अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -3

मनुष्य में हुआ देवत्व का उदय

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        भरतपुर, राजस्थान के भैंसापिचूना गाँव के निवासी हैं श्री रामजी लाल वर्मा। बहुत ही साधारण परिवार में पैदा हुए। श्री वर्मा जीवन के संघर्षों का सामना करते हुए पढ़- लिखकर राज्य सरकार के चिकित्सा विभाग में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर पहुँचे। धीरे- धीरे परिवार की सुसम्पन्नता बढ़ने लगी।

        वर्मा जी के एक छोटे भाई हैं, जो गाँव में किसानी करते हैं। छोटी सी खेती पर निर्भर रहने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय थी। इसीलिए बड़े भाई ने छोटे भाई के लड़के के नाम पर जयपुर के पास नेशनल हाईवे पर १८,००० sq.fit  जमीन ४ लाख रुपये में सन् २००० ई. में खरीदी।

        करते धरते नौ साल बीत गए। छोटे भाई की अभावग्रस्तता दिनोंदिन बढ़ती गई। शान- शौकत से जीने के आदी छोटे भाई ने ब्याज पर कर्ज लेना शुरू किया।

कर्ज का बोझ बहुत अधिक बढ़ जाने पर उन्होंने बड़े भाई द्वारा अपने बेटे के नाम पर खरीदी गई जमीन औने- पौने दाम में बेच दी। सन् २००९ ई. में उस जमीन की कीमत १० लाख हो चुकी थी, जबकि बेची गई सिर्फ ५० हजार रुपये में। इससे कर्ज नहीं चुका, तो ट्रैक्टर भी बेच दिया गया।

        वर्मा जी ४- ६ महीने पर गाँव जाते थे। नवम्बर २००९ की उस करतूत का पता उन्हें तब चला, जब फरवरी २०१० में घर लौटे। सब कुछ जानकर अवाक् रह गए।

इस घटना से वर्मा जी पूरी तरह से टूट चुके थे। जीवन से निराश होकर उन्होंने आत्महत्या करने की सोची। दोपहर में बाजार जाकर बड़ी मात्रा में सल्फास की गोलियाँ खरीदी और घर आकर किताबों की आलमारी में छुपा कर रख दीं। फैसला कर चुके थे कि रात में सबके सो जाने के बाद सल्फास की गोलियाँ खाकर हमेशा के लिए चैन की नींद सो जाएँगे।

रात का दूसरा प्रहर शुरू हुआ। सभी सो चुके थे। वर्मा जी सल्फास की गोलियों की तरफ बढ़े। लेकिन आश्चर्य! गोलियाँ आलमारी से गायब थीं। उन्होंने किताबों को हटा- हटाकर खोजा। गोलियाँ नहीं मिलीं।

        इस खोज- बीन में पू. गुरुदेव की एक किताब उनके हाथों में आ गई। किताब पर नजर पड़ते ही चेतना जागी। उसे पलटते ही जो पृष्ठ खुला, उस पर लिखा था कि जो व्यक्ति युग निर्माण मिशन से जुड़ा है, उसके घर में कभी आग नहीं लग सकती, उसे कभी साँप नहीं काट सकता और वह कभी जहर खाकर मर नहीं सकता।

पूज्य गुरुदेव की ये पंक्तियाँ पढ़ते- पढ़ते वर्मा जी का चेहरा आँसुओं से तर हो गया था। वे देर रात तक हिचक- हिचक कर रोते रहे। आत्महत्या करने का उनका निर्णय अब बदल चुका था।

        अगले कई दिन तनाव में ही बीते। कीमती जमीन का हाथ से जाना, सगे भाई द्वारा किया गया विश्वासघात ये सभी बातें उन्हें दिन- रात बेचैन किए रहती थीं। आखिरकार, एक दिन वे शांतिकुंज के लिए निकल पड़े।

        शांतिकुंज पहुँचकर उन्होंने निर्धारित कक्ष में अपने सामान रखे और नहा- धोकर अखण्ड दीप के दर्शन किये, उसके बाद समाधि स्थल पर आये। अभी उन्होंने समाधि की परिक्रमा शुरू ही की थी कि पीछे से आवाज आयी- तू तो बड़ा है बेटा! उसे माफ कर दे। मैंने तुझे यहाँ इसीलिए बुलाया है कि तू पीछे का सब कुछ भूलकर मेरा काम कर। करेगा न, बेटे! वर्मा जी ने पलट कर देखा- सामने पूज्य गुरुदेव सफेद धोती- कुर्ता पहने मुस्कुरा रहे थे। वे लपक कर गुरुदेव की तरफ बढ़े। अभी दो कदम ही आगे बढ़े थे कि पूज्य गुरुदेव अन्तर्ध्यान हो गए।

        वर्मा जी आनन्दातिरेक में डूबे समाधि के आगे बैठ गए। आँखों से अश्रुधारा बही जा रही थी। मन का सारा मैल धुलता चला गया।
जिस छोटे भाई को वे दिन- रात कोसते रहते थे, उसी के कल्याण की प्रार्थना उन्होंने समाधि स्थल पर की।

        यही तो है विचार परिवर्तन, इसे ही तो कहते हैं मनुष्य में देवत्व का उदय, ऐसे ही तो होता है धरती पर स्वर्ग का अवतरण।

प्रस्तुतिः मनीष,
    पूर्वजोन, शांतिकुंज, हरिद्वार, (उत्तराखण्ड)

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