवन जी सकते हैं। जीवन की सार्थकता और सफलता का यही तरीका है।  

आज की बात समाप्त।
।।ॐ शान्तिः।।
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