मित्रो! कर्म के आधार पर प्रत्येक अध्यात्मवादी को क्षत्रिय होना चाहिए क्योंकि "सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्" अर्थात इस प्रकार के युद्ध को भाग्यवान क्षत्रिय ही लड़ते हैं । बेटे, अध्यात्म एक प्रकार की लड़ाई है । स्वामी नित्यानंद जी की बंगला की किताब है “साधना समर” । “साधना समर” को हमने पड़ा, बड़े गजब की किताब है । मेरे ख्याल से हिंदी में इसका अनुवाद शायद नहीं हुआ है । उन्होंने इसमें दुर्गा का, चंडी का और गीता का किया है दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोक मुकाबला किया हैं और गीता में भी सात सौ श्लोक हैं । दुर्गा सप्तशती में अठारह अध्याय हैं, गीता के भी अठारह अध्याय हैं । उन्होंने ज्यों का त्यों सारे के सारे दुर्गा पाठ को गीता से मिला दिया है और कहा है कि साधना वास्तव में समर है । समर मतलब लड़ाई, महाभारत । यह महाभारत है, यह लंकाकांड है । इसमें क्या करना पड़ता है? अपने आप से लड़ाई करनी पड़ती है, अपने आप की पिटाई करनी पड़ती है, अपने आप की धुलाई करनी पड़ती है और अपने आप की सफाई करनी पड़ती है । अपने आप से सख्ती से पेश आना पड़ता है।